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________________ अघस् अधस्... - VIII. iii. 47 देखें - अधः शिरसी VIII. iii. 47 ... अधस VIII. i. 7 देखें - उपर्यध्यधसः VIII. 1. 7 अधः शिरसी - VIII. 1. 47 (समास में अनुत्तरपदस्थ ) अधस् तथा शिरस् के (विसनीय) को सकार आदेश होता है, पद शब्द परे रहते ) । अधातुः - I. ii. 45 ( अर्थवान् शब्द प्रातिपदिक संज्ञक होते है), धातु (और प्रत्यय) को छोड़कर । ― अधातोः VI. iv. 14 धातुभिन्न (अतु तथा अस् अन्त वाले अङ्ग की उपधा) को भी दीर्घ होता है, सम्बुद्धिभिन्न सु विभक्ति परे रहते)। अघातोः VII. 1. 70 (ठक् इत्सक है जिसका, ऐसे) धातुवर्जित अङ्ग को (तथा अञ्जु धातु को सर्वनामस्थान परे रहते नुम् आगम होता है)। - अधि... - I. Iv. 46 देखें अधिशीस्थासाम् 1. Iv. 46 ... अधि... - I. Iv. 48 देखें उपायध्याय 1. Iv. 48 - - अधि... - I. iv. 92 देखें - अधिपरी 1. iv. 92 ... अधि... - VIII. 1. 7 देखें - उपर्यध्ययस् VIII 1.7 अधि: - I. iv. 96 अधि शब्द (कर्मप्रवचनीय और निपातसंज्ञक होता है. ईश्वर अर्थ में ) । ... अधिक.... देखें - अव्ययासनादूरा० II. II. 25 ii. II. ii. 25 - ... अधिक... - VI. ii. 91 देखें - भूताधिकo VI. 1. 91 li. अधिकम् – II. iii. 9 - (जिससे अधिक हो ( और जिसका सामर्थ्य हो, उस कर्मप्रवचनीय के योग में सप्तमी विभक्ति होती है)। अधिकम् - V. ii. 45 (प्रथमासमर्थ दशन् शब्द अन्त वाले प्रातिपदिक से सप्तम्यर्थ में ड प्रत्यय होता है, यदि वह प्रथमासमर्थ ) अधिक समानाधिकरण वाला हो तो । 24 अधिकम् - V. ii. 73 'अधिकम्' यह निपातन किया जाता है। (अध्यारूढ शब्द के उत्तरपद आरूढ शब्द का लोप तथा कन् प्रत्यय निपातन से किया जाता है)। अधिकरणम् - - I. iv. 45 (क्रिया के आश्रय कर्त्ता तथा कर्म की धारणक्रिया के प्रति आधार जो कारक, उसकी) अधिकरण संज्ञा होती है। ... अधिकरणयोः - III. I. 117 देखें - करणाधिकरणयोः 111. II. 117 अधिकरणवाचिर- 11.11168 अधिकरणवाचक ( क्तान्त) के योग में भी षष्ठी विभक्ति होती है। अधिकरणवाचिना ॥1॥ 13 अधिकरणवाची (क्तप्रत्ययान्त सुबन्त ) के साथ भी षष्ठ्यन्त सुबन्त समास को प्राप्त नहीं होता)। अधिकरणे - II. iil. 36 - (अनभिहित ) अधिकरण कारक में (तथा दूरान्तिकार्थ शब्दों से भी सप्तमी विभक्ति होती है ) । अधिकरणे - - II. iii. 64 अधिकरणैतावत्वे (कृत्वसुच् प्रत्यय के अर्थ वाले प्रत्ययों के प्रयोग में कालवाची) अधिकरण होने पर (शेषत्व की विवक्षा में षष्ठी विभक्ति होती है) 1 अधिकरणे अधिकरण (सुबन्त उपपद रहते (शी धातु से अच् प्रत्यय होता है)। - - III. ii. 15 अधिकरणे III. iii. 93 (कर्म उपपद रहने पर) अधिकरण कारक में (भी घुसंज्ञक धातुओं से कि प्रत्यय होता है)। अधिकरणे III. iv. 41 अधिकरणवाची शब्द उपपद हों तो (बन्ध धातु से णमुल् प्रत्यय होता है)। अधिकरणे - III. 1. 76 = (स्थित्यर्थक गत्यर्थक तथा प्रत्यवसान भक्षण अर्थ वाली धातुओं से विहित जो क्त प्रत्यय, वह) अधिकरण कारक में होता है तथा चकार से भाव, कर्म, कर्त्ता में भी होता है)। अधिकरणैतावत्वे - II. iv. 15 वर्तपदार्थ जो कि समासार्थ का आधार है, उसका परिमाण गम्यमान होने पर (द्वन्द्व एकवद नहीं होता ) ।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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