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________________ छन्दसि 257 छन्दसि १जानाशाप. . . छन्दसि - VI.i. 129 (स्यः शब्द के सु को) वेदविषय में (हल् परे रहते बहुल करके लोप हो जाता है)। । छन्दसि -VI. 1. 164 (अञ्च धातु से उत्तर) वेदविषय में (सर्वनामस्थानभिन्न विभक्ति उदात्त होती है)। छन्दसि - VI.i. 172 वेदविषय में (ड्यन्त शब्द से उत्तर बहुल करके नाम् विभक्ति उदात्त होती है)। छन्दसि -VI.i. 203 . (जुष्ट तथा अपित शब्दों को भी) वेदविषय में (विकल्प से आधुदात्त होता है)। छन्दसि -VI. ii. 119. (बहुव्रीहि समास में सु से उत्तर दो अच् वाले आधुदात्त शब्द को) वेदविषय में (आधुदात्त ही होता है)। छन्दसि -VI. . 164 वेदविषय में (संख्या शब्द से परे स्तन शब्द को बहुव्रीहि समास में विकल्प से अन्तोदात्त होता है)। छन्दसि - VI. ii. 199 'वेटविषय में उत्तरपद (पर=सक्थ शब्द के आदि को बहुल करके अन्तोदात्त होता है)। छन्दसि-VI. iii. 32 . पितरामातरा यह शब्द भी) वेदविषय में (निपातन किया जाता है)। छन्दसि-VI. iii. 83 वेदविषय में (समान शब्द को स आदेश हो जाता है; मूर्धन, प्रभृति,उदर्क उत्तरपद न हो तो)। छन्दसि -VI. iii. 95. (माद तथा स्थ उत्तरपद रहते) वेदविषय में (सह शब्द को सध आदेश होता है)। छन्दसि -VI. iii. 107 (पथिन शब्द उत्तरपद रहते भी) वेदविषय में को 'कव' तथा 'का' आदेश विकल्प करके होते हैं)। छन्दसि -VI. iii. 125 वेदविषय में (भी अष्टन् शब्द को दीर्घ हो जाता है, उत्तरपद परे रहते)। छन्दसि -VI. iv.5 वेदविषय में (तिस, चतसृ अङ्ग को दोनों प्रकार से अर्थात् दीर्घ एवं अदीर्घ देखा जाता है)। छन्दसि -VI. iv. 58 वेद-विषय में (यु मिश्रणे' तथा 'प्लुङ् गतौ' धातु को दीर्घ होता है,ल्यप परे रहते)। छन्दसि - VI. iv.73 , वेद-विषय में (भी आट् आगम देखा जाता है)। छन्दसि - VI. iv.75 (लुङ, लङ, लुङ् परे रहने पर) वेद-विषय में (माङ् का योग होने पर अट् आट् आगम बहुल करके होते हैं; और माङ् का योग न होने पर भी नहीं होते)। छन्दसि -VI. iv. 86 (पू तथा सुधी अों को) वेद-विषय में (दोनों प्रकार से देखा जाता है)। छन्दसि - VI. iv. 98 (तन् तथा पत् अङ्ग की उपधा का लोप होता है। वेदविषय में (अजादि कित्, डित् प्रत्यय परे रहते)। छन्दसि-VI. iv. 102 (श्रु,श्रृणु, पृ.कृ तथा वृ से उत्तर) वेद-विषय में (हि को धि आदेश होता है)। छन्दसि -VI. iv. 162 (ऋजु अङ्गके ऋकार के स्थान में विकल्प से र आदेश होता है) वेद-विषय में; (इष्ठन्, इमनिच, ईयसुन् परे रहते)। छन्दसि - VI. iv. 175 (ऋत्य वास्त्व्य, वास्त्व,माध्वी, हिरण्यय-ये शब्दरूप निपातन किये जाते है) वेद-विषय में। छन्दसि -VII.1.8 वेद-विषय में (झादेश अत् को बहल करके रुट आगम होता है)। छन्दसि - VII.i. 10 वेद-विषय में (अकारान्त अङ्ग से उत्तर बहुल करके भिम् को ऐस आदेश होता है। -
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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