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________________ 138 ऐश्वर्ये एव-VIII. iii. 61 (अभ्यास के इण से उत्तर स्तु तथा ण्यन्त धातुओं के आदेश सकार को) ही (षत्वभूत सन् परे रहते मूर्धन्य आदेश होता है)। ...एवम्... - III. iv. 27 देखें- अन्यथैवंकथन III. iv. 27 ...एवयुक्ते-VIII. 1. 24 देखें- चवाहाo VIII. I. 24. एश्... - III. iv. 81 देखें- एशिरेच् III. iv. 81 . एशिरेच् - III. iv. 81 (लिट् के स्थान में जो त और झ आदेश, उनको यथा- सङ्ख्य करके) एश् और इरेच आदेश होते हैं। ...एषा... - VII. iii. 47 देखें- भखैषा VII. iii. 47 एषाम् - v. ii. 78 (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से) षष्ठ्यर्थ में (कन् प्रत्यय होता है, यदि वह प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक ग्राम का मुखिया हो तो)। एषाम् - V. iii. 39 (दिशा, देश तथा काल अर्थों में वर्तमान सप्तम्यन्त, पञ्चम्यन्त तथा प्रथमान्त दिशावाची पूर्व,अधर तथा अवर प्रातिपदिकों से असि प्रत्यय होता है और प्रत्यय के साथसाथ) इन शब्दों को (यथासङ्ख्य करके पुर, अध् तथा अव् आदेश भी होते हैं)। एहि... -VIII. 1.46 देखें - एहिमन्ये VIII. 1.46 एहिमन्ये - VIII. I.46 एहि तथा मन्ये से युक्त (लडन्त तिङन्त को प्रहास गम्यमान हो तो अनुदात्त नहीं होता)। ऐ-प्रत्याहार सूत्र V - आचार्य पाणिनि द्वारा अपने चतुर्थ प्रत्याहार सूत्र में पठित प्रथम वर्ण, जो अपने सम्पूर्ण बारह भेदों का ग्राहक होता है। -पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का आठवां वर्ण। ऐ-III. iv.93 (लोट् लकार-सम्बन्धी उत्तम पुरुष का जो एकार,उसके स्थान में) ऐ' आदेश होता है। ऐ-III. iv.95 (लेट् सम्बन्धी जो आकार उसके स्थान में) ऐकारादेश होता है। ऐ - IV. 1. 36 (अनुपसर्जन पतक्रतु प्रातिपदिक से स्त्रीलिंग में डीप् प्रत्यय होता है, तथा) ऐकारान्तादेश (भी) हो जाता है। ऐकागारिकट - V.i. 112 (प्रयोजनसमानाधिकरणवाची प्रथमासमर्थ एकागार प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में) ऐकागारिकट' शब्द का निपातन किया जाता है, (चोर अभिधेय हो तो)। ...ऐक्ष्वाक... - VI. iv. 174 देखें-दाण्डिनायनहास्ति० VI. iv. 174 .....ऐच -I.i.1 . देखें - आदैच् I.i.1 ऐच - VII. ifi.3 (पदान्त यकार तथा वकार से उत्तर जित.णित. कित् तद्धित परे रहते अङ्ग के अचों में आदि अच् को वृद्धि नहीं होती, किन्तु उन यकार वकार से पूर्व तो क्रमशः) ऐ. औ आगम होता है। ऐच: - VIII. I.106 ऐच के स्थान में (जब प्लुत का प्रसङ्ग हो तो उस ऐच के अवयवभूत इकार उकार प्लुत होते हैं)। ऐरक्-IV.i. 128 (चटका शब्द से अपत्य अर्थ में) ऐरक प्रत्यय होता है। ऐश्वये -v.ii. 126 स्वामिन'- यह शब्द आमिन-प्रत्ययान्त 'मत्वर्थ में' निपातन किया जाता है),ऐश्वर्य गम्यमान हो तो। ऐश्वर्ये -VI. ii. 18 ऐश्वर्यवाची (तत्पुरुष समास) में (पति शब्द उत्तरपद रहते पूर्वपद को प्रकृतिस्वर हो जाता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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