SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 581
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वेशभासपिसकस: स्थेशभासपिसकसः - III. ii. 175 स्था, ईश, भास, पिस्, कस् इन धातुओं से (तच्छीलादि कर्ता हों तो वर्तमानकाल में वरच् प्रत्यय होता है)। .. स्थौल्य ... - IV. 1. 42 देखें - वृत्यमत्रावपना० IV. 1. 42 वो:- VIII. li. 37 (धातु का अवयव जो एक अच् वाला तथा झषन्त, उसके स्थान में भष् आदेश होता है, झलादि) सकार तथा (झलादि) ध्व शब्द के परे रहते ( एवं पदान्त में) । ...sit- IV. i. 87 देखें-स्नाते:- VIII. iii. 89 (नि तथा नदी शब्द से उत्तर) 'ष्णा शौचे' धातु के (सकार को कुशलता गम्यमान हो तो मूर्धन्य आदेश होता है)। IV. 1. 87. स्नात्व्यादय:- VII. 1. 49 स्नात्वी इत्यादि शब्द (भी वेदविषय में निपातन किये जाते हैं)। . - III. 1. 89 ....सु... देखें- दुहस्नुनमाम् III. 1. 89 सु... - VII. ii. 36 देखें- स्नुक्रमो: VII. ii. 36 सुकमो:- VII. 1. 36 स्नु तथा क्रम् धातुओं के (वलादि आर्धधातुक को इट् आगम होता है, यदि स्तु तथा क्रम् आत्मनेपद के निमित्त न हों तो)। स्नेहविपातने - VII. iii. 39 (ली तथा ला अङ्ग को) स्नेह = घृतादि पदार्थों के पिघलने अर्थ में (णि परे रहते विकल्प से क्रमशः नुक् तथा लुक् आगम होता है)। ...-V. iv. 40 देखें- सस्नौ Viv. 40 स्पर्धायाम् - I. iii. 39 563 . स्पर्शयो:- VI. 1. 24 देखें- द्रवमूर्तिस्पर्शयो: VI. 1. 24 स्फिगपूतवीणाञ्जो वकुक्षिसीरनामनाम ... स्पशाम् - VII. Iv. 95 देखें - स्मृदृत्वर VII. iv. 95 ... स्पष्ट... - VII. 1. 27 देखें- दान्तशान्तo VII. ii. 27 स्पृश: - III. ii. 58 स्पृश् धातु से (उदकभिन्न सुबन्त उपपद रहते 'क्विन्' प्रत्यय होता है)। ... स्पृश: - III. iii. 16 देखें- पदरुजo III. iii. 16 ... स्पृशि... - VIII. iii. 110 देखें- रपरसृपि VIII. iii. 110 स्पृहि ... - III. ii. 158 देखें - स्पृहिगृहि III. ii. 158 ... स्पृहि ... - VIII. iii. 110 देखें- परस्पo VIII. iii. 110 स्पृहिगृहिपतिदयिनिद्रातन्द्रा श्रद्धाभ्यः - III. ii. 158 स्पृह, गृह, पत, दय, नि और तत्पूर्वक द्रा, श्रत् पूर्वक डुधाञ् - इन धातुओं से ( तच्छीलादि कर्ता हों तो वर्तमानकाल में आलुच् प्रत्यय होता है)। स्पृहे:- I. iv. 36 स्पृह धातु के (प्रयोग में ईप्सित जो है, वह कारक सम्प्रदानसंज्ञक होता है)। स्फाय :- VI. 1. 22 स्फायी धातु को (निष्ठा परे रहते स्फी आदेश हो जाता है)। . स्फाय:- VII. iii. 41 'स्फायी वृद्धौं' अङ्ग को (णि परे रहते वकारादेश होता है । स्फिग... - VI. ii. 187 देखें - स्फिगपूतo VI. ii. 187 स्फिगपूतवीणाञ्जोध्वकुक्षिसीरनामनाम -VI. ii. 187 (अप उपसर्ग से उत्तर) स्फिग, पूत, वीणा, अञ्जस् अध्वन्, स्पर्धा करने अर्थ में (आङ्पूर्वक ह्वेञ् धातु से आत्मनेपद कुक्षि तथा हल के वाची शब्दों को एवं नाम शब्द को होता है)। (भी अन्तोदात्त होता है) 1 स्फिग = कूल्हा । पूत = पवित्र, योजनाकृत, आविष्कृत ।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy