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________________ 247 चवायोगे ...चर: -III. ii. 136 देखें- अलंकृञ् III. I. 136 ...चरः -III. ii. 184 देखें- अतिलघू III. ii. 184 ...चरकात्-IV. iii. 107 देखें-कठचरकात् IV. iii. 107 ...चरकाभ्याम् -V.I. 10 देखें-माणक्चरकाभ्याम् V... 10 चरट् - V. iii. 53 (भूतपूर्व अर्थ में वर्तमान प्रातिपदिक से) चरट् प्रत्यय होता है)। ....चरणात् - IV. i. 125 देखें - गोत्रचरणात् IV. iii. 125 . ...चरणात् V. 1. 133 देखें- गोत्रचरणात् V.I. 133 चरणानाम् -II. iv.3 (अनुवाद गम्यमान होने पर) चरणवाचियों का (द्वन्द्व एकवद् होता है)। चरणे - VI. III. 85 चरण गम्यमान हो तो (ब्रह्मचारी शब्द के उत्तरपद रहते समान शब्द को स आदेश हो जाता है)। चरणेभ्यः - IV. ii. 45 - (षष्ठीसमर्थ) चरणवाची प्रातिपदिकों से (समूह अर्थ में किये जाने वाले अर्थ में प्रत्यय होते हैं)। चरति -IV. iv.8 (तृतीयासमर्थ प्रातिपदिकों से) आचरण करता है.चलता है अर्थ में (ठक् प्रत्यय होता है)। चरति - IV. iv. 41 द्वितीयासमर्थ धर्म प्रातिपदिक से) आचरण करता हैअर्थ में (ठक् प्रत्यय होता है)। चरफलो: - VII. iv.87 'चर गतौ' तथा 'त्रिफला विशरणे' अङ्ग के (अभ्यास को भी यङ् तथा यङ्लुक् परे रहते नुक् आगम होता है)। ...चरम... -I.1.32 देखें-प्रथमचरमतयाल्पार्धकतिपयनेमाः I.1.32 ...चरम..-II. 1.57 देखें - पूर्वापरप्रथम II. 1. 57 ...चरि -III. iv. 16 देखें-स्थेण्कृञ् III. iv. 16 चरे: -III. ii. 16 'चर्' धातु से (अधिकरण सुबन्त उपपद रहते 'ट' प्रत्यय होता है)। ....चरो: -III. i. 15 देखें- वर्तिचरोः III. I. 15 ...चर्च: -III. iii. 105 देखें-चिन्तिपूजि० III. iii. 105 चर्म... -III. iv. 31 देखें - चर्मोदरयोः III. iv. 31 । चर्मणः - V.i. 15 (चतुर्थीसमर्थ) चर्म के (विकृतिवाची) प्रातिपदिक से (विकृति के लिए प्रकृति' अभिधेय होने पर 'हित' अर्थ में अञ् प्रत्यय होता है)। चर्मण्वती-VIII. ii. 12 चर्मण्वती शब्द का निपातन किया जाता है। चर्मोदरयोः -III. iv. 31 चर्म तथा उदर कर्म उपपद रहते (ण्यन्त पूर धातु से णमुल् प्रत्यय होता है)। ...चर्विधिषु -I.1.57 देखें - पदान्तद्विर्वचनवरे० I. 1. 57 चलन..-III. 1. 148 देखें-चलनशब्दार्थात् III. 1. 148 चलनशब्दार्थात् - III. ii. 148 (अकर्मक) चलनार्थक और शब्दार्थक धातुओं से (तच्छीलादि कर्ता हो, तो वर्तमानकाल में युच् प्रत्यय होता ...चलनार्थेभ्यः -I. il.87 देखें - निगरणचलनार्थेभ्यः I. iii. 87 चवायोगे - VIII. 1. 59 च तथा वा के योग में (प्रथमोच्चरित दो तिङन्तों में प्रथम तिङन्त को अनुदात्त नहीं होता)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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