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________________ परी परी - I. iv. 87 देखें- अपपरी 1. Iv. 87 ... परी. I. iv. 92 देखें... - अधिपरी 1. Iv. 92 ... परुत् ... - V. iii. 22 देखें सद्य: पत्o Viii. 22 परीप्सायाम् 111.52 शीघ्रता गम्यमान हो तो (अपादान उपपद रहते धातु से णमुल् प्रत्यय होता है)। - - 1 परीप्सायाम् VIII. 1. 42 (पुरा शब्द से युक्त तिङन्त को भी) शीघ्रता अर्थ गम्यमान होने पर (अनुदात्त नहीं होता) । परे - I. iv. 81 (वेद-विषय में गति, उपसर्गसंज्ञक शब्द धातु से) पर में (तथा पूर्व में भी आते हैं। परेः - 1. iii. 82 परि उपसर्ग से उत्तर (मृष् धातु से परस्मैपद होता है)। परे: - VI. 1. 43 परि उपसर्ग से उत्तर (व्येञ् धातु को विकल्प करके सम्प्रसारण नहीं होता है)। - 355 परे: - VI. 1. 182 पर उपसर्ग से उत्तर (अभितोभावी तथा मण्डल शब्द को अन्तोदात्त नहीं होता) । परेः VIII. i. 5 (छोड़ने अर्थ में वर्तमान परि शब्द को (द्वित्व होता है)। :-VIII. ii. 22 परि के (रेफ को भी भ तथा अङ्क शब्द पर रहते विकल्प से लव होता है। परेः - VIII. iii. 74 परि उपसर्ग से उत्तर (भी स्कन्द् के सकार को विकल्प मूर्धन्य आदेश होता है)। परेद्यवि... - V. iil. 22 देखें - सद्य: परुत्o Viii. 22 परोक्षे - III. 1. 115 ii. (अनद्यतन) परोक्ष जो अपनी इन्द्रियों से न देखा गया हो, (ऐसे भूतकाल में वर्तमान धातु से लिट् प्रत्यय होता है)। पर्यादिभ्यः = परोवर... - V. II. 10 देखें - परोवरपरम्परo V. ii. 10 परोवरपरम्परपुत्रपौत्रम् - y. ii. 10 (द्वितीयासमर्थ) परोवर, परम्पर तथा पुत्रपौत्र प्रातिपदिकों से (अनुभव करता है' अर्थ में ख प्रत्यय होता है)। परौ - III. iii. 38 परि पूर्वक (इण् धातु से क्रम परिपाटी गम्यमान होने पर कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है) । परौ - III. iii. 45 (यज्ञविषय में) परिपूर्वक (मह् धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है ) । — परौ - III. iii. 55 तिरस्कार अर्थ में वर्तमान परिपूर्वक भू धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में विकल्प से घञ् प्रत्यय होता है, पक्ष में अप् प्रत्यय होता है) । परी - III. III. 84 परिपूर्वक (हन् धातु से करण कारक में अप् प्रत्यय होता है तथा हन् के स्थान में घ आदेश भी होता है) । परौ - VIII. iii. 51 (अधि के अर्थ में वर्तमान परि शब्द के परे रहते (पञ्चमी के विसर्जनीय को सकारादेश होता है, वेद (विषय में) । ...qui...- IV. i. 64 देखें - पाककर्णपर्ण० IV. 1. 64 ... पर्णात् - IV. II. 144 देखें कुकर्णपर्णात् IV. 1. 144 पर्पादिभ्यः IV. iv. 10 (तृतीयासमर्थ पर्यादि प्रातिपदिकों से (चरति' अर्थ में ष्ठन् प्रत्यय होता है)। पर्प = पहिए वाली कुर्सी ।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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