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________________ घातो: 317 • धान्य धातो: - VI. iv. 140 ...धात्वोः -VI.i. 169 (आकारान्त) जो धातु, तदन्त (भसज्ञक) आङ्ग के देखें-ऊधात्वो: VI. I. 169 (आकार का लोप होता है)। ...धान्य -II. iv. 12 धातो: -VII. 1. 58 देखें - वृक्षमृगतृण II. iv. 12 (इकार इत्सजक है जिसका,ऐसे) धातु को (नुम् आगम धान्यानाम् - V.1.1 होता है)। षष्ठीसमर्थ धान्यविशेषवाची प्रातिपदिकों से (उत्पत्तिधातो: - VII. 1. 100 स्थान' अभिधेय हो तो खञ् प्रत्यय होता है, यदि वह (ऋकारान्त) धातु अङ्ग को (इकारादेश होता है)। उत्पत्तिस्थान खेत हो तो)। घातो: - VIII. ii. 32 धान्ये-III. iii. 30 (टकार आदि वाले) धात के (हकार के स्थान में पकार (उद.नि पर्वक क धात से) धान्यविषय में (घज प्रत्यय आदेश होता है, झल् परे रहते या पदान्त में)। होता है, कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में)। धातो: - VIII. ii. 43 धान्ये-III. iii. 48 (संयोग आदि वाले आकारान्त एवं यण्वान्) धातु से (नि पूर्वक वृ धातु से) धान्यविशेष को कहना हो तो उत्तर (निष्ठा के तकार को नकारादेश होता है)। कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। धातो: - VIH. ii.64 ...घाय्याः -III. I. 129 (मकारान्त) धातु (पद) को (नकारादेश होता है)। देखें- पाय्यसान्नाय्य०- III. I. 129 धातो: -VIII. 1.74 ...धारि - III. I. 138 (सकारान्त पद) धातु को (सिप परे रहते विकल्प से रु . देखें-लिम्पविन्द III. I. 138 आदेश होता है)। ...धारि... - III. ii. 46 धातौ -III. ii. 155 देखें - मृतव० III. ii. 46 (संभाषण अर्थ के कहने वाला) धातु उपपद हो (तो धारे: -I. iv. 35 यत् शब्द उपपद न होने पर सम्भावन अर्थ में वर्तमान णिजन्त धन धात के (प्रयोग में जो उत्तमर्ण है. वह धातु से विकल्प से लिङ् प्रत्यय होता है, यदि अलम् शब्द । कारक सम्प्रदान-संज्ञक होता है)। का अप्रयोग सिद्ध हो)। ...धार्थप्रत्यये-III. iv. 62 घातौ - VI.i. 89 देखें-नाधार्थप्रत्यये-III. iv. 62 (अवर्णान्त उपसर्ग से उत्तर ऋकारादि) धातु के परे रहते ...धाय्यों: -III. ii. 130 (पूर्व,पर दोनों के स्थान में वृद्धि एकादेश होता है,संहिता देखें - इचार्यो: III. ii. 130 के विषय में)। धावति - IV. iv. 37 धात्वर्थे -v.i. 116 (द्वितीयासमर्थ माथ शब्द उत्तरपदवाले प्रातिपदिक से धात के अर्थ में वर्तमान (उपसर्ग से स्वार्थ में वति तथा पदवी, अनुपद प्रातिपदिकों से) 'दौड़ता है'- अर्थ प्रत्यय होता है, वेदविषय में)। में (ढक प्रत्यय होता है)। धात्वादेः -VI..62 धि - VIII. ii. 25 धातु के आदि के (षकार के स्थान में उपदेश अवस्था कारादि प्रत्यय के परे रहते (भी सकार का लोप होता में सकार आदेश होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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