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________________ सर्वेषाम् 541 सर्वेषाम् – VII. iii. 100 (अद् अङ्ग से उत्तर हलादि अपृक्त सार्वधातुक को) सभी आचार्यों के मत में (अट् आगम होता है)। सर्वेषाम्- VIII. iii. 22 (भो भगो.अघो तथा अवर्ण पूर्ववाले पदान्त यकार का हल् परे रहते) सब आचार्यों के मत में (लोप होता है। सर्वैः-I. 1.72 . (त्यदादि शब्दरूप) सबके साथ अर्थात् त्यदादियों के साथ या त्यदादि से अन्यों के साथ भी (नित्य ही शेष रह जाता है, अन्य हट जाते हैं)। सर्वैकान्यकियत्तदः- V. ii. 15 (सप्तम्यन्त) सर्व,एक, अन्य, किम्, यत् तथा तत् प्रातिपदिकों से (काल अर्थ में दा प्रत्यय होता है)। सलोप-II. 1. 11 (उपमानवाची सुबन्त कर्ता से आचार अर्थ में विकल्प से क्यङ् प्रत्यय होता है तथा सकारान्त शब्दों के) सकार का लोप (भी विकल्प से) होता है। सलोप:- VII. 1.79 . (सार्वधातुक में लिङ् लकार के अन्त्य) सकार का लोप . होता है। ...सवनादीनाम्- VIII. iii. 110 देखें- रपरसफिO VIII. iii. 110 सवर्णम्-1.1.9 - (मख में होने वाले स्थान और प्रयत्न तुल्य हों जिनके, ऐसे वर्गों की परस्पर) सवर्ण संज्ञा होती है। ...सवर्ण...-1.1.57 देखें- पदान्तद्विर्वचनवरे० 1.1.57 सवर्णस्य-I.i. 68 . (अण एवं उदित) अपने सवर्ण का (भी ग्रहण कराते हैं. प्रत्यय को छोड़कर)। सवणे-VI.1.97 (अक प्रत्याहार से उत्तर) सवर्ण (अच्) परे हो तो (पूर्व और पर के स्थान में दीर्घ एकादेश होता है, संहिता के . विषय में)। सवर्णे- VIII. iv.64 (हल् से उत्तर झर् का विकल्प से लोप होता है) सवर्ण (झर) परे रहते। सवाभ्याम्-III. iv.91 सकार, वकार से उत्तर (लोट-सम्बन्धी एकार के स्थान में यथासङ्ख्य करके व और अम् आदेश हो जाते है)। सविध...- VI. ii. 23 . देखें-सविधसनीड VI. ii. 23 सविधसनीडसमर्यादसवेशसदेशेषु-VI. ii. 23 सविध, सनीड,समर्याद,सवेश,सदेश-इन शब्दों के उत्तरपद रहते (सामीप्यवाची तत्पुरुष समास में पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है)। ....सवेश...-VI. ii. 23 देखें- सविधसनीड VI. ii. 23 ...सव्य..-VIII. iii.97 देखें- अम्बाम्ब VIII. iii.97 ससजुफः- VIII. ii. 66 सकारान्त पद तथा सजुष पद को (रु आदेश होता है। ससूव-VII. iv.74 ससूव (यह शब्द वेदविषय में निपातन किया जाता है)। सस्थानेन-V.iv. 10 (स्थानशब्दान्त प्रातिपदिकों से विकल्प से छ प्रत्यय होता है) यदि सस्थान= सदृश व्यक्ति से स्थानशब्दान्त प्रतिपाद्य अर्थवत् हो तो। सस्नौ-v.iv.40 (प्रशंसा-विशिष्ट अर्थ में वर्तमान मद प्रातिपदिक से)स तथा स्न प्रत्यय होते हैं। सस्य-VIII. ii. 24 (संयोग अन्त वाले रेफ से उत्तर) सकार का (लोप होता है)। सस्येन-v.ii. 68 ततीयासमर्थ सस्य प्रातिपदिक से (सब ओर से उत्पन्न अर्थ में कन् प्रत्यय होता है)। सह -I.1.60 (आदिवर्ण अन्त्य इत्संज्ञक वर्ण के साथ मिलकर दोनों के मध्य में स्थित वर्णों का तथा अपने स्वरूप का भी ग्रहण कराता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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