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________________ शासः 505 शिल्पिनि शास-VI. iv.34 शास् अङ्ग की (उपधा को इकारादेश हो जाता है; अङ् तथा हलादि कित, ङित् प्रत्यय परे रहते)। शासि... - VIII. iii. 60 देखें-शासिवसिघसीनाम् VIII. iii. 60 शासिवसिघसीनाम् - VIII. Ill. 60 (इण तथा कवर्ग से उत्तर) शासु,वस् तथा घस् के (सकार को भी मूर्धन्य आदेश होता है)। ...शासु... -III. 1. 109 देखें-एतिस्तु III. 1. 109 ....शासु... - VII. iv.2 देखें-अग्लोपिशास्वृदिताम् VII. iv.2 ...शास्ति... - III.i. 36 । देखें-सर्तिशास्त्य III.i.36 शास्त- VII. 1. 34 शास्तु शब्द (वेदविषय में) इडभावयुक्त निपातित है। शि-I.i.41 - जस् और शस के स्थान में 'जश्शसोः शिः से विहित शि आदेश (की सर्वनाम स्थान संज्ञा होती है)। शि-VIII. iill. 31 (पदान्त नकार को) शकार परे रहते (विकल्प से तक आगम होता है)। शि:-VII. 1. 20 (नपुंसकलिङ्ग वाले अङ्ग से उत्तर जश् और शस् के स्थान में) शि आदेश होता है। ...शिखात् -v.ii. 113 देखें-दन्तशिखात् V. 1. 113 शिखाया -IV. ii. 88 शिखा शब्द से (चातुरर्थिक वलच् प्रत्यय होता है)। ...शिखावत् -v.iii. 118 देखें-अभिजिद्ov.iii. 118 ....शित् -1.1.54 देखें - अनेकाल्सित् I. 1.54 ...शित् -III.iv. 113 देखें-तिशित् III. iv. 113 शितः -I. ii. 60 शित् सम्बन्धी (शल शातने' धातु) से (आत्मनेपद होता है)। शिति -VII. iii. 753 (ष्ठिवु, क्लमु तथा चमु अङ्गों को) शित् प्रत्यय परे रहते (दीर्घ होता है)। शितः - VI.ii. 138 शिति शब्द से उत्तर (नित्य ही जो अबतच उत्तरपद, उसको बहुव्रीहि समास में प्रकृतिस्वर होता है, भसत् शब्द को छोड़कर)। ...शिरसी-VIII. iii. 47 देखें-अधशिरसी VIII. iii. 47 शिलायाः -V. iii, 102 शिला शब्द से (इवार्थ में ढ प्रत्यय होता है)। ...शिलालिभ्याम् - IV. 1. 110 देखें-पाराशर्यशिलालिभ्याम् IV. iii. 110 शिल्पम् - IV.iv.55 (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से 'इसका) शिल्प' अर्थ में (ढक् प्रत्यय होता है)। शिल्पिनि-III. 1. 145 शिल्पी कर्जा अभिधेय होने पर (धातु से 'धुन' प्रत्यय होता है)। शिल्पिनि - III. 1.55 शिल्पी कर्ता अभिधेय होने पर (पाणिष और ताडप शब्द का निपातन किया जाता है)। शिल्पिनि -VI. ii. 62 शिल्पिवाची शब्द उत्तरपद रहते (पाम पूर्वपद को विकल्प से प्रकृतिस्वर होता है)। शिल्पिनि-VI. ii. 68 शिल्पिवाची शब्द उत्तरपद रहते (पाप शब्द को भी विकल्प से आधुदात्त होता है)। शिल्पिनि - VI. 1.76 शिल्पिवाची समास में (भी अणन्त उत्तरपद रहते पूर्वपद को आधुदात्त होता है. यदि वह अण् कृञ् से परे न हो तो)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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