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________________ 313 दण्डव्यवसर्गयोः दः -V. iii. 72 ...दक्षिणात् - V.i. 68 (ककारान्त अव्यय को अकच् प्रत्यय के साथ-साथ) देखें-कडङ्करदक्षिणात् V. 1.68 दकारादेश भी होता है। ...दक्षिणात् - V. iii. 34 दः-VI. iii. 123 देखें-उत्तराधरo Vii. 34 दा के स्थान में (हुआ जो तकारादि आदेश, उसके परे । दक्षिणात् -V. iii. 36 रहते इगन्त को दीर्घ होता है)। (दिशा, देश तथा काल अर्थों में वर्तमान सप्तमी, . द: - VII. ii. 109 प्रथमान्त दिशावाची) दक्षिण प्रातिपदिक से (आच् प्रत्यय (इदम् के) दकार के स्थान में (भी मकारादेश होता है, होता है)। - विभक्ति परे रहते)। दक्षिणापश्चात्पुरसः - Iv.ii.97 द:-VII. iv.46 दक्षिणा, पश्चात् तथा पुरस प्रातिपदिकों से (शैषिक (घुसज्ञक) दा धातु के स्थान में (दद् आदेश होता है, त्या प्रत्यय होता है)। तकारादि कित् प्रत्यय परे रहते)। दक्षिणेर्मा-v. iv. 126 दः -VIII. ii. 42 रेफ तथा दकार से उत्तर निष्ठा के तकार को नकारादेश (बहुव्रीहि समास में व्याध का सम्बन्ध होने पर) दक्षि णेर्मा शब्द अनियत्ययान्त निपातन किया जाता है। होता है तथा निष्ठा के तकार से पूर्व के) दकार को (भी नकारादेश होता है)। दक्षिणोत्तराभ्याम् -v. iii. 28 (दिशा, देश और काल अर्थों में वर्तमान सप्तम्यन्त, दः-VII: ii. 72 पञ्चम्यन्त तथा प्रथमान्त दिशावाची) दक्षिण तथा उत्तर (सकारान्त वस्वन्त पद को तथा उसु,ध्वंसु एवं अनडुह प्रातिपदिकों से (स्वार्थ में अतसच प्रत्यय होता है)। पदों को) दकारादेश होता है। ...दजच्... -IV.i. 15 दः-VIII. ii. 75 देखें - टिड्डाण IV.i. 15 दकारान्त (पद् धातु को भी सिप् परे रहते विकल्प से ...दनच... -v.ii. 37 रु आदेश होता है)। देखें-द्वयसदजच V.ii.37 द: - VIII. ii. 80 दण्ड.. - V. iv. 2 (असंकारान्त अदस् शब्द के दकार से उत्तर जो वर्ण देखें - दण्डव्यवसर्गयो: V. iv. 2 उसके स्थान में उवर्ण आदेश होता है तथा) दकार को दण्डमाणव... - IV. iii. 129 (मकारादेश भी होता है)। देखें - दण्डमाणवान्तेवासिषु IV. iii. 129 ...दक्षिण... -I.i. 33 दण्डमाणवान्तेवासिषु - IV. iii. 129 देखें-पूर्वपरावरदक्षिणोत्तरापराधराणि I. I. 33 (षष्ठीसमर्थ गोत्रवाची प्रातिपदिकों से 'इदम्' अर्थ में) दक्षिण... - V. iii. 28 दण्डमाणव तथा अन्तेवासी अभिधेय हों (तो वुञ् प्रत्यय देखें - दक्षिणोत्तराभ्याम् V. i. 28 नहीं होता)। । ...दण्डयो: -V.1. 109 दक्षिणा... - IV. ii. 98 देखें - दक्षिणापश्चात्० IV. i. 98 देखें - मन्थदण्डयो: V. 1. 109 दण्डव्यवसर्गयो: - V.iv.2 दक्षिणां - V.i.94 दण्ड तथा व्यवसर्ग =दान गम्यमान हो तो (पाद तथा (षष्ठीसमर्थ यज्ञ की आख्यावाले प्रातिपदिकों 'दक्षिणा' शत-शब्दान्त सङ्ख्या आदि वाले प्रातिपदिकों से भी वुन् '= यज्ञ समाप्ति पर पुरोहित को दिया जाने वाला द्रव्य प्रत्यय होता है तथा पाद और शत के अन्त का लोप भी अर्थ में (यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है)। हो जाता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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