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________________ 304 ...तृण... तुल्यम् -V.i. 114 ...तूर्य... - II. iv.2 (तृतीयासमर्थ प्रातिपदिकों से) 'समान' अर्थ में (वति देखें - प्राणितूर्यसेनाङ्गानाम् II. iv. 2 प्रत्यय होता है.यदि वह समानता क्रिया की हो तो)। ....तूल... -III. 1.25 तुल्ययोगे-II. ii. 28 देखें – सत्यापपाश० III. 1. 25 तुल्ययोग में वर्तमान (सह अव्यय तृतीयान्त सुबन्त के साथ समास को प्राप्त होता है) और वह समास बहुव्रीहि ...तूल... -VI. ii. 121 सञ्जक होता है)। देखें - कूलतीर० VI. ii. 121 ...तुल्याख्या-II.i.67 ...तूल... - VI. iii. 64 देखें-कृत्यतुल्याख्या II.i.67 देखें - चिततूलभारिषु VI. ii. 64 . तुल्यार्थ... - VI. ii. 2 तूष्णीमि - III. iv. 63 देखें - तुल्यार्थतृतीया० VI. ii. 2 तूष्णीम् शब्द उपपद हो (तो भू धातु से क्त्वा, णमुल. तुल्यार्थतृतीयासप्तम्युपमानाव्ययद्वितीयाकृत्याः - प्रत्यय होते है)। VI. ii. 2 ...तूस्तेभ्यः - III. I. 21 (तत्पुरुष समास में) तुल्य अर्थवाले तृतीयान्त,सप्तम्यन्त देखें - मुण्डमिश्र III. 121 . उपमानवाची अव्यय, द्वितीयान्त तथा कृत्यप्रत्ययान्त पूर्व तु-VI. iv. 127 पद में स्थित शब्दों को (प्रकृतिस्वर होता है)। . (अर्वन् अङ्ग को) तृ आदेश होता है, (यदि अर्वन् शब्द तुल्याएं: -II. iii. 72 तुल्यार्थक शब्दों के योग में (शेष विवक्षित होने पर से परे सु न हो तथा वह अर्वन् शब्द नञ् से उत्तर भी न तृतीया विभक्ति विकल्प से होती है;पक्ष में षष्ठी भी,तुला हो)। और उपमा को छोड़कर)। तृच्... -II. ii. 15 तुल्यास्यप्रयत्नम् -1.1.9 . देखें-तृजकाभ्याम् II. ii. 15 मुख में होने वाले स्थान और प्रयत्न तुल्य हों जिनके. ...तृ... - VI. iv. 11 ऐसे वर्णों की (परस्पर सवर्ण संज्ञा होती है)। देखें - अतुन्तच्० VI. iv. 11 ...तुष... - VI. ii. 82 ...तच: -III. iii. 169 देखें-दीर्घकाश VI. 1. 82 देखें - कृत्यतृचः III. iii. 169 तुस्मा :-I.iii.4 ...तृचौ -III. 1. 133 विभक्ति में वर्तमान) तवर्ग,सकार और मकार (अन्तिम देखें - ण्वुल्तृचौ III. 1. 133 हल होते हुये भी इत्संज्ञक नहीं होते)। तृजकाभ्याम् - II. ii. 15 तुह्योः -VII. 1.35 - (कर्ता में विहित) तृच् और अकप्रत्ययान्त (सुबन्त) के (आशीर्वाद-विषय में) तु और हि के स्थान में (तात साथ (कर्म में जो षष्ठी,वह समास को प्राप्त नहीं होती)। आदेश होता है,विकल्प करके)। तूदी... - IV. it. 94 तृवत् -VII. 1.95 देखें-तूदीशलातुर0 V. ii. 94 (सम्बुद्धि-भिन्न सर्वनामस्थान परे रहते तुन्प्रत्ययान्त तूदीशलातुरवर्मतीकूचवारात् - IV.ili.94 क्रोष्टु शब्द) तृच् के समान अर्थात् तृचत्ययान्त की तरह तूदी, शलातुर, वर्मती तथा कुंचवार प्रातिपदिकों से हो जाता है। (यथासङ्ख्य करके ढक्,छण, ढञ् तथा यक् प्रत्यय होते ...तृण... -II. iv. 12 हैं, इसका अभिजन' विषय में)। देखें-वृक्षमृगतृणधान्य. II. iv. 12 .
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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