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________________ ...तृतीयाभ्याम् 306 अव्यय के साथ ही विकल्प से तत्परुष समास को प्राप्त होते है)। ...तृतीयाभ्याम् -VII. iii. 115 देखें-द्वितीयातृतीयाभ्याम् VII. iii. 115 तृतीयाया: - V. iv. 46 (अतिग्रह, अव्यथन तथा क्षेप विषयों में वर्तमान) तृतीयाविभक्त्यन्त प्रातिपदिक से विकल्प से तसि प्रत्यय होता है, यदि वह तृतीया कर्ता में न हो तो)। अतिग्रह = दुर्बोध। अव्यर्थक = पीड़ा का न होना, साँप। क्षेप = निन्दा तृतीयाया: - VI. ii. 153 ततीयान्त से परे (उत्तरपद ऊनार्थवाची एवं कलह शब्द को अन्तोदात्त होता है)। तृतीयाया: - VI. ill. 3 (ओजस्, सहस, अम्भस् तथा तमस् शब्द से उत्तर) तृतीया विभक्ति का (उत्तरपद परे रहते अलुक् होता है)। तृतीयायाम् - III. iv. 47 ततीयान्त शब्द उपपद रहते (उपपूर्वक दंश् धातु से णमुल् प्रत्यय होता है)। तृतीयायुक्तात् -1. iii. 54 तृतीयाविभक्ति से युक्त (सम् पूर्वक चर् धातु) से (आत्मनेपद होता है)। तृतीयार्थे -I. iv. 84 तृतीयार्थ के द्योतित होने पर (अनु कर्मप्रवचनीय तथा निपातसंज्ञक होता है)। तृतीयासप्तम्यो: – II. iv. 84 तृतीया और सप्तमी विभक्ति के (सप के) स्थान में (अदन्त अव्ययीभाव से उत्तर अम आदेश होता है.बहल करके)। तृतीयासमासे -I.1.29 तृतीया तत्पुरुष समास में (सर्वादियों की सर्वनाम संज्ञा नहीं होती)। ...तृद... - VII. ii. 57. देखें-कृतवृत० VII. ii. 57 ...तदोः -III. iv. 17 देखें - सृपितृदोः III. iv. 17 तन् -III. ii. 135 (तच्छीलादि कर्ता हों तो वर्तमानकाल में धातुमात्र से) तृन् प्रत्यय होता है। तृन्... - VI. ii. 161 देखें- तन्नन्न VI. ii 161 ...तन्.. -VI. iv. 11 देखें - अप्तन्तच VI. iv. 11. ...तनाम् -II. iii. 69 देखें -लोकाव्ययनिष्ठा0 II. iii. 69 तन्नन्नतीक्ष्णशुचिषु - VI. ii. 161 (नज से उत्तर) तन्प्रत्ययान्त एवं अन्न,तीक्ष्ण तथा शुचि उत्तरपद शब्दों को विकल्प से अन्तोदात्त होता है)। ...तृप्र.. - VI. iv. 157 देखें - प्रियस्थिर० VI. iv. 157 तषि... -I. ii. 25 देखें-तृषिमृषिक: I. 1. 25 तषिमूषिकशे: -I. ii. 25 तृष.मृष,कृश् धातुओं से परे (सेट् क्त्वा प्रत्यय काश्यप आचार्य के मत में विकल्प कित् नहीं होता है)। ...तृषोः -III. ii. 172 देखें - स्वपितृ III. ii. 172 ...तृषोः - III. iv. 57 देखें - अस्यतितृषोः III. iv. 57 ...तृ... - III. ii. 46 देखें-भृतवृ० III. ii. 46 ... -III. iii. 120 देखें - तृस्त्रोः III. iii. 120 तृ... - VI. iv. 122 देखें - तृफलमज० VI. iv. 122 तृस्त्रोः - III. iii. 120 (अवपूर्वक) तृ,स्तृ धातुओं से (करण और अधिकरण कारक में संज्ञाविषय में प्रायः घञ् प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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