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________________ तात्ययात् 289 तथोः पूर्वपद को तो विकल्प से होती है; जित,णित,कित् तद्धित प्रत्यय परे रहते)। तठात्ययात् - IV. iii. 152 विकार और अवयव अर्थों में विहित (जो जित् प्रत्यय, तदन्त षष्ठीसमर्थ) प्रातिपदिक से (भी विकार और अवयव अर्थों में ही अब् प्रत्यय होता है)। ततायोजक:-I. iv. 55 उस स्वतन्त्र कर्ता का प्रेरक (कारक हेतुसंज्ञक और कर्त- संज्ञक भी होता है)। तत्र -II. I. 45 (सप्तम्यन्त) तत्र' यह अव्यय शब्द (क्तप्रत्ययान्त समर्थ सुबन्त के साथ विकल्प से समास को प्राप्त होता है और वह समास तत्पुरुषसंज्ञक होता है)। तत्र-II. ii. 27. सप्तम्यन्त (तथा तृतीयान्त समान रूप वाले दो सुबन्त परस्पर इदम् = इस अर्थ में विकल्प से समास को प्राप्त प्राप्त होते हैं और वह बहुव्रीहि समास होता है)। तत्र-II. iii.9 जिससे अधिक हो और जिसका सामर्थ्य हो) उस (कर्म- प्रवचनीय के योग) में (सप्तमी विभक्ति होती है)। तत्र-III. 1.92 इस धातु के अधिकार में (जो सप्तमी विभक्ति से निर्दिष्ट पद हैं, उनकी उपपद संज्ञा होती है)। तत्र -V.ii. 13 'सप्तमीसमर्थ (पात्रवाची) प्रातिपदिकों से भोजन के पश्चात् अवशिष्ट (शुद्ध अन्न) अर्थ में यथाविहित (अण) प्रत्यय होता है। तत्र - IV. iii. 25 सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिकों से (उत्पन्न हुआ अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है)। तत्र - IV. iii. 53 सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिक से (होने वाला' अर्थ में यथा- विहित प्रत्यय होता है)। तत्र-IV. iv.69 . सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिक से (नियुक्त अर्थ में ठक् प्रत्यय होता है)। तत्र - IV. iv. 98 सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिक से (साधु = कुशल अर्थ को कहने में यत् प्रत्यय होता है)। तत्र -V.i. 42 सप्तमीसमर्थ (सर्वभूमि और पृथिवी प्रातिपदिकों से 'प्रसिद्ध' अर्थ में भी यथासङ्ख्य करके अण तथा अञ् प्रत्यय होते है)। तत्र -V.i.95 सप्तमीसमर्थ (कालवाची) प्रातिपदिकों से (दिया जाता है' और 'कार्य' अर्थों में 'भव' अर्थ के समान ही प्रत्यय हो जाते है)। तत्र -v.i. 115 सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिकों (तथा षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिकों से 'समान' अर्थ में वति प्रत्यय होता है)। तत्र-V.1.3 सप्तमीसमर्थ पथिन् प्रातिपदिक से (कुशल अर्थ में वुन् प्रत्यय होता है)। ...तत्साधकारिषु-III. ii. 134 . देखें-तच्छीलतदधर्म III. 1. 134 ...तत्स्थयो: - IV. ii. 133 देखें - मनुष्यतत्स्थयोः IV. 1. 133 . ... तथयो:-III. iv. 28 देखें - यथातथ्योः III. iv, 28 तथा -I. iv. 50 (जिस प्रकार कर्ता का अत्यन्त ईप्सित कारक क्रिया के साथ युक्त होता है) उस प्रकार (ही कर्ता का न चाहा हआ कारक क्रिया से युक्त हो तो उसकी कर्म संज्ञा होती है)। तथासो: -II. iv.79 त और थास परे रहते (तनादि धातुओं से उत्तरवर्ती सिच का विकल्प से लुक होता है)। तथो: - VIII. ii. 38 (झषन्त दध् धातु के बश् के स्थान में भष् आदेश होता है) तकार तथा थकार परे रहते (तथा झलादि सकार एवं ध्व परे रहते भी)। -0
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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