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________________ अवक्षेपण अवयवे, ...अवक्षेपण..-I. ill. 32 अवधारणे -II.1.8 देखें-गन्धनावक्षेपणसेवन I. III. 32 अवधारण= इयत्तापरिच्छेद अर्थ में वर्तमान (यावत् अवक्षेपणे-v.ili.95 अव्यय का समर्थ सुबन्त के साथ अव्ययीभाव समास 'अवक्षेपण' निन्दा अर्थ में वर्तमान (प्रातिपदिक से होता है)। अवन्ति.. - IV.I. 174 कन् प्रत्यय होता है)। देखें-अवन्तिकुन्तिकुरुभ्यः IV. 1. 174 अवक्षेपणे-VI. ii. 195 अवन्तिकुन्तिकुरुभ्यः - IV. 1. 174 (स उपसर्ग से परवर्ती उत्तरपद को तत्पुरुष समास में (क्षत्रियाभिधायी जनपदवाची) अवन्ति, कुन्ति तथा कुरु अन्तोदात्त होता है), निन्दा गम्यमान हो तो। शब्द से (भी उत्पन्न तद्राजसंज्ञक प्रत्ययों का स्त्रीलिङ्ग अवग्रहात् -VIII. iv.25 . . . अभिधेय हो तो लुक् हो जाता है)। (वेदविषय में ऋकारान्त) अवगृह्यमाण पूर्वपद से उत्तर ...अवन्तु... -VI.i. 112 (नकार को णकार आदेश होता है)। देखें- अव्यादवद्यात. VI.i. 112. अवग्रह = पदपाठकाल में पदों को अलग अलग रखना। अवन्योः -III. iii. 45 अवङ्-VI.1. 119 (आक्रोश गम्यमान हो तो) अव तथा नि पूर्वक (ग्रह (अच् परे रहते पदान्त में गो शब्दको विकल्प से) अवङ् धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय आदेश होता है,(स्फोटायन आचार्य के मत में)। होता है)। अक्च क्षे-III. iv. 15 अवपथासि-VI.i. 117 (कृत्यार्थ अभिधेय हो तो वेदविषय में) अवपूर्वक अवपथाः शब्द में (भी जो अनुदात्त अकार, उसके परे चक्षिक धातु से शे प्रत्ययान्त अवचक्षे शब्द (भी) निपातन रहते यजर्वेद विषय में एक को प्रकृतिभाव होता है)। किया जाता है। ...अक्पूर्वस्य - VI.i. 26 अवज्ञाने -III. iil.55 देखें - अध्यवपूर्वस्य VI. 1. 26 तिरस्कार अर्थ में वर्तमान (परिपूर्वक भू धातु से कर्तृ-. ...अवपूर्वात् - V. iv.75 भिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में विकल्प से घञ् प्रत्यय देखें-प्रत्यन्ववपूर्वात् V. iv.75 होता है, पक्ष में अच् होता है)। ...अवम.. - VI. ii. 25. अवत्याः -VI.1.214 देखें - अज्यावम० VI. ii. 25, स्त्रीत्वविशिष्ट अवती-शब्दान्त को (सज्जा विषय में ...अवयवाः -II.1.44 अन्त्य को उदात्त होता है)। देखें- अहोरात्रावयवाः II. I. 44 अवद्या... -III. 1. 101 अवयवाः -VI. ii. 176 देखें-अवधपण्य III. 1. 101 (बहुव्रीहि समास में बहु से उत्तर) गुणादिगणपठित अवधपण्यवर्याः -III. 1. 101 अवयववाची शब्दों को (अन्तोदात्त नहीं होता)। 'अवद्य, पण्य,वर्य- ये शब्द (यथासंख्य करके गह, पणितव्य और अनिरोध अर्थों में यत्प्रत्ययान्त निपातन अवयवात् - VII. iii.2 किये जाते है)। अवयववाची पूर्वपद से उत्तर (ऋतुवाची उत्तरपद शब्द . ...अवधात्... -VI.i. 112 के अचों में आदि अच् को जित, णित् तथा कित् तद्धित देखें-अव्यादवद्यात्o VI.i. 112 प्रत्यय परे रहते वृद्धि होती है)। अवधारणम् - VIII. 1.62 अवयवे - IV. iii. 132 (च तथा अह शब्द का लोप होने पर प्रथम तिङन्त को (षष्ठीसमर्थ प्राणिवाची, ओषधिवाची तथा वृक्षवाची अनुदात्त नहीं होता, यदि एव शब्द वाक्य में) अव- प्रातिपदिकों से) अवयव (तथा विकार) अर्थ में (यथाधारण निश्चय अर्थ में प्रयुक्त किया गया हो तो। विहित प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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