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________________ 252 8 . चौरे -v.i. 112 ...च्चि... -I.iv.60 (प्रयोजन समानाधिकरणवाची प्रथमासमर्थ एकागार देखें - ऊर्यादिच्चिडाच: I. iv.60 प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में 'ऐकागारिकट' शब्द का निपा- च्चि: -V.iv.50 तन किया जाता है), चोर अभिधेय होने पर। . (कृ, भू तथा अस् धातु के योग में सम्-पूर्वक पद् धातु च्छ्... - VI. iv. 19 के कर्ता में वर्तमान प्रातिपदिक से) च्चि प्रत्यय होता है)। देखें - छ्वो: VI. iv. 19 च्चौ-VII. iv. 16 च्छ्वोः -VI. iv. 19 च्चि प्रत्यय परे रहते (भी अजन्त अङ्ग को दीर्घ होता है)। च्छ तथा व् के स्थान में (यथासङ्ख्य करके श् और ऊठ् आदेश होते हैं; अनुनासिक प्रत्यय, क्वि तथा झलादि चौ -VII. iv. 32 कित् डित् प्रत्ययों के परे रहते)। (अवर्णान्त अङ्ग को) च्चि परे रहते (ईकारादेश होता है)। च्क -IV.i.98 व्यर्थे - III. iv. 62 (गोत्रापत्य में षष्ठीसमर्थ कुआदि प्रातिपदिकों से)च्फ प्रत्यय होता है। व्यर्थ में वर्तमान (नाधार्थ प्रत्ययान्त शब्द उपपद हों ...च्कजोः - V.iti. 113 तो कृ, भू धातुओं से क्त्वा और णमुल् प्रत्यय होते हैं)। देखें-वातच्यत्रोः -V. iii. 113 व्यर्थेषु - III. ii. 56 ...च्यवतीनाम् - VII. iv.81 च्व्यर्थ में वर्तमान (अच्च्यन्त 'कृ' धातु से करण कारक देखें-प्रवतिशृणोति VII. iv. 81 में 'ख्युन' प्रत्यय होता है); आढ्य,सुभग, स्थूल,पलित, चिल: -III.i. 43 नग्न, अन्ध तथा प्रिय कर्म के उपपद रहते)। (धातुमात्र से) च्लि प्रत्यय होता है, (लुङ् परे रहते)। ....च्च्योः - IV. iv. 152 च्ले: - III.i.44 च्लि के स्थान में (सिच् आदेश होता है)। देखें - क्यव्यो : VI. iv. 152 , ...छ... -VI. iv. 19 देखें - च्छ्वोः VI. iv. 19 छ - प्रत्याहारसूत्र XI आचार्य पाणिनि द्वारा अपने ग्यारहवें प्रत्याहार सूत्र में पठित तृतीय वर्ण। पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का बत्तीसवां वर्ण। . छ - IV.i. 149 (फिजन्त वृद्धसंज्ञक प्रातिपदिक सौवीर गोत्रापत्य से कत्सित युवापत्य को कहने में) छ (तथा ठक्) प्रत्यय (बहुल करके) होता है। छ -V.ii. 27 (प्रथमासमर्थ देवतावाची अपोनप्त तथा अपांनप्त शब्दों से) छ प्रत्यय (भी) होता है। छ - IV. ii. 31 (प्रथमासमर्थ देवतावाची द्यावापृथिवी, शुनासीर, मरुत्वत्, अग्नीषोम, वास्तोष्पति, गृहमेध प्रातिपदिकों से) छ (तथा यत्) प्रत्यय (होते हैं)। (तथा यत् प्रत्यय छ - IV. iv. 14 (तृतीयासमर्थ आयुध प्रातिपदिक से) छ (तथा ठन) प्रत्यय (होते हैं)। छ - V.i. 39 (षष्ठीसमर्थ पुत्र प्रातिपदिक से 'कारण' अर्थ में) छ प्रत्यय (तथा यत् प्रत्यय होते हैं,यदि वह कारण संयोग अथवा उत्पात हो तो)। छ -V.i.68 द्वितीयासमर्थ कडकर और दक्षिणा प्रातिपदिकों से 'समर्थ है' अर्थ में) छ (और यत्) प्रत्यय (होते हैं)। '08
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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