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________________ बहुप्रजाः बहुप्रजा: - Viv. 123 (वेद-विषय में) असिच् प्रत्ययान्त बहुप्रजाः शब्द (बहुव्रीहि समास में) निपातन किया जाता है। 390 बहुभाषिणि - V. 1. 125 (वाच् प्रातिपदिक से 'मत्वर्थ' में आलच् और आटच् प्रत्यय होते है), 'बहुत बोलने वाला' अभिधेय हो तो । ... बहुभ्यः - V. iii. 2 देखें - किंसर्वनामo V. III. 2 .... बहुल... - VI. iv. 157 देखें - प्रियस्थिरo VI. iv. 157 बहुलम् - II. 1. 32 वे (कर्तृवाची और करणवाची जो तृतीयान्त सुबन्त, समर्थ कृदन्त सुबन्त के साथ) बहुल करके (समास को प्राप्त होते है और वह तत्पुरुष समास होता है) । बहुलम् -II. iii. 62 बहुल करके (चतुर्थी के अर्थ में षष्ठी विभक्ति होती है, वेद में)। बहुलम् - II. iv. 39 बहुल करके (अद् को घस्लृ आदेश होता है छन्द में, घञ् और अप् प्रत्यय के परे रहते) । बहुलम् - II. iv. 73 (वैदिक प्रयोग विषय में शप् का) बहुल करके (लुक् होता है)। बहुलम् - II. iv. 76 (जुहोत्यादि धातुओं से उत्तर) बहुल करके (शप् को श्लु होता है, वेद में)। बहुलम् - II. iv. 84 (अदन्त अव्ययीभाव से उत्तर सप्तमी और तृतीया के सुप् को) बहुल करके (अम् आदेश होता है)। बहुलम् - III. 1. 34 बहुल करके (धातु से सिप् प्रत्यय होता है, लेट् परे रहते। बहुलम् -III. i. 85 (वेदविषय में) बहुल करके (सब विधियों में परस्पर विनिमय हो जाता है)। बहुलम् - III. ii. 81 (अभीक्ष्णता अर्थात् पौनःपुन्य गम्यमान हो तो धातु से) बहुल करके (णिनि प्रत्यय होता है) । बहुलम् - III. ii. 88 (वेदविषय में कर्म उपपद रहते भूतकाल में हन् धातु से) बहुल करके (क्विप् प्रत्यय होता है) 1. -III. iii. 1 बहुलम् - प्रायः, जहाँ विहित है, उनके अतिरिक्त भी, विना विधान hi (धातुओं से उणादि प्रत्यय वर्तमान काल में) बहुल करके होते है । बहुलम् - III. iii. 108 ( रोगविशेष की संज्ञा में धातु से स्त्रीलिङ्ग में ण्वुल्' प्रत्यय) बहुल करके होता है। म् - III. iii. 113 बहुलम् - बहुलम् (कृत्यसंज्ञक प्रत्यय तथा ल्युट् प्रत्यय) बहुल अर्थों में होते हैं। -IV. i. 148 बहुलम् - (सौवीर गोत्र में वर्तमान वृद्धसंज्ञक प्रातिपदिकों से अपत्य अर्थ में) बहुल करके (ठक् प्रत्यय होता है, कुत्सन गम्यमान होने पर) । - IV. i. 160 बहुलम् - (अवृद्धसंज्ञक प्रातिपदिक से अपत्यार्थ में) बहुल करके (फिन् प्रत्यय होता है, प्राच्य आचार्यों के मत में, अन्यत्र इञ्) । बहुलम् - IV. iii. 37 (नक्षत्रवाची प्रातिपदिकों से जातार्थ में उत्पन्न प्रत्यय का) बहुल करके लुक् होता है। बहुलम् - IV. iii. 99 (प्रथमासमर्थ भक्तिसमानाधिकरणवाची गोत्र आख्यावाले तथा क्षत्रिय आख्या वाले प्रातिपदिकों से) बहुल करके (वुञ् प्रत्यय होता है)। बहुलम् - Vil. 122 (प्रातिपदिकों से वैदिक प्रयोग-विषय में) बहुल करके (मत्वर्थ' में विनि प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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