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________________ 321 । न-II.iv.61 न-III. iv. 23 (गोत्रवाची तौल्वलि आदि शब्दों से विहित जो (समानकर्तावाले धातुओं में से पूर्व एवं पर कालवाची युवापत्यार्थक-प्रत्यय,उसका लुक) नहीं होता। अर्थ में वर्तमान धातु से यद शब्द उपपद होने पर क्त्वा, न-II. iv. 67 णमुल प्रत्यय) नहीं (होते,यदि अन्य वाक्य की आकाङ्क्षा (गोपवनादि शब्दों से परे गोत्रप्रत्यय का तत्कृत बहुव न रखने वाला वाक्य अभिधेय हो)। चन में लुक) नहीं होता है। न-IV.i. 10 न-II. iv.83 (षट्संज्ञक प्रातिपदिकों से तथा स्वस्रादि प्रातिपदिकों (अदन्त अव्ययीभाव से उत्तर सुप का लुक) नहीं होता, से स्त्रीलिङ्ग में विहित प्रत्यय) नहीं होते। (अपितु पञ्चमीभिन्न सुप् प्रत्यय के स्थान में अम् आदेश हो जाता है)। (अदन्त अपरिमाण, बिस्त, आचित और कम्बल्य अन्त न-III. 1.47 वाले द्विगुसंज्ञक प्रातिपदिकों से तद्धित के लुक् हो जाने (दृश् धातु से चिल के स्थान में क्स आदेश नहीं होता पर स्त्रीलिङ्ग में ङीप् प्रत्यय) नहीं होता। (लुङ् परे रहने पर)। न-IV.i.56 न-III.i.51 (क्रोडादि स्वानवाची उपसर्जन तथा बसच अदन्त (ऊन, ध्वन, इल, अर्द-इन ण्यन्त धातुओं से उत्तर वेद- स्वाङ्गवाची उपसर्जन जिनके अन्त में हैं, उन प्रातिपदिकों विषय में च्लि के स्थान में चङ् आदेश नहीं होता। से स्त्रीलिङ्ग में डीप) नहीं होता। न-III. 1.64 . न-IV. 1. 176 (रुधिर धातु से उत्तर च्लि के स्थान में चिण आदेश) (क्षत्रियाभिधायी जनपदवाची प्राग्देशीय शब्द तथा नहीं होता, (कर्मकर्ता में, त शब्द परे रहते)। भर्गादि, यौधेयादि शब्दों से उत्पन्न जो तद्राजसंज्ञक न-III. i. 89 प्रत्यय,उनका स्त्रीत्व अभिधेय हो तो लक) नहीं होता। (दुह, स्नु तथा नम् धातुओं को कर्मवद्भाव में कहे हुए न - IV. 1. 112 कार्य यक और चिण) नहीं होते। (प्राच्य भरत गोत्रवाची इअन्त द्वयच् प्रातिपदिक से अण् 'न-III. ii. 23 प्रत्यय) नहीं होता। • (शब्द,श्लोक, कलह, गाथा, वैर, चाटु, सूत्र, मन्त्र, पद- न-IV. iii. 129 इन कर्मों के उपपद रहते कृ धातु से ट प्रत्यय) नहीं (षष्ठीसमर्थ गोत्रवांची प्रातिपदिकों से 'इदम्' अर्थ में होता है। . दण्डमाणव तथा अन्तेवासी अभिधेय हों तो वुब प्रत्यय) , न-III. ii. 113 नहीं होता। (यत् शब्द सहित अभिज्ञावचन उपपद हो तो अनद्यतन न-IV. iii. 148 भूतकाल में धातु से लुट् प्रत्यय) नहीं होता। (उकारवान द्वच् या व्य षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिक से तथा न-III. ii. 152 वर्ध, बिल्व शब्दों से वेदविषय में मयट् प्रत्यय) नहीं (यकारान्त धातुओं से तच्छीलादि कर्ता हों तो वर्तमा- होता। नकाल में युच् प्रत्यय) नहीं होता। न-v.i. 120 न-III. iii. 135 (यहां से आगे जो भाव प्रत्यय कहे जायेंगे, वे प्रत्यय (क्रियाप्रबन्ध तथा सामीप्य गम्यमान हो तो धातु से नपूर्ववाले तत्पुरुष से) नहीं होंगे; (चतुर, संगत, लवण, अनघतन के समान प्रत्ययविधि) नहीं होती। वट, युध, कत, रस तथा लस शब्दों को छोड़कर)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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