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________________ अपि अपिभ्याम् अपि-IV. 1. 124 अपि-VIII. iii. 58 (जनपद तथा जनपद अवधिवाची अवृद्ध तथा वृद्ध) भी (नुम, विसर्जनीय तथा शर प्रत्याहार का व्यवधान होने (बहुवचनविषयक प्रातिपदिकों से शैषिक वुज प्रत्यय होता पर) भी (इण तथा कवर्ग से उत्तर सकार को मर्धन्य आदेश होता है)। अपि-v.ii. 14 sifa - VIII. iii. 63 (सप्तमी और पञ्चमी से अतिरिक्त अन्य भी जो विभक्ति, (सित शब्द से पहले-पहले अट का व्यवधान होने पर तदन्त शब्दों से) भी (तसिलादि प्रत्यय देखे जाते है)। तथा) अपि ग्रहण से अट् का व्यवधान न होने पर भी अपि-VI. iii. 136 (सकार को मूर्धन्य आदेश होता है)। (अन्य शब्दों को) भी (दीर्घ देखा जाता है)। अपि -VIII. iii. 71 अपि - VI. iv.73 (परि.नि तथा वि उपसर्ग से उत्तर सिवादि धातुओं के (वेद विषय में) भी (आट् आगम देखा जाता है)। सकार को अट के व्यवधान होने पर) भी (विकल्प से अपि - VI. iv.75 मूर्धन्य आदेश होता है)। (लुङ,लङ्लु ङ् के परे रहने पर वेद-विषय में माङ्का अपि-VIII. iv.2 योग होने पर अट्, आट् आगम बहुल करके होते हैं और (रेफ तथा षकार से परे अटकवर्ग,पवर्ग,आङ् तथा नुम् माङ् का योग न होने पर) भी (नहीं होते)। का व्यवधान होने पर) भी (नकार को णकार हो जाता है)। अपि -VII. I. 38 अपि - VIII. iv.5 (वेद विषय में अनपूर्व वाले समास में क्त्वा के स्थान (प्र, निर्, अन्तर, शर, इक्षु, प्लक्ष, आम्र, कार्घ्य खदिर, में क्त्वा आदेश होता है तथा ल्यप) भी होता है)। पीयूक्षा - इनसे उत्तर वन शब्द के नकार को असञ्जा- ' अपि-VII.1.76 विषय में भी तथा) अपिग्रहण से सज्ञाविषय में भी (णका(अस्थि,दधि,सक्थि - इन अङ्गों को वेद विषय में) भी रादेश होता है)। (अनङ्आ देश देखा जाता है)। अपि-VIII. iv. 14 अपि-VII. iii. 47 . (भस्वा, एषा,अजा,ज्ञाद्वा.स्वा-ये शब्द नब पूर्व वाले (उपसर्ग में स्थित निमित से उत्तर णकार उपदेश में है हों तो भी) न हों तो भी (इनके आकार के स्थान में जो अकार, जिसके, ऐसे धातु के नकार को असमास में तथा) अपिउसको उदीच्य आचार्यों के मत में इत्व नहीं होता)। ग्रहण से समास में भी (णकार आदेश होता है)। अपि -VIII. I. 35 अपि-VIII. iv. 37 हि से युक्त साकांक्ष अनेक तिङन्तों को भी तथा) अपिग्रहण से एक को भी (कहीं कहीं अनुदात्त नहीं होता.वेद- (निमित्त र,ष तथा निमित्ती न के मध्य पद का व्यवधान विषय में)। होने पर) भी (नकार को णकार नहीं होता)। अपि - VIII. 1. 68 अपिजात्वोः -III. iii. 142 (पूजनवाचियों से उत्तर गतिसहित तिङन्त को तथा गति- (निन्दा गम्यमान हो तो) अपि तथा जातु उपपद रहते भिन्न तिङन्त को) भी (अनुदात्त होता है)। (धातु से लट् प्रत्यय होता है)। . अपि - VIII. ii. 86 अपित् -1. ii. 4 (ऋकार को छोड़कर वाक्य के अनन्त्य गुरुसज्ञक वर्ण पिद्भिन्न = पकार इत्संज्ञक प्रत्यय को छोड़कर (सार्वको एक एक करके तथा अन्त्य के टि को) भी (प्राचीन धातुक प्रत्यय ङित्वत् होते हैं)। आचार्यों के मत में प्लुत उदात्त होता है)। अपित् - III. iv. 87 अपि -VIII. 1. 105 (लोडादेश जो सिप.उसके स्थान में हि आदेश होता है (वाक्यस्थ अनन्त्य एवं ) अपि ग्रहण से अन्त्य पद की और) वह अपित (भी) होता है। टि को भी (प्रश्न एवं आख्यान होने पर स्वरित प्लुत होता ...अपिभ्याम् -III. I. 118 देखें - प्रत्यपिभ्याम् III. i. 118 . सदशहामह)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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