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________________ 190 गुपूधूपविच्छिपणिपनियः गुणः - VII. iv.57 (अकर्मक मुच्ल धातु को विकल्प से) गुण होता है, (सकारादि सन् प्रत्यय परे रहते)। गुणः -VII. iv.75 (णिजिर आदि तीन घातओं के अभ्यास को श्ल होने पर) गुण होता है। गुणः - VII. iv. 82 (यङ् तथा यङ्लुक् के परे रहते इगन्त अभ्यास को) गुण होता है। गुणकात्स्न्ये - VI. ii. 93 गुण की सम्पूर्ति अर्थ में वर्तमान (पूर्वपद सर्व शब्द को अन्तोदात्त होता है)। गुणप्रतिषेधे - VI. II. 155 गुणं के प्रतिषेध अर्थ में वर्तमान (नञ् से उत्तर संपादि, अर्ह, हित, अलम् अर्थ वाले तद्धितप्रत्ययान्त उत्तरपद को अन्तोदात्त होता है)। गुणवचन... -V.I. 123 देखें - गुणवचनब्राह्मणाo V. 1. 123 गुणवचनब्राह्मणादिभ्यः - V.i. 123 गुण को जिसने कहा, ऐसे तथा ब्राह्मणादि (षष्ठीसमर्थ) प्रातिपदिकों से (कर्म के अभिधेय होने पर तथा भाव में ष्यञ् प्रत्यय होता है)। गुणवचनस्य-VIII. 1. 12 (प्रकार अर्थ में वर्तमान) गुणवचन शब्दों को (द्वित्व होता है, और इसे कर्मधारयवत् कार्य भी होता है)। गुणवचनात् -IV.. 44 (उकारान्त) गुणवचन अर्थात् गुण को कहने वाले प्रातिपदिक से (स्लीलिङ्ग में विकल्प से ङीष् प्रत्यय होता है)। गुणवचनात् - V. iii. 58 (इस प्रकरण में कहे गये अजादि प्रत्यय अर्थात् इष्ठन्, ईयसुन्) गुणवाची प्रातिपदिक से (ही) होते हैं। गुणक्चनेन -II.1.29 (तृतीयान्त सुबन्त तृतीयान्तार्थकृत) गुणवाची शब्द के साथ (तथा अर्थ शब्द के साथ समास को प्राप्त होता है, और वह तत्पुरुष समास होता है)। गुणवचनेषु -VI. ii. 24 गुण को कहने वाले शब्दों के उत्तरपद रहते (विस्पष्टादि पूर्वपद को तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर होता है)। गुणवृद्धी-I.i.3 (गुण हो जाये, वृद्धि हो जाये, ऐसा नाम लेकर जहाँ) गुण,वृद्धि का विधान किया जाये,(वहाँ वे इक् = इ,उ, ऋ,ल के स्थान में ही हों)। गुणस्य-V.ii.47 (प्रथमासमर्थ सङ्ख्यावाची प्रातिपदिकों से) 'इस भाग का (यह मूल्य है' अर्थ में मयट् प्रत्यय होता है)। गुणादयः -VI. 1. 176 (बहु से उत्तरबहुव्रीहि समास में) गुणादिगणपठित शब्दों .. को (अन्तोदात्त नहीं होता। ...गुणानाम् -VI. iv. 126 देखें-शसददOVI.iv. 126 गुणान्ताया -V.iv.59 गुण शब्द अन्त वाले (सङ्ख्यावाची) प्रातिपदिक से भी कृञ् के योग में कृषि अभिधेय हो तो डाच् प्रत्यय होता गुणे-II. 1.25 स्त्रीलिङ्ग को छोड़कर हेतुवाची) गुणवाचक शब्द में (विकल्प से पञ्चमी विभक्ति होती है)। गुणे-VI.i. 94 . (अपदान्त अकार से उत्तर) गुणसंज्ञक अ,ए,ओ के परे रहते (पर्व.पर के स्थान में पररूप एकादेश होता है;संहिता के विषय में)। ...गुध.. -I. 1.7 देखें - मृडमृदगुपकुशक्लिशवदवसः I. 1.7 गुप्.. - III. 1.5 देखें - गुप्तिकियः III. 1.5 गुपू... - III. 1. 28 देखें - गुपूधूपविच्छि III. 1. 28 गुपधूपविच्छिपणिपनिभ्यः -III.1.28 गुप, धूप, विच्छि, पणि, पनि-इन धातुओं से (आय प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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