SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ....घाम् 200 घोषादिषु ...घाम्-VII.1.2 देखें-फडखछ्याम् VIL.1.2 घि-I.iv.7 (नदी संज्ञा से अवशिष्ट ह्रस्व इकारान्त.उकारान्त शब्दों की) घि सज्ञा होती है, (सखि शब्द को छोड़कर)। घि-II. ii. 32 घिसंज्ञक का (पूर्व प्रयोग होवे, द्वन्द्व समास में)। घित... - VII. iii. 52 देखें-पिण्ण्य तो: VII. iii. 52 घिण्ण्यतो: - VII. iii. 52 (चकार तथा जकार के स्थान में कवर्ग आदेश होता है) षित् तथा ण्यत् प्रत्यय परे रहते। घिनुण -III. I. 141 (शमादि आठ धातुओं से तच्छीलादि कर्ता हो तो वर्त- मान काल में) धिनुण प्रत्यय होता है। घु-I. 1. 18 (दाप लवने और दैप शोधने को छोड़कर दारूप वाली चार और धा रूप वाली दो धातुओं की) घु संज्ञा (होती घुरच् -III. ii. 161 (भञ्ज, भास, मिद् - इन धातुओं से तच्छीलादि कर्ता हो तो वर्तमानकाल में) घुरच प्रत्यय होता है। घुषि: -VII. 1. 23 (निष्ठा परे रहते) घुषिर् धातु (अविशब्दन अर्थ में अनिट् होती है)। विशब्दन = शब्दों द्वारा भावों का प्रकाशन । घे-VI. iv. 96 (जो दो उपसों से युक्त नहीं हैं, ऐसे छादि अङ्ग की . उपधा को) घ प्रत्यय परे रहने पर (हस्व होता है)। घे: - VII. iii. 111 घिसंज्ञक अङ्ग को (ङित् सुप् प्रत्यय परें रहते गुण होता है)। घे: - VII. iii. 118 (इकारान्त,उकारान्त अङ्ग से उत्तर डि को औकारादेश होता है, तथा) घिसंज्ञक को (अकारादेश भी होता है)। घो: -III. iii. 92 (उपसर्ग उपपद रहने पर) घुसंज्ञक धातुओं से कि प्रत्यय होता है)। घो: - VII. 1.70 घुसंज्ञक अङ्ग का (लेट् परे रहते विकल्प से लोप होता है)। ...पु... -II. iv.77 देखें - गातिस्थाधुपा० II. iv.77 घु... -VI. iv.66 देखें - घुमास्था० VI. iv.66 घु... -VI. iv. 119 देखें - ध्वसो: VI. iv. 119 ...घु... - VII. iv. 54 . देखें - मीमाधु० VII. iv. 54 ...घु... - VIII. iv. 17 देखें - गदनद० VIII. iv. 17 घुमास्थागापाजहातिसाम् -VI. iv. 66 घसंज्ञक.मा.स्था.गा.पा.ओहाक त्यागे तथा षो अन्त- कर्मणि- इन अङ्गों को (हलादि कित, डित् आर्धधातुक के परे रहते ईकारादेश होता है)। घो: -VII. iv.46 घुसंज्ञक (दा धातु) के स्थान में (दद् आदेश होता है; तकारादि कित् प्रत्यय परे रहते)। घोष.. - VI. iii. 55 देखें - घोषमिश्रशब्देषु VI. ii. 55 घोषमिश्राशब्देषु - VI. iii. 55 घोष, मिश्र तथा शब्द के उत्तरपद रहते (पाद शब्द को विकल्प करके पद् आदेश होता है)। घोषादिषु-VI. ii. 85 घोषादि शब्दों के उत्तरपद रहते (भी पूर्वपद को आधु"दात्त होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy