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________________ अभि अभिविद्यौ अभिनिविश: -1. iv. 86 अभिनि पूर्वक विश का (जो आधार.वह भी कर्मसंज्ञक होता है)। अभिनिष्कामति - IV. iii. 86 (द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिक से ) अभिनिष्क्रमण अर्थात् निकलना क्रिया का (द्वारकर्ता अभिधेय हो तो यथाविहित प्रत्यय होता है)। अभिनिस: - VIII. iii. 86 अभि तथा निस् से उत्तर (स्तन धातु के सकार को शब्द की सज्ञा गम्यमान हो तो विकल्प से मूर्धन्य आदेश होता ..अभिपूजितयोः - VIII. 1. 100 देखें-प्रश्नान्ताभिपूजितयोः VIII. 1. 100 . अभिप्रती-II. 1. 13 (आभिमुख्य अर्थ में वर्तमान) अभि और प्रति शब्द (लक्षणवाची समर्थ सुबन्त के साथ विकल्प से समास को प्राप्त होते है, और वह समास अव्ययीभाव संज्ञक होता। अभि...-I. iii. 80 देखें-अभिप्रत्यतिभ्यः I. iii. 80 अभि... -I. iv.46 देखें- अभिनिविश: I. iv.46 अभि... -II. I. 13 देखें-अभिप्रती II. 1. 13 . ...अभि... -III. Iii. 72 देखें-न्यभ्युपविषु III. iii. 72 अभि... - VI. 1. 26 देखें-अभ्यवपूर्वस्य VI.1. 26 ...अभि.. - VIII. iii. 72 . देखें - अनुविपर्य० VIII. iii. 72 अभिः - I. iv. 90 (लक्षणेत्थम्भूताख्यान.' I. iv. 89 सूत्र पर कहे गये अर्थों में भाग अर्थात् हिस्सा अर्थ को छोड़कर) अभि शब्द की (कर्मप्रवचनीय और निपात संज्ञा होती है)। ...अभिक... - V.ii. 74 देखें- अनुकाभिकाभीक: V..1.74 अभिजन: - IV. iii. 90 (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में यदि वह प्रथ- मासमर्थ) अभिजन = पूर्वबन्धु अथवा उनका देश हो तो (भी यथाविहित प्रत्यय होते हैं)। ...अभिजित्... - IV. iii. 36 देखें-वत्सशालाभिजिक IV. iii. 36 अभिजित्... - V. iii. 118 . देखें- अभिजिद्विदभृत् V. iii. 118 अभिजिद्विदभृच्छालावच्छिखाक्च्छमीवदूर्णाक्च्छमदणः -v.ili. 118 अभिजित्, विदभृत, शालावत, शिखावत्, शमीवत्, ऊर्णावत् तथा श्रुमत् सम्बन्धी जो अण् प्रत्ययान्त शब्द, उनसे (स्वार्थ में यत् प्रत्यय होता है)। अभिज्ञावचने -III. 1. 112 अभिज्ञावचन अर्थात् स्मृति को कहने वाला कोई शब्द उपपद हो तो (अनद्यतन भूतकाल में धातु से लट् प्रत्यय होता है)। अभितोमावि – VI. ii. 182 (परि उपसर्ग से उत्तरी अभितोभावि = दोनों ओर से होना स्वभाव है जिसका. इस अर्थ को कथन करने वाले शब्द को (अन्तोदात्त होता है)। अभिप्रत्यतिभ्यः -I. iii. 80 , . अभि प्रति और अति उपसर्ग से उत्तर क्षिप धात से परस्मैपद होता है)। ...अभिप्राये -I. iii. 72 . देखें- कर्जभिप्राये I. iii. 72 ...अभिप्रेत...- III. iv. 59 देखें - अयथाभिप्रेताख्याने III. iv.59 अभिप्रेति -I. iv. 32 (करणभूत कर्म के द्वारा जिसको) अभिप्रेत लक्षित किया जाये,(वह कारक सम्प्रदान संज्ञक होता है)। ...अभिभ्यः - VIII. iii. 119 देखें - निव्यभिभ्यः VIII. iii. 119 ...अभिभ्याम् - V. iii.9 देखें-पर्यभिभ्याम् V. ill.9 अभिविधौ -III. 11.44 अभिव्याप्ति गम्यमान हो तो (धातु से भाव में इनुण प्रत्यय होता है)। अभिविधौ-v.iv.53 अभिव्याप्ति गम्यमान हो तो (क,भ तथा अस धातु के योग में तथा सम् पूर्वक पद धातु के योग में भी विकल्प से साति प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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