________________
-
अभिधानचिन्तामणिनाममाला .३०४
शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ . शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ वीरपाणक न. ८०२ चालु अथवा. | वीवध पुं ३६४ भार, बोजो
भावि युद्धमां थतु मदिरापान | वीवधिक पुं ३६४ (शि. २४) अन्नादिकनो वीरभवन्ती स्त्री ५५३ (शे. ११६) मोटी बहेन
. भार उपाडनार वीरभार्या स्त्री ५१५ वीर पुरुषनी पत्नी | वृक पुं १२९१ वरु वीरमातृ स्त्री ५५८ वीर पुरुषने जन्म । वृकधूप पुं ६४८ गूगळनो धूप
___आपनारी माता . वृकोदर पुं ७०७ भीमसेन वीरविप्लावक पुं ८६१ शूद्रना धनथी | वृकोदर पुं २१९ (शे. ७२) विष्णु, कृष्ण
होम. करनार वृक्का स्त्री ६२३ हृदयनी अंदरनो कमळना वीरशकु पुं ७७८ (शे. १४३) बाण
आकारनो मांसपिंड वीरसू स्त्री ५५८ वीर पुरुषने | वृक्ण न. १४९० कापेलु, छेदायेनु
जन्म आपनारी माता | वृक्ष पुं १११४ वृक्ष, झाड वीरहन् पुं ८५५ अग्निहोत्रना ओलवाई | वृक्षधूप पुं ६४८ गूगळनो धूप
गयेला अग्निवाळो ब्राह्मण | वृक्षभिद् पुं ९१८ कुहाडी, वांसळो (वीराशंसन) न. ८०१ भयंकर युद्धभूमि | वृक्षभेदिन् पुं ९१९ कुहाडी
__(बहुसंहार थवाथी) | वृक्षवाटी स्त्री १११३ अमात्य-वेश्यावीराशंसनी स्त्री ८०१ भयंकर युद्ध भूमि | सार्थवाह वगेरेना घरनी पासेनी वाडी-बगीचो वीरुध् स्त्री १११८ विस्तार पामेलो वेलो, | वृक्षादन पुं ९१९ कुहाडो
गुच्छावाळी वेलडी वृक्षाम्ल न. ४१७ आंबली, कोकम वीरोज्झ पुं ८६० अग्निनो त्याग करनार, | वृजिन न. १३८१ पाप, दुष्कृत्य
होम नहि करनार ब्राह्मण | वृजिन न. १४५७ वक्र, वांकु वीरोपजीवक पुं ८६० अग्निहोत्रना ब्हानाथी | वृजिन न. ५६८ (शे. ११९) केश, वाळ
मागी खानार ब्राह्मण | वृत पुं १४८४ ढंकायेलु, पसंद करेलु वीर्य न. ३०० घणो ज उत्साह वृति स्त्री ९८२ वाड, कोट वीर्य न. ६२९ शुक्र, वीर्य
वृति पुं १५२३ घेसे, वीटयूँ ते वीर्यान्तराय पुं ७२ तीर्थंकरमा न होय ते | वृत्त न. ८४४ शुद्ध आचार, शील, चारित्र
१८ दोष पैकी त्रीजो दोष | वृत्त पुंनि. १४६७ गोळ। वीर्यप्रवाद न. २४७ १४ पूर्व पैकी त्रीजुं पूर्व | वृत्त पुं १४८४ ढंकायेलं, पसंद करेलु