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________________ नमोदसण दीपावली पर्व प्रभु वीर का निर्वाण दिन, पावापुरी तीर्थ में अंतीम 16 प्रहर 48 घंटे की देशना देकर भव्य जीवों को आगामी भावी के भावों को दिखाया। प्रभुवीर के अत्यन्त ही निकट के श्री गौतमस्वामी को उस समय देवशर्मा को प्रतिबोध हेतु भेजा, जहाँ पर देवशर्मा को शाश्वती प्रभु की आज्ञा से प्रतिबोध किया। उस समय वीर निवणि के समाचार मिलते ही नवपद गौतम स्वामी विलाप करने लगे आखिर में भान हुआ प्रभु वीतरागी है, आयंबिल की मैं रागी था...। राग दूर हुआ और उनकों भी केवलज्ञान हुआ। अनंत ओली एक वर्ष में दो लब्धिनिधान श्री गौतमस्वामी का रास नूतन वर्ष पर सुनते बार आती हैं इसकी है। नव स्मरण का पाठ करके शुभ संकल्प करना चाहिए। आराधना आसोज सुदी दीपावली एवं नूतनवर्ष से प्रारंभ की जाती है। यह पर्व शाश्वत है। भरत क्षेत्र तो साथ में महाविदेह Elə(Uoli क्षेत्रों में भी इसकी आराधना की सिद्धचक्र यंत्र यंत्राधिराज है नवकार मंत्र मंत्राधिराज है ॥ भगवान महावीर निर्वाण कल्याणक। शत्रुजय तीर्थ तीर्थाधिराज है तो पर्युषण पर्व पर्वाधिराज है इस महापर्व में साधर्मिकों का मेला सा लगता है, दान-शील-तप तथा भाव धर्म की साधना इन दिनों में अधिक की जाती है। जीवदया साधर्मिक भक्ति तथा क्षमापना जैसे कर्तव्यों का पालन इन दिनों में किया जाता है। कल्पसूत्र शास्त्र का गुरू मुख से श्रवण किया जाता है। क्षमा पर्व जाती है। करीबन 11 लाख वर्ष पूर्व में श्री श्रीपाल अक्षय तृतीया और मयणा सुन्दरी ने इसकी आराधना करी थी। आधि-व्याधि तथा उपाधि-हर्ता यह सिद्धचक्र का अपूर्व इस अवसर्पिणी काल में अज्ञान अंधकार को दूर करने वाले प्रभाव है। सर्व प्रथम राजा,प्रथम साधु, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव भगवान । दीक्षा नवपद के पश्चात प्रभु रोज भिक्षा हेतु निकलते है किंतु दान धर्म (सुपात्र दान) से अनजान लोग भिक्षा में हीरा-मोती-माणेक-जवेरात-स्त्री आदि देते थे जबकि इन चीजों का खप प्रभ को नहीं था ....400 दिन के उपवास हो गये श्री श्रेयांसकमार को प्रभ के दर्शन से जातिस्मरण ज्ञान हुआ। ज्ञान से प्रभु आहार हेतु भ्रमण कर रहे है यह जानकर ताजे भेट आए हुए निषि 108 इक्षुरस के घड़ों से पारणा करवाया। उसी स्मृति में आज वर्षांतप किया जाता है उसका पारणा प्रभु ने आज के मंगलकारी दिन आखातीज को हस्तिनापुर में किया था। हम भी यह तप करें। उहा tal182 EMAIRATIO NATIO AIROICODCOMICCOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOCOLLECTION
SR No.016126
Book TitleAdhyatmik Gyan Vikas Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhratnavijay
PublisherRushabhratnavijay
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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