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________________ अवहरति 66 अवृद्धात् अवहरति -V.1.51 अविदर्थस्य-II. iii. 51 (द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिक से 'सम्भव है), 'अवहरण जानने से भिन्न अर्थ वाली (ज्ञा धात) के (करण कारक करता है' (और पकाता है) अर्थ में (यथाविहित प्रत्यय में शेष विवक्षित होने पर षष्ठी विभक्ति होती है)। होते है)। अविद्यमानवत् - VIII.i. 72 ....अवह... -III. I. 141 (किसी पद से पूर्व आमन्त्रित सजक पद हो तो वह देखें - श्यादव्यधा० III. 1. 141 आमन्त्रित पद) अविद्यमान के समान माना जाये। अवात् -I. III. 51 अविप्रकृष्टकाले -v.iv. 20 अव उपसर्ग से उत्तर (ग निगरणे' धातु से आत्मनेपद आसन्नकालिक (क्रिया की अभ्यावृत्ति के गणन) अर्थ होता है)। में वर्तमान (बहु प्रातिपदिक से विकल्प से धा प्रत्यय होता अवात् - V.ii. 30 अविप्रकृष्टाख्यानाम् - II. iv.5 अव उपसर्ग प्रातिपदिक से (कुटारच तथा कटच् प्रत्यय (अध्ययन की दृष्टि से) समीपस्थ पदार्थों के वाचक .. होते है)। शब्दों का (द्वन्द्व एकवत् हो जाता है)। .. अवात् -VIII. iii. 68 अव उपसर्ग से उत्तर (भी स्तन्भु के सकार को आश्रयण ...अविभ्याम् - V.i. 8. देखें - अजाविभ्याम् V.i. 8 एवं समीपता अर्थ में मूर्धन्य आदेश होता है)। अविशब्दने - VII. ii. 23 अवाते -VIII. ii. 50 (निष्ठा परे रहते घुषिर् धातु शब्दों द्वारा) अपने भावों (निस् पूर्वक वा धातु से उत्तर निष्ठा के तकार को नकार को प्रकाशन करने से भिन्न अर्थ में (अनिट् होती है)। आदेश करके निर्वाण शब्द) वात अर्थात् वायु अभिधेय न होने पर (निपातित है)। अविशेषे - IV. 1.4 (यदि नक्षत्रविशेष से युक्त काल का रात्रि आदि) विशेषअवारपार... -v.ii. 11. , रूप विवक्षित न हो तो (पूर्वसूत्रविहित प्रत्यय का लुप् हो देखें - अवारपारात्यन्त० v. ii. 11 जाता है)। ...अवारपारात् - IV. ii. 92 अविष्ट ... - VI. iii. 114 देखें- राष्ट्रावारपारात् IV. ii. 92 देखें- अविष्टाष्टO VI. iii: 114 अवारपारात्यन्तानुकामम् - V.ii. 11 अविष्टाष्टपञ्चमणिभिन्नच्छिन्नच्छिद्रसुवस्वस्तिकस्य (द्वितीयासमर्थ) अवारपार, अत्यन्त तथा अनुकाम - VI. iii. 114 प्रातिपदिकों से (भविष्य में जानेवाला' अर्थ में ख प्रत्यय (कर्ण शब्द उत्तरपद रहते) विष्ट,अष्टन,पञ्चन,मणि,भिन्न, होता है)। छिन्न, छिद्र, नुव, स्वस्तिक - इन शब्दों को छोड़कर ...अवि... - VI. iv. 20 (लक्षणवाची शब्दों के अण् को दीर्घ होता है, संहिता के देखें - ज्वरत्वरस्रिव्यविमवाम् VI. iv. 20 विषय में)। अवि... - VII. iii. 85 ...अविस्पष्ट ... - VIII. ii. 18 देखें- अविचिण VII. ii. 85 देखें-मन्थमनस्० VIII. ii. 18 अविचिण्णल्डित्सु- VII. iii. 85 अवृद्धम् - VI. ii. 87 वि, चिण, णल तथा ङ् इत् वाले प्रत्ययों को छोड़कर (प्रस्थ शब्द उत्तरपद रहते कादिगण तथा) वृद्धसंज्ञक (अन्य सार्वधातुक, आर्धधातुक प्रत्ययों के परे रहते जागृ शब्दों को छोड़कर (पूर्वपद को आधुदात्त होता है)। अङ्गको गुण होता है)। अवृद्धात् -IV.i. 160 अविजिगीषायाम् - VIII. ii. 47 (प्राचीन आचार्यों के मत में) वृद्धसंज्ञाभिन्न प्रातिपदिक (दिव् धातु से उत्तर) जीतने की इच्छा से भिन्न अर्थ में से (अपत्यार्थ में बहुल करके फिन् प्रत्यय होता है, अन्यथा (निष्ठा के तकार को नकारादेश होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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