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________________ रिति 442 रुदविदमुषग्रहिस्वपिप्रच्छः . रिति -VI.i. 211 ...रुच... - VII. iii. 66 रेफ इत् वाले शब्द के (उपोत्तम को उदात्त होता है)। देखें-यजयाच०VII. iii.66 . रुनिको-VII. iv.91. ...रिष: - VII. ii. 48 . . देखें-इवसहO VII. ii.48 (ऋकार उपधा वाले अङ्ग के अभ्यास को) रुक, रिक रिषण्यति - VII. iv. 96 (तथा चकार से रीक् आगम होते हैं, यङ्लुक् में)। (दुरस्युः, द्रविणस्युः, वृषण्यति),रिषण्यति -ये क्यात्ययान्त शब्द (वेद-विषय में) निपातित किये जाते हैं। देखें- पादम्यायमाझ्यस० I. iii. 89 ...रुचि... -III. ii. 136 ...री... - VII. iii. 36 देखें - अलंकृञ् III. ii. 136 देखें - अर्तिही VII. iii. 36 ...रुचि... -VI. iii. 115 रीक् - VII. iv. 90 देखें-नहिवृति० VI. iii. 115. (ऋकार उपधा वाले अङ्ग के अभ्यास को भी यङ् तथा ....रुच्य.. -III. 1. 114 यङ्लुक् में) रीक् आगम होता है। देखें - राजसूयसूर्य III. i. 114 रीङ्-VII. iv. 27 रुच्यर्थानाम् -I. iv. 33 (ऋकारान्त अङ्ग को कृत्-भिन्न एवं सार्वधातुक-भिन्न । रुचि अर्थ वाले धातुओं के (प्रयोग में प्रीयमाण कारक यकार तथा चि परे हो तो) रीङ आदेश होता है। की सम्प्रदान संज्ञा होती है)। • रीश्वरात् -I. iv.56 ...रूज... - III. iii. 16 'अधिरीश्वरे I. iv. 86 सूत्र से (पहले-पहले निपात देखें- पदरुज III. iii. 16 संज्ञा का अधिकार जाता है)। रुजानाम् -II. iii. 54 ...रु..-VII. iii. 95 (धात्वर्थ को कहने वाले घजादिप्रत्ययान्त-कर्तृक) रुजादेखें- तुरुस्तु० VII. ii. 95 र्थक धातुओं के (कर्म में शेष विवक्षिन होने पर षष्ठी रु-VIII. iii.1 विभक्ति होती है,ज्वर धातु को छोड़कर)। (मत्वन्त तथा वस्वन्त पद को संहिता में सम्बुद्धि परे रुजि... -III. 1. 31 रहते वेद-विषय में) रु आदेश होता है। देखें-रुजिवहो: III. ii. 31 रु..-III. iii. 50 रुजिवहो: - III. ii. 31 देखें - रुप्लुवोः III. iii. 50 (उत् पूर्वक) रुज् तथा वह धातुओं से (कूल कर्म उपपद रु-III. ii. 159 रहते खश् प्रत्यय होता है)। (दा, धेट, सि,शद,सद् - इन धातुओं से तच्छीलादि ,_ कर्ता हो. तो वर्तमानकाल में) रु प्रत्यय होता है। (शी असे उत्तर झ के स्थान में हआ जो अत आदेश. रु -VIII. ii. 66 ' उसको) रुट आगम होता है। (सकारान्त पद को तथा सजुष पद को) रु आदेश होता रुद... -I.1.8 देखें-रुदक्दिमुषग्रहिस्वपिप्रच्छ: I. ii. 8 रु-VIII. ii.74 रुदविदमुषग्रहिस्वपिप्रच्छः - I. ii. 8 (धात्ववयवभूत पदान्त सकार को सिप परे रहते विकल्प 'रुदिर अश्रुविमोचने', 'विद ज्ञाने', 'मुष स्तेये', 'ग्रह से) रु आदेश होता है। उपादाने'.'जिष्वप शये'.'प्रच्छ ज्ञीप्सायाम्'-इन धातुरुक्...-VII. iv.91 ओं से परे (सन् और क्त्वा प्रत्यय कित्वत् होते हैं)। देखें-रुनिको VII. iv.91
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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