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________________ तद्धितः 291 तद्राजा तद्धितः - IV.i. 17 साथ विकल्प से समास होता है और वह तत्पुरुष समास (अनुपसर्जन यजन्त प्रातिपदिकों से स्त्रीलिङ्ग में प्राचीन होता है)। आचार्यों के मत में एक प्रत्यय होता है और वह) तद्धित तद्धिते-VI.1.60 संज्ञक होता है। (यकारादि) तद्धित के परे रहते (भी शिरस शब्द को तद्धितलुकि -I. ii. 49 शीर्षन आदेश हो जाता है)। • तद्धितप्रत्यय के लुक होने पर (उपसर्जन स्त्रीप्रत्यय का तद्धिते – VI. ii. 61 लुक् होता है)। . (एक शब्द को) तद्धित परे रहते (तथा उत्तरपद परे रहते तद्धितलुकि -IN.i. 22 ह्रस्व होता है)। (अकारान्त अपरिमाण, बिस्ता, आचित और कम्बल्य तद्धिते - VI. iv. 144 अन्त वाले द्विगुसंज्ञक प्रातिपदिकों से) तद्धित के लुक हो (भसज्ज्ञक नकारान्त अङ्ग के टि भाग का लोप होता जाने पर (स्त्रीलिङ्ग में ङीप् प्रत्यय नहीं होता)। है); तद्धित प्रत्यय परे रहते। तद्धितस्य - VI. 1. 158 तद्धिते - VI. iv. 151 तद्धित जो (चित् प्रत्यय,उसको (अन्तोदात्त हो जाता है)। (हल् से उत्तर भसञक अङ्ग के अपत्य-सम्बन्धी यकार तखितस्य - VI. III. 38 का भी लोप होता है, अनाकारादि) तद्धित परे रहते। (वद्धिका कारण हो जिस तद्धित में.ऐसा) तद्धित (यदि रक्त तथा विकार अर्थ में विहित न हो तो) तदन्त (स्त्री (हस्व इण से उत्तर सकार को तकारादि) तद्धित परे रहते शब्द) को (भी पुंवद्भाव नहीं होता)। (मूर्धन्य आदेश होता है)। तद्धितस्य -VI. iv. 150 . तद्धितेषु - VII. ii. 117 (हल् से उत्तर भसञक अङ्ग के उपधाभूत) तद्धित के जित,णित) तद्धित परे रहते (अङ्ग के अचों के आदि (यकार का भी ईकार परे रहते लोप होता है)।। अच् को वृद्धि होती है)। तद्धिताः - IV.1.76 ...तद्भ्यः - VI. I. 162 (यहां से आगे पञ्चमाध्याय की समाप्ति तक जो भी देखें-इदमेतत०VI. ii. 162 प्रत्यय कहेंगे,उनकी) तद्धित संज्ञा होती है। (यह अधि तधुक्तात् - V.ili.77 कार सूत्र है)। (नीति' गम्यमान हो तो भी) उस अनुकम्पा से सम्बद्ध तद्धिता -VI. ii. 155 प्रातिपदिक तथा तिङन्त से (यथाविहित प्रत्यय होते है)। (गण के प्रतिषेध अर्थ में वर्तमान नब से उत्तर संपादि, तधुक्तात् -V.iv. 36 अर्ह, हित, अलम् अर्थवाले) तद्धित प्रत्ययान्त (उत्तरपद उस प्रकाशित वाणी से युक्त (कर्म) प्रातिपदिक को अन्तोदात्त होता है)। से (स्वार्थ में अण् प्रत्यय होता है)। तद्धितार्थ... - II. 1. 50 तद्राजस्य -II. iv.62 देखें - तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे II. 1. 50 तद्राजसंज्ञक प्रत्ययों का (बहुत्व में वर्तमान होने पर लुक तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे – II. 1. 50 होता है, यदि तद्राजकृत बहुत्व हो तो, स्त्रीलिङ्ग को छोड़कर)। तद्धितार्थ का विषय उपस्थित होने पर,उत्तरपद परे रहते तथा समाहार वाच्य होने पर (भी दिशावाची तथा तद्राजा: -IV. . 172 सङ्ख्यावाची सुबन्तों का समानाधिकरणवाची सबन्तों के (उन अजादि प्रत्ययों की) तद्राज संज्ञा होती है।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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