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________________ प्राच्य... . 383 प्रातिलोम्ये प्राच्य.. - IV. 1. 176 देखें-प्राच्यभर्गादिO IV. 1. 176 प्राच्यभरतेषु - II. iv. 66 प्राच्य गोत्र और भरत गोत्र में विहित (इब प्रत्यय का बहुत अच् वाले प्रातिपदिक से उत्तर बहुत्व की विवक्षा में लुक् होता है)। प्राच्यभस्तेषु - VIII. iii. 75 (परिस्कन्द' शब्द में मूर्धन्याभाव निपातन है), प्राग्देशीयान्तर्गत भरतदेश के प्रयोग-विषय में)। प्राच्यभर्गादियौधेयादिभ्यः - IV. 1. 176 (क्षत्रियाभिधायी.जनपदवाची) प्राग्देशीय शब्द तथा भर्गादि,यौधेयादि शब्दों से (उत्पन्न जो तद्राजसंज्ञक प्रत्यय, उनका स्त्रीत्व अभिधेय हो तो लुक नहीं होता)। प्राणभृज्जाति... - V.i. 128 देखें- प्राणभृज्जातिवयोo V.i. 128 प्राणभृष्णातिवयोवचनोद्गात्रादिभ्यः - V.i. 128_ . (षष्ठीसमर्थ) जीवधारी, जातिवाची, अवस्थावाची तथा उदात्रादि प्रातिपदिकों से (भाव और कर्म अर्थों में अब प्रत्यय होता है)। प्राणि.. -II. iv.2 . देखें - प्राणितूर्यसेनाङ्गानाम् II. iv. 2 प्राणि.. - IV. iii. 132 देखें-प्राण्योषधिवक्षेभ्यः IV. iii. 132 प्राणि... -IV. iii. 151 देखें-प्राणिरजतादिभ्यः IV. iii. 151 प्राणितूर्यसेनाङ्गानाम् – II. iv. 2 प्राणी के अङ्गवाची, तूर्य = वाद्य अङ्गवाची तथा सेनाङ्गवाची शब्दों के (द्वन्द्व को भी एकवद्भाव हो जाता है)। प्राणिरजतादिभ्यः - IV. 1. 151 (षष्ठीसमर्थ) प्राणिवाची तथा रजतादिगण में पढ़े प्राति- पदिकों से विकार और अवयव अर्थों में अञ् प्रत्यय होता है)। प्राणिस्थात् - V.ii. 96 . प्राणिस्थ = प्राणी में स्थित,तद्वाची (आकारान्त) प्राति'पदिकों से मत्वर्थ' में विकल्प से लच प्रत्यय होता है। प्राणिस्थात् - V. ii. 128 (द्वन्द्व समास,रोग तथा निन्ध को कहने वाले) प्राणी में स्थित (अकारान्त) प्रातिपदिकों से (मत्वर्थ' में इनि प्रत्यय होता है)। प्राण्योषधिवृक्षेभ्यः - IV. iii. 132 (षष्ठीसमर्थ) प्राणिवाची, ओषधिवाची तथा वृक्षवाची प्रातिपदिकों से (अवयव तथा विकार अर्थों में यथाविहित प्रत्यय होता है)। प्रात् -I. iii. 81 प्र उपसर्ग से उत्तर (वह धातु से परस्मैपद होता है)। प्रात् -VI. I. 183 प्रउपसर्ग से उत्तर (अस्वाङ्गवाची उत्तरपद को सजाविषय में अन्तोदात्त होता है)। प्रातिपदिकम् - I.ii. 43 (अर्थवान् शब्दों की) प्रातिपदिक संज्ञा होती है, (धातु और प्रत्यय को छोड़कर)। प्रातिपदिकस्य -I. III. 47 (नपुंसकलिङ्ग में वर्तमान) प्रातिपदिक को (हस्व हो जाता ...प्रातिपदिकात् - Vi.1 देखें - झ्याप्प्रातिपदिकात् IV.i.1 प्रातिपदिकान्त.. - VIII. iv. 11 देखें - प्रातिपदिकान्तनुम्0 VIII. iv. 11 प्रातिपदिकान्तनुम्विभक्तियु - VIII. iv. 11 (पूर्वपद में स्थित निमित्त से उत्तर) प्रातिपदिक के अन्त में जो नकार तथा नुम् एवं विभक्ति में जो नकार,उसको (भी विकल्प से णकार आदेश होता है)। प्रातिपदिकान्तस्य -VIII. ii.7 प्रातिपदिक पद के अन्त में (नकार का लोप होता है)। प्रातिपदिकार्थ... -II. iii. 46 देखें - प्रातिपदिकार्थलिङ्ग II. iii. 46 प्रातिलोम्ये-v.iv. 64 'प्रतिकूलता' अर्थ गम्यमान हो तो (दु.ख प्रातिपदिक से कृञ् के योग में डाच् प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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