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________________ नित्यम् नित्यम् - VII. 1. 81 (शप् तथा श्यन् का जो शतृ प्रत्यय, उसको) नित्य ही (नुम् का आगम होता है)। नित्यम् - VII. ii. 61 (उपदेश में जो अजन्त धातु, तास के परे रहते) नित्य (अनि, उससे उत्तर तास् के समान ही थल् को इट् आगम नहीं होता। 336 नित्यम् - VII. iv. 8 (वेद-विषय में चङ्परक णि परे रहते उपधा ॠवर्ण के स्थान में) नित्य ही (ऋकारादेश होता है)। नित्यम् - VIII. 1. 66 (यत् शब्द से घटित पद से उत्तर तिङन्त को) नित्य: (अनुदात्त नहीं होता। नित्यम् - VIII. iii. 3 (अट् परे रहते रु से पूर्व आकार को) नित्य ही (अनुनासिक आदेश होता है)। नित्यम् I-VIII. iii. 32 (ह्रस्व पद से उत्तर जो डम्, तदन्त पद से उत्तर अच् नित्य ही (मुट् आगम होता है) । नित्यम् - VIII. iii. 45 (अनुत्तरपदस्थ इस्, उस् के विसर्जनीय को समासविषय में नित्य ही षत्व होता है, कवर्ग अथवा पवर्ग परे रहते) । नित्यम् - VIII. iii. 77 (वि उपसर्ग से उत्तर स्कन्भु धातु के सकार को) नित्य (मूर्धन्यादेश होता है)। नित्यवीप्सयो: - VIII. i. 4 नित्यता एवं वीप्सा अर्थ में (जो शब्द, उस सम्पूर्ण शब्द को द्वित्व होता है) । परिव्याप्ति, निरन्तरता प्रकट करने के लिये वीप्सा द्विरुक्ति । = नित्याबहूच् - VI. 1. 138 (शिति शब्द से उत्तर) नित्य ही जो अबह्वच् उत्तरपद, उसको बहुव्रीहि समास में प्रकृतिस्वर होता है, भसत् शब्द को छोड़कर) । निपाता: नित्यार्थे - VI. ii. 61 ( क्तान्त उत्तरपद रहते) नित्य अर्थ है जिसका, ऐसे समास में (विकल्प से पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है)। .....निद्रा... - III. ii. 158 देखें - स्पृहिगृहि० III. ii. 158 निन्द... - III. ii. 146 देखें - निन्दहिंस० III. 1. 146 ...fafa-VI. i. 191 देखें – निति VI. 1. 191 निन्दहिंसक्लिशखादविनाशपरिक्षिपपरिरटपरिवादिव्याभ वासूयः - III. ii. 146 णिदि कुत्सायाम्, हिसि हिंसायाम्, क्लिशू विबाधने, खादृ भक्षणे, विपूर्वक ण्यन्त णश अदर्शने, परिपूर्वक क्षिप, परिपूर्वक रट, परिपूर्वक ण्यन्त वद, वि आङ् पूर्वक भाष व्यक्तायां वाचि, असूय् - इन धातुओं से ( तच्छीलादि कर्त्ता हों तो वर्तमानकाल में वुञ् प्रत्यय होता है) । निनदीभ्याम् - VIII. iii. 89. नि तथा नदी शब्द से उत्तर (ष्णा शौचे' धातु के संकार को कुशलता गम्यमान हो तो मूर्धन्य आदेश होता है)। ... निन्दाम् - VIII. iv. 32 देखें - निसनिनिन्दाम् VIII. iv. 32 ... निफ्त... - III. iii. 99 देखें - समजo III. iii. 99 निपातस्य -VI. iii. 135 (ऋचा विषय में) निपात को (भी दीर्घ हो जाता है)। निपातः - I. 1. 14 (केवल जो एक ही अच्) निपात (है, उसकी प्रगृह्य संज्ञा होती है, आङ् को छोड़कर) । ... निपातम् - I. 1. 36 देखें - स्वरादिनिपातम् I. 1. 36 ... निपातयोः - III. iii. 4 देखें - यावत्पुरानिपातयोः III. iii. 4 निपाता: - 1. iv. 56 ( अधिरीश्वरे I. iv. 96 सूत्र से पहले-पहले निपात संज्ञा का अधिकार जाता है) ।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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