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________________ 332 नहः -VIII. 1.34 'णह बन्धने' धातु के (हकार को धकारादेश होता है.झल परे रहते या पदान्त में)। नहि... - VI. iii. 115 देखें-नहिवृतिः VI. iii. 115 नहिवृतिवृषिव्यधिरुचिसहितनिषु - VI. ii. 115 नहि, वृति, वृषि, व्यधि,रुचि,सहि, तनि-इन (क्विपप्रत्ययान्त) शब्दों के उत्तरपद रहते (पूर्व अण को दीर्घ हो जाता है)। ना..-III. iv.62 देखें-नाधार्थप्रत्यये III. iv.62 ना...-V.ii. 27 देखें - नानात्रौ V. ii. 27 ना-VII. iii. 119 (घिसज्जक अङ्ग से उत्तर आङ् = टा के स्थान में) ना आदेश होता है, (स्त्रीलिङ्ग वाले शब्द को छोड़कर)। ...नाकेषु-VI. Iii. 74 देखें-नभ्रानपान VI. iii. 74 ...नाग...-II.i.61 देखें-वृन्दारकनाग० II.i.61. ...नाग... - IV.I. 42 देखें-जानपदण्ड IV.I.42 ...नावी - V. ii. 27 देखें - नानात्रौ v.i.27 ..नाट... - II. iii. 56 देखें-जासिनिग्रह II. ii. 56 ...नाटच्.. - V.ii. 31 देखें -टीटजाटच्. V.ii. 31 नाडी... - III. ii. 30 देखें - नाडीमुष्ट्योः II. ii. 30 नाडी... -V. iv. 159 देखें-नाडीतन्त्र्यो : V.iv. 159 नाडीतन्त्र्योः - V. iv. 159 (स्वाङ्ग में वर्तमान) नाडी शब्दान्त तथा तन्त्री- शब्दान्त (बहुव्रीहि) से (समासान्त कप प्रत्यय नहीं होता है)। नाडीमुष्ट्योः - III. 1. 30 नाडी और मुष्टि (कर्म) उपपद रहते (भी ध्मा तथा धेट धातुओं से खश प्रत्यय होता है)। .. . नात् - VIII. i. 17 नकारान्त शब्द से उत्तर (घसञक को वेद-विषय में नुट् आगम होता है)। नाथः -II. iii. 55 (आशीर्वादार्थक) 'नाथ' धातु के (कर्म कारक में शेष की विवक्षा होने पर षष्ठी विभक्ति होती है) ...नाथयोः - III. ii. 25 देखें-दक्तिनाथयोः III. I. 25 ....नादिभ्यः - IV. 1. 170 देखें - कुरुनादिभ्यः M.i, 170. नाधार्थप्रत्यये-III. iv.62 (व्यर्थ में वर्तमान) 'ना' प्रत्यय 'धा' प्रत्यय अथवा इसके समानार्थक प्रत्ययान्त शब्द उपपद हों तो (कृ,भू धातुओं से क्त्वा और णमुल् प्रत्यय होते हैं)। नानात्रौ-v.ii. 27 (वि तथा नञ् प्रातिपदिकों से 'पृथग् 'भाव' अर्थ में यथासङ्ख्य करके) ना तथा ना प्रत्यय होते हैं। ...नानाभि-II. 1. 32 देखें-पृथग्विनानानाभिः II. iii. 32 नान्तात् - V. ii. 49 (सङ्ख्या आदि में न हो जिसके,ऐसे सङ्ख्यावाची षष्ठीसमर्थ) नकारान्त प्रातिपदिक से (पूरण' अर्थ में 'विहित डट् प्रत्यय को मट् का आगम होता है)। ...नान्दी... -III. ii. 21 देखें-दिवविभा० III. 1. 21 नान्दी = सन्तोष, प्रसन्नता, नाटक के आदि में मङ्गलाचरण। ...नाभि... -VI. iii. 84 देखें-ज्योतिर्जनपदOVI. iii. 84 नाम् – VI. i. 171 (मतुप् प्रत्यय के परे रहते हस्वान्त अन्तोदात्त शब्द से उत्तर) नाम् (विकल्प से उदात्त होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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