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________________ २६० अभिधानचिन्तामणौ तिर्यक्काण्डः ४ विपुला सागराच्चाग्रे, स्पर्नेमीमेखलाम्बराः। द्यावापृथिव्यौ तु द्यावाभूमी द्यावाक्षमे अपि ॥९३८॥ दिवस्पृथिव्यौ रोदस्यौ रोदसी रोदसी च ते। उर्वरा सर्वसस्या भूरिरिणं पुनरूपरम् ॥९३९॥ स्थलं स्थली मरुधन्वा, क्षेत्राद्यप्रहतं खिलम् । . १ मृद मृत्तिका सा क्षारोषो, मृत्सा मृत्स्ना च सा शुभा ॥९४०॥ सागरमेखला, सागराम्बरा (समुद्ररशना, समुद्रकाञ्चिः , समुद्रवसना वगेरे यो४ि.) [महाकान्ता, क्षान्ता, मेर्वद्रिकणिका, गोत्रकीला, घनश्रेणी, मध्यलोका, जगद्वहा ॥१५७॥, देहिनी, केलिनी, मौलिः, महास्थाली, अम्बरस्थली मे १२-२० १५७–१५८, रत्न वती शि० ८3] मे ४३ (स्त्री.)-पृथ्वी. द्यावापृथिव्यौ 'ई', द्यावाभूमी 'इ', द्यावाक्षमे 'आ' 1८3८॥,दिवस्पृथिव्यौ 'ई', रोदस्यौ 'सो', रोदसी 'सू' (न. ६.), रोदसी 'सि'-रोदसी (प.) दिवःपृथिव्यौ शि० ८3] मे ७ (स्त्री. दि.)-२१॥ मने पृथिवी. (मेसाथे मनन वाय.) उर्वरा-न्यां स तनु धान्य थाय तेवी पृथ्वी. इरिणम्, ऊषरम् मे २-५२ भूमि-न्यां धान्य न थाय तवी भूमि. ॥८3८॥ स्थलम्, स्थली से २-५७ विनानी मत्रिम भूमि स्थण. (स्थला-कृत्रिम भूभि). मरुः (५.), धन्वा 'अन्' (पृ.), मे २-पाए बिनानी प्रदेश, भा२वा देश. अप्रहतम्, खिलम् थे २ (त्रि.)- 1 3॥ क्षेत्र वगेरेनी भूमि. मृद्, मृत्तिका मे २ (स्त्री.)-भाटी. ऊषः-माश भाटी. मृत्सा, मृत्स्ना मे २ सारी भाटी. ॥८४०॥ रुमा, लवणखानिः (al),
SR No.016119
Book TitleAbhidhan Chintamani Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri
PublisherVijay Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year1973
Total Pages866
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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