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________________ चडि चडि - VI. 1. 11 चङ् के परे रहते (धातु के अनभ्यास अवयव प्रथम एकाच् दृथा अजादि के द्वितीय एकाच को द्वित्व होता है) । चडि - VI. 1. 18 (णि स्वप् धातु को) चङ् प्रत्यय के परे रहते (सम्प्रसारण हो जाता है)। चङि - VI. 1. 212 चडन्त शब्द के (उपोत्तम को विकल्प करके उदात्त होता है) । चडि - VII. iv. 1 चपरक (णि के परे रहते अग की उपधा को ह्रस्व होता है। चडि - VIII. iii. 116 (स्तम्भु, षिवु तथा षह् धातु के सकार को) चङ् परे रहते (मूर्धन्य आदेश नहीं होता) । art-II. lv. 51 देखें - संश्चडोः II. iv. 51 ..चड. - VI. 1. 31देखें - संश्चडों: VI. 1. 31 .... चकम्य... - III. II. 150 देखें - जुचङ्क्रम्य... III. ii. 150 ड्रे - VII. iv. 93 चङ्परक (णि) परे रहते (अङ्ग के अभ्यास को लघु धात्वक्षर परे रहते सन् के समान कार्य होता है, यदि अन के अंक का लोप न हुआ हो तो)। चजो: VII. iii. 52 चकार तथा जकार के स्थान में (कवर्ग आदेश होता है; वित् तथा ण्यत् प्रत्यय परे रहते) । - चटकायाः IV. i. 128 चटका शब्द से (अपत्य अर्थ में ऐरक् प्रत्यय होता है)। चटका = चिड़िया । 245 - ... खण्... - VIII. 1. 30 देखें- यद्यदि० VIII. 1. 30 . चणपौ... V. ii. 26 देखें चुशुप्वणपौ Vii. 26 - . चतसृ - VI. iv. 4 देखें - तिसृचतस् VI. iv. 4 ...चतसु - VIL. II. 101 देखें - तिसुचतस् VII. I. 101 चतुर... - VII. 1. 98 देखें - चतुरनडुहो: VII. 1. 98 ... चतुर् - VIII III. 43 देखें द्विखश्चतुः VIII ii. 43 चतुरः - VI. 1. 161 चतुर् शब्द को (अन्तोदात्त होता है, शस् परे रहते) । चतुरनडुहो - - VII. i. 98 चतुर् तथा अनडुह अों को (सर्वनामस्थान विभक्ति परे रहते आम् आगम होता है, और वह उदात्त होता है) । - .. चतुरश्र... - V. Iv. 120 देखें - सुप्रातसुश्वo Viv. 120 .... चतुराम् - V. 1. 51 देखें षट्कतिo V. II. 51 - ... चतुर्थ... - II. II. 3 देखें - द्वितीयतृतीयचतुर्थ० II. I. 3 चतुर्थी - II. 1. 35 चतुर्थ्यन्त सुबन्त (तदर्थ, अर्थ, बलि, हित, सुख तथा रक्षित - इन समर्थ सुबन्तों के साथ विकल्प से समास को प्राप्त होता है, और वह तत्पुरुष समास होता है) । चतुर्थी III. 13 (अनभिहित सम्प्रदान कारक में) चतुर्थी विभक्ति होती है) । - चतुर्थी... चतुर्थी 11. III. 73 - (आशीर्वाद गम्यमान होने पर आयुष्य, मद्र, भद्र, कुशल, सुख अर्थ हित- इन शब्दों के योग में शेष विवक्षित होने पर विकल्प से) चतुर्थी विभक्ति होती है, (चकार से पक्ष में षष्ठी भी होती है)। चतुर्थी... - VI. ii. 43 चतुर्थी पूर्वपद को (चतुर्थ्यन्तार्थ के उत्तरपद रहते प्रकृतिस्वर होता है) ।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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