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________________ अनुदात्तस्य 34 अनुनासिक अनुदात्तस्य-VI.1. 155 ....अनुदात्तेत्... - VI. 1. 180 (जिस अनुदात्त के परे रहते उदात्त का लोप हो, उस देखें-तास्यनुदात्तेतू. VI.1. 180 ... अनुदात्त को (भी आदि उदात्त हो जाता है)। अनुदात्ततः -III. ii. 149 अनुदात्तस्य - VIII. 1.4 (हलादि) अनुदात्तेत् धातुओं से (भी तच्छीलादि कर्ता हो (उदात्त तथा स्वरित के स्थान में वर्तमान यण से उत्तर) तो वर्तमानकाल में युच् प्रत्यय होता है)। अनुदात्त के स्थान में (स्वरित आदेश होता है)। अनुदात्तोपदेश... - VI. iv. 37 अनुदात्तस्य-VIII. IN.65 देखें - अनुदात्तोपदेशवनतिक VI. iv. 37 (उदात्त से उत्तर) अनुदात्त को (स्वरित होता है)। अनुदात्तोपदेशवनतितनोत्यादीनाम् -VI. iv. 37 अनुदात्तात् - IV.1.39 __ अनुदात्तोपदेश और जो अनुनासिकान्त,उनके तथा वन (वर्णवाची अदन्त अनुपसर्जन) अनुदात्तान्त (तकार उप- एवं तनोति आदि अङ्गों के ( अनुनासिक का लोप होता धा वाले) प्रातिपदिकों से (विकल्प से स्त्रीलिङ्ग में डीप है,झलादि कित् ङित् प्रत्ययों के परे रहते)। : प्रत्यय तथा तकार को नकारादेश हो जाता है)। । अनुदात्तौ-II. iv. 33 अनुदात्तात् - VII. II. 10 (अन्वादेश में वर्तमान एतद को त्र और तस् परे रह अनुदात्त अश् आदेश होता है और वेत्र,तस प्रत्यय भी) (उपदेश में एक अच् वाले तथा) अनुदात्त धातु से उत्तर अनुदात्त होते हैं । (इट का आगम नहीं होता)। अनुदात्तादेः-IV. II. 43 अनुदात्तौ -III.i.4 (षष्ठीसमर्थ) अनुदात्तादि शब्दों से (समूहार्थ में अञ् (सुप्स्वादि तथा पित् प्रत्यय) अनुदात्त होते हैं। .. प्रत्यय होता है)। अनुदीचाम् - VI. ii. 89 अनुदातादेः-IVil. 137 (नगर शब्द उत्तरपद रहते महत् तथा नव शब्द को छोड़(षष्ठीसमर्थ ) अनुदात्तादि प्रातिपदिकों से (भी विकार कर पूर्वपद को आधुदात्त होता है, यदि वह नगर) उदीच्य .. और अवयव अर्थों में अब प्रत्यय होता है)। प्रदेश का न हो तो । अनुदात्तादौ-VI. ii. 142 अनुदेश: - I. iii. 10 (देवतावाची द्वन्द्व समास में) अनुदात्तादि उत्तरपद रहते (सम सङ्ख्या वाले शब्दों के स्थान में) पीछे आने वाले (पृथिवी,रुद्र,पूषन,मन्थी को छोड़कर एक साथ पूर्व तथा शब्द (यथाक्रम होते हैं)। उत्तरपद को प्रकृतिस्वर नहीं होता है)। अनुधमने - III. i.9 अनद्यमन = परुषार्थ सम्पादित न करना अर्थ में वर्तः अनुदात्तानाम् -I. I. 39 मान (ह धातु से कर्म उपपद रहते अच् प्रत्यय होता है)। (स्वरित से उत्तर) अनुदात्तों को (संहिता -विषय में एक अनुनासिक - VI. iv. 37 श्रुति होती है)। (अनुदात्तोपदेश और जो अनुनासिकान्त,उनके तथा वन अनुदाते-VI. I. 116 एवं तनोति आदि अङ्गों के) अनुनासिक का (लोप होता है, (यजुवेंद-विषय में कवर्ग तथा धकारपरक) अनुदात्त झलादि कित,डित् प्रत्ययों के परे रहते)। झलादाकत,ङित् प्रत्यया क (अकार के परे रहते (भी एङ को प्रकृतिभाव होता है)। अनुनासिकः -1.1.8 अनुदाते -VI.I. 184 (कुछ मुख से तथा कुछ नासिका से अर्थात् दोनों की जिसमें उदात्त अविद्यमान है,ऐसे (असार्वधातुक) के परे सहायता से बोले जाने वाले वर्ण की) अनुनासिक संज्ञा रहते (भी अभ्यस्तसज्जकों के आदि को उदात्त होता है)। होती है। अनुदात्ते - VIII. 1.6 अनुनासिकः -I. iii.2 (पदादि) अनुदात्त के परे रहते (उदात्त के स्थान में हुआ (उपदेश में वर्तमान ) अनुनासिक (अच् इत्सजक होता जो एकादेश,वह विकल्प करके स्वरित होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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