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________________ मन्द पड़ा, तथापि अन्ततोगत्वा अंठिया की ठी विजय दुई। भारतीय संस्कृति के महान् प्रतिनिधि-साहित्य पुराणों व महाभारत में अठिया परमो धर्मः' का उच्च उद्घोष मुरवरित ठुआ और यह सिद्ध ठुआ कि अटिया की जड़ें भारतीय जन-मानस में बहुत गठरी व सशक्त हैं। अढ़िया की प्रतिष्ठित स्थिति आधुनिक युग तक विद्यमान है, यह तथ्य हिन्दी आठित्य के मूर्धन्य संत कवि तुलसीदाजी द्वारा रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) में कहे गये वचन 'परम धर्म श्रुति-विदित अढ़िया' से रेखांकित ठोती है। भारतीय श्रमण संस्कृति, विशेषकर जैन संस्कृति तो अंठिया की प्रबल पक्षधर ॐ रही है। उसके विचारों ने भारतीय वैदिक संस्कृति को अत्यधिक प्रभावित किया। दोनों । ॐ संस्कृतियों के संगम ने 'अढ़िया' को एक व्यापक व सर्वमान्य आयाम दिया जिये। ॐ भारतीय वाङ्मय में स्पष्ट देखा जा सकता है। श्रमण जैन संस्कृति ने 'अनेकान्तवाद' । 卐 को उपस्थापित कर वैचारिक धरातल पर अढ़िया को नये रूप में प्रतिष्ठापित किया और वैचारिक सहिष्णुता, आग्रठठीनता को अहिंसक दृष्टि से जोड़ा जैन संस्कृति ने अहिंसा * के सूक्ष्म ये सूक्ष्म पक्षों पर प्रकाश डालते हुए समता, संयम व आत्मौपम्य दृष्टि से जोड़ कर अढ़िया को व्याख्यायित किया। सभी आत्माएं समान हैं। प्रत्येक का स्वतंत्र आस्तित्व है। सभी को आत्मवत् समझना अटिंया-दर्शन का प्रारम्भिक कदम है। जिस प्रकार में जीवन प्रिय है, मृत्यु अप्रिय है, सुरव प्रिय है, दुःनव अप्रिय है, मनेठ-मोठार्दपूर्ण व्यवहार प्रिय है, द्वेष-वैमनस्य का व्यवहार अप्रिय है, अनुकूलता प्रिय है, भय-आतंक की परिस्थिति अप्रिय है, उसी प्रकार दूसरों के साथ भी हम मन-वचन-शरीर से वठी व्यवहार करें जो हमें प्रिय व सुरवद ठो। 卐 यह वैचारिक दृष्टि ठी जैन-संस्कृति के अठिंबा-दर्शन का केन्द्र बिन्दु है। इसी क्रम में जैन 卐 संस्कृति ने यह भी प्रतिपादित किया कि सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह -इन समस्त' ॐ धर्मों की साधना अठिंन्याकी ठीग्राधनाएं हैं। दूसरे शब्दों में सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य आदि 卐 कीार्थकताइग्री में है कि वे अठिया के पोषक तत्त्व के रूप में अनुष्ठित ठों। जैन संस्कृति की चिन्तन-धारा के अनुसार, धर्म के मठामन्दिर में प्रविष्ट ठोने के लिए सर्वप्रथम अढ़िया के मुख्य द्वार को स्पर्श करना अनिवार्य है। दया, अनुकम्पा, करुणा, सेवा-भाव, मैत्रीभाव आदि सभी अद्भावों में 'अठिया' का ठी प्रतिबिम्ब झलकता है। आज लगभग 2600 वर्ष पूर्व जैन धर्म के अंतिम व 24वें तीर्थकर तथा अहिंसा के अग्रदत भगवान महावीर का जन्म हुआ था।ई. 2001-2002 में इनका 2600वां जन्मजयंती मठोत्सव राष्ट्रीय स्तर पर मनाया गया। भारत सरकार ने इस वर्ष को अठिया वर्ष के रूप में घोषित किया। अठिया के अवतार समझे जाने वाले भगवान महावीर के प्रति GE विविध समारोठों के माध्यम से देश की जनता ने भावपूर्ण श्रद्धासुमन अर्पित किये। इसी के दौरान 'अटिया विश्वकोश' के निर्माण की परिकल्पना बनी। इस तथ्य का संकेत इसी卐 ॐ विश्वकोश के प्रथम वंड के प्राक्कथन में कर दिया गया है। इन्य विश्वकोश के निर्माण से 卐
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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