SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मदालसा भी प्राप्त हुई। अनंगसेना और सहस्रकला नामक दो अन्य युवतियों से भी उत्तमकुमार का पाणिग्रहण हुआ। सुख के झूले में झूलता हुआ उत्तमकुमार न्याय और नीतिपूर्वक राज्य का संचालन करने लगा। कई वर्ष व्यतीत होने पर उसे लगा कि अब उसे अपने माता-पिता के पास लौटना चाहिए। सुयोग्य और विश्वस्त अधिकारियों को मोटपल्ली का राज्यभार सौंपकर अपनी चार पत्नियों के साथ उत्तमकुमार ने वाराणसी नगरी के लिए प्रस्थान किया। मार्ग में चित्रकूट नरेश महीसेन ने उत्तमकुमार का स्वागत किया और अपना राज्य पूर्व वचनानुसार उसे अर्पित कर दिया। मार्ग में कई राजाओं से प्रेमपूर्वक तथा कइयों से बलपूर्वक निपटते और निकटता स्थापित करते हुए उत्तमकुमार अपने नगर में पहुंचा। माता-पिता वर्षों के पश्चात् पुत्र को देखकर दंग रह गए। उनके हर्ष का आर-पार न रहा। __आखिर महाराज मकरध्वज उत्तमकुमार को राजसिंहासन पर बैठाकर प्रव्रजित बन गए। उत्तमकुमार ने अनेक वर्षों तक चक्रवर्ती सम्राट् की तरह निर्भय, निर्द्वन्द्व और न्याय व नीतिपूर्वक राज्य किया। अंतिम अवस्था में अपने ज्येष्ठ पुत्र को अपना उत्तराधिकार प्रदान कर उत्तमकुमार ने दीक्षा धारण की और उत्कृष्ट तप की आराधना कर देवलोक में देव हुए। भविष्य में मनुष्य भव प्राप्त कर सिद्धि प्राप्त करेंगे। -उत्तमकुमार चरित (शुभशील गणि) उत्तमा (आर्या) उत्तमा आर्या की कथा कमला आर्या की कथा के समान है। (देखिए-कमला आया) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ. 11 उत्तरा विराटराज की पुत्री, जिसका पाणिग्रहण अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के साथ हुआ था। -जैन महाभारत उत्पल __ महावीरकालीन एक निमितज्ञ और ज्योतिषशास्त्र का वेत्ता। पहले वह प्रभु पार्श्व की परम्परा में दीक्षित हुआ था। बाद में वह संयमच्युत हो गया। भगवान महावीर ने शूलपाणि यक्ष के यक्षायतन में मुहूर्त भर की निद्रा में जो दस स्वप्न देखे थे, उनका अर्थ उत्पल ने ही गांववासियों को बताया था। -तीर्थंकर चरित्र (क) उत्पला सावत्थी निवासी श्रमणोपासक शंख की आज्ञाकारिणी, पतिव्रता और धर्मप्राण पत्नी। (देखिए-शंख) -भगवती सूत्र (ख) उत्पला भीम नामक गुप्तचर की पत्नी। (देखिए-उज्झितकुमार) (ग) उत्पला (आर्या) - आर्या उत्पला की सम्पूर्ण कथा-गाथा कमला आर्या के समान है। (देखिए-कमला आया) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ. 3 - जैन चरित्र कोश ... --.71 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy