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________________ अण 17 अणौ अण्-V. iv. 15 अणि-I. iv. 52 (इनुण-प्रत्ययान्त प्रातिपदिक से स्वार्थ में) अण् प्रत्यय (गत्यर्थक,बुद्ध्यर्थक,भोजनार्थक तथा शब्द कर्म वाली होता है। और अकर्मक धातुओं का ) अण्यन्तावस्था में (जो कर्ता, अण् - V. iv. 36 वह ण्यन्तावस्था में कर्मसंज्ञक होता है)। (उस प्रकाशित वाणी से युक्त कर्मन् प्रातिपदिक से अणि-IV.ili.2 स्वार्थ में ) अण् प्रत्यय होता है। (उस खञ् तथा) अण् प्रत्यय के परे रहते ( युष्मद्, ...अण्...-VI. iii. 49 अस्मद् के स्थान पर यथासङ्ख्य युष्माक,अस्माक आदेश देखें-लेखयदण VI. iii. 49 होते हैं)। अण: - IV.i. 156 अणि-VI. ii. 75 अणन्त (दो अच् वाले) प्रातिपदिकों से (अपत्यार्थ में अणन्त शब्द उत्तरपद रहते (नियुक्तवाची समास में फिञ् प्रत्यय होता है)। पूर्वपद को आधुदात्त होता है)। ...अण: - V. iii. 118 अणि -VI. iv. 133 . (अभिजित्, विदभृत्, शालावत. शिखावत्, शमीवत्, (षकार पूर्व में है जिसके, ऐसा जो अन्,तर तथा हन् ऊर्णावत,श्रूमत् सम्बन्धी) अणन्त शब्द से (स्वार्थ में यञ् एवं धृतराजन् भसज्ज्ञक अङ्ग के अन् के अकार का लोप प्रत्यय होता है)। होता है), अण् परे रहते। अणः -VI. ii. 110 अणि-VI. iv. 164 (ढकार तथा रेफ का लोप हुआ है जिसके कारण,उसके (अपत्य अर्थ से भिन्न अर्थ में वर्तमान) अण् प्रत्यय के परे रहते पूर्व के) अण् को (दीर्घ होता है)। परे रहते (भसञ्जक इन्नन्त अङ्गको प्रकृतिभाव हो जाता अण: - VII. iv. 13. .. (क प्रत्यय परे रहते) अण् = अ,इ,उ को (हस्व होता । (ण्यन्त गोत्रप्रत्ययान्त, क्षत्रियवाची गोत्रप्रत्ययान्त,ऋषिअणः -VIII. iv.56 वाची गोत्रप्रत्ययान्त तथा जित् गोत्रप्रत्ययान्त शब्द से -- (अवसान में वर्तमान प्रगृह्यसञक से भिन्न) अण् को युवापत्य में विहित) अण् और इञ् प्रत्ययों का (लुक् होता (विकल्प से अनुनासिक आदेश होता है)। । ...अणके-II.i. 53 अणित्रोः - IV.i. 78 देखें-पापाणके II. i. 53 (गोत्र में विहित ऋष्यपत्य से भिन्न) अण और इब् अणजौ-IV. iii. 93 प्रत्ययान्त (उपोत्तमगुरु वाले) प्रातिपदिकों को (स्त्रीलिङ्ग में (प्रथमासमर्थ सिन्ध्वादि तथा तक्षशिलादिगणपठित ष्यङ् आदेश होता है)। शब्दों से यथासंख्य करके) अण तथा अब् प्रत्यय होते अणुदित् -I.i. 68 हैं,(इसका अभिजन' कहना हो तो)। अण् प्रत्याहार = अ, इ, उ,ऋ,लू, ए, ओ, ऐ, औ, ह, य, अणजौ-v.i.40 वरल तथा उदित् = उकार इत्संज्ञक वर्ण (अपने स्वरूप तथा अपने सवर्ण का भी ग्रहण कराने वाले होते है.प्रत्यय - (षष्ठीसमर्थ सर्वभूमि तथा पृथिवी प्रातिपदिकों से कारण अर्थ में यथासङ्ख्य करके) अण तथा अप्रत्यय होते हैं, को छोड़कर)। (यदि वह कारण संयोग वा उत्पात हो तो)। ...अणुभ्यः - V.ii.4 अणजौ-v.iii. 117 देखें- तिलमाषोov.ii. 4 अणौ -I. iii. 67 (शस्त्रों से जीविका कमाने वाले पुरुषों के समूहवाची अण्यन्तावस्था में (जो कर्म,वह यदि ण्यन्तावस्था में कर्ता पार्धादि तथा यौधेयादि-गणपठित प्रातिपदिकों से स्वार्थ बन रहा हो तो, ऐसी ण्यन्त धातु से आत्मनेपद होता है, में यथासंख्य करके) अण् तथा अब प्रत्यय होते हैं। आध्यान = उत्कण्ठापूर्वक स्मरण अर्थ को छोड़कर)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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