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________________ 273 ट्वितः टीटच्.. - V. ii. 31 टे: -VII.i. 88 देखे - टीटाटच्० v. ii. 31 (पथिन्, मथिन् तथा ऋभुक्षिन् भसञक अङ्गों के) टीटनाटनटचः -v.ii. 31 टिभाग का (लोप होता है)। (आ उपसर्ग प्रातिपदिक से 'नासिकासम्बन्धी झुकाव टे-VIII. ii. 82 को कहना हो तो सञ्जाविषय में) टीटच, नाटच तथा (यह अधिकारसूत्र है। पाद की समाप्तिपर्यन्त सर्वत्र घंटच् प्रत्यय होते हैं। 'वाक्य के) टिभाग को (प्लुत उदात्त होता है' ऐसा अर्थ ....... - I. iii. 5 होता जायेगा। देखें - बिटुडवः I. iii.5 टे-VIII. ii. 89 ....८: - VIII. iv. 40 (यज्ञकर्म में अन्तिम पद की) टिभाग को (प्रणव अर्थात ओम आदेश होता है और वह प्लुत उदात्त होता है)। देखें- VIII. iv.40 टेण्यण - V. iii. 115 ....टुक् - VIII. iii. 28 (शस्त्रों से जीविका कमाने वाले पुरुषों के समूहवाची देखें - कुक्टुक् VIII. iii. 28 वृकं प्रातिपदिक से स्वार्थ में) टेण्यण् प्रत्यय होता है। ...टू-I. iii.7 टो: - VIII. iv. 41 देखें - चुटू i. ii.7 (पदान्त) टवर्ग से उत्तर (सकार और तवर्ग को षकार टे-III. iv.79 और टवर्ग नहीं होता, नाम् को छोड़कर)। (टित् अर्थात् लट्, लिट्, लुट, लट्, लेट, लोट् लकारों ट्यण् - IV. ii. 29 के जो आत्मनेपद त,आताम,झ आदि आदेश,उनके) टि (प्रथमासमर्थ देवतावाची सोम शब्द से षष्ठ्यर्थ में) भांग को (एकार आदेश हो जाता है)। ' ट्यण् प्रत्यय होता है। टे- V. iii. 71 ट्यु... - IV. iii. 23 (अव्यय तथा सर्वनामवाची प्रातिपदिकों से एवं तिङन्तों .. देखें - ट्युट्युलौ० V. ii. 23 . से इवार्थ से पहले पहले अकच् प्रत्यय होता है और वंह) टि भाग से (पूर्व होता है)। ट्युट्युलौ - IV. iii. 23 (कालवाची सायं चिरं प्राहे. प्रगे तथा अव्यय प्रातिपटे-VI.ii.91 दिकों से) ट्यु तथा ट्युल प्रत्यय होते हैं (तथा इन प्रत्ययों - (विष्वग तथा देव शब्दों के तथा सर्वनाम शब्दों के) को तुट आगम भी होता है)। टिभाग को (अद्रि आदेश होता है, वप्रत्ययान्त अञ्जु धातु ...ट्युलौ - IV. iii. 23 के परे रहते)। देखें - ट्युट्युलौ IV. iii. 23 टे-VI. iv. 143 ट्ल - IV. iii. 139 (भसज्जक अङ्ग के) टि भाग का (लोप होता है, डित् (षष्ठीसमर्थ शमी प्रातिपदिक से विकार और अवयव प्रत्यय के परे रहते)। अर्थों में) टल प्रत्यय होता है। टे: - VI. iv. 155 ट्वित: - III. iii. 89 (इष्ठन्, इमनिच् तथा ईयसुन् परे रहते भसञक अङ्ग टु इत्संज्ञक है जिन धातुओं का,उनसे (कर्तृभिन्न कारक के) टि भाग का (लोप होता है)। संज्ञा तथा भाव में अथुच् प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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