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________________ 325 न-VIII. iv. 33 न. - VII.i. 29 (उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर भा, भू.पूज, कमि, (युष्मद् तथा अस्मद् अङ्ग से उत्तर शस् के स्थान में) गमि.ओप्यायी तथा वेप-इन धातुओं से विहित कृत्स्थ नकारादेश होता है। नकार को अच से उत्तर णकार आदेश) नहीं होता। | अच् स उत्तर णकार आदश) नहीं होता। --VII. 1.64 न-VIII. iv. 41 (मकारान्त धातु पद को) नकारादेश होता है। (पदान्त टवर्ग से उत्तर सकार और तवर्ग को षकार और - VIII. II. 42 टवर्ग) नहीं होता,(नाम् को छोड़कर)। (रेफ तथा दकार से उत्तर निष्ठा के तकार को) नकारादेश 7 - VIII. iv. 47 • होता है (तथा निष्ठा के तकार से पूर्व के दकार को भी (आक्रोश गम्यमान हो तो आदिनी शब्द परे रहते पुत्र नकारादेश होता है)। शब्द को द्वित्व) नहीं होता। न.-VIII. iv. 1 न-VIII. iv.66 रेफ तथा षकार से उत्तर) नकार को (णकारादेश होता (उदात्त उदय = परे है जिससे एवं स्वरित उदय = है,एक ही पद में)। परे है जिससे,ऐसे अनुदात्त को स्वरित आदेश) नहीं होता, न - VIII. III. 7 (गार्ग्य, काश्यप तथा गालव आचार्यों के मत को (प्रशान को छोड़कर) नकारान्त पद को (अम्परक छन् छोड़कर)। प्रत्याहार परे रहते रु होता है, संहिता में)। न-I. iv. 15 न -VIII. iii. 24 नकारान्त शब्दरूप (पदसंज्ञक होते हैं;क्यच,क्यङ् तथा (अपदान्त) नकार को (तथा चकार से मकार को भी झल क्या परे रहते)। परे रहते अनुस्वार आदेश होता है)। न -V.I. 33 न: - VIII. iii. 27 (पति शब्द से यज्ञसंयोग गम्यमान होने पर ङपि प्रत्यय (नकारपरक हकार परे रहते पदान्त मकार को विकल्प और) नकार अन्तादेश भी हो जाता है। से) नकारादेश होता है। +-IV. 1.39 २-VIII. iii. 30 (वर्णवाची अदन्त अनुपसर्जन अनुदात्तान्त तकार उप नकारान्त पद से उत्तर (भी सकारादि पद को विकल्प धावाले प्रातिपदिकों से विकल्प से स्त्रीलिङ्ग में उपि प्रत्यय से धुट् का आगम होता है)। तथा तकार को) नकारादेश हो जाता है। न. -VIII. iv. 26 F-VI. I. 63 (धातु में स्थित निमित्त से उत्तर तथा उरु एवं षु शब्द (धात के आदि में णकार के स्थान में उपदेश अवस्था से उत्तर) नस् शब्द के (नकार को भी वेद-विषय में णकामें) नकार आदेश होता है। रादेश होता है)। न:-VI.1.99 ...नकुल... - VI. iii. 74 (प्रथमयोः पूर्वसवर्णः' VI. i. 98 सूत्र से किये हुये देखें- नानपात्o VI. Iii. 74 पूर्वसवर्ण दीर्घ से उत्तर शस् के अवयव सकार को) नकार ...नक्तंदिव.. - V. iv.77 आदेश होता है, (पुल्लिङ्ग में)। देखें- अचतुर० V. iv. 77 न: - VI. iv. 144 (भसब्जक) नकारान्त अङ्गके (टि भाग का लोप होता ..नक्र.. -VI. iii. 74 , है,तद्धित प्रत्यय परे रहते)। देखें- नानपात्o VI. 1.74
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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