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________________ एकाधिकरणे 135 ...एत एकाधिकरणे - II. i.1 पूर्व,अपर,अधर,उत्तर- ये सबन्त) एकाधिकरणवाची = एकद्रव्यवाची (एकदेशी = अवयवी समर्थ सुबन्त) के साथ (विकल्प से समास को प्राप्त होते है और वह तत्पुरुष त है और वह तत्पुरुष समास होता है)। एकान्तरम् -VIII. 1.55 . (आम् से उत्तर) एकपद का व्यवधान है जिसके मध्य में, ऐसे (आमन्त्रितसञ्जक) पद को (आमन्त्रित अर्थ में अन- दात्त नहीं होता)। एकान्याभ्याम् -VIII. 1.65 (समान अर्थ वाले) एक तथा अन्य शब्दों से युक्त (प्रथम तिङन्त को विकल्प से अनुदात्त नहीं होता,वेदविषय में)। ...एकाभ्याम्-v.iv.90 देखें-उत्तमैकाभ्याम् V. iv. 90 एकाल् - I. ii. 41 एक = असहाय अल् वाला (प्रत्यय अपृक्तसंज्ञक होता एकाहगमः -v.ii. 19 ' (षष्ठीसमर्थ अश्व प्रातिपदिक से) 'एक दिन में जाया जा सकने वाला मार्ग' कहना हो तो (खब प्रत्यय होता है)। एकेवाम् - VIII. ii. 104 (यजुर्वेद में तकारादि युष्मद.तत तथा ततक्षस परे रहते इण् तथा कवर्ग से उत्तर सकार को) कुछ आचार्यों के मत में (मूर्धन्य आदेश होता है)। एकैकस्य -VIII. ii. 86 (ऋकार को छोड़कर वाक्य के अनन्त्य गुरुसज्जक वर्ण को) एक-एक करके (तथा अन्त्य के टि) को (भी प्राचीन आचार्यों के मत में प्लुत उदात्त होता है)। ...एक-I.1.2 देखें- अदे I. 1.2 एक-1.1.74 (जिस समुदाय के अचों का आदि अच) एङ = ए, ओ में से कोई (हो,उसकी पूर्वदेश को कहने में वृद्ध संज्ञा होती एडि-VI.i. 90 (अवर्णान्त उपसर्ग से उत्तर) एक आदिवाले (धात) के परे रहते (पूर्व पर के स्थान में पररूप एकादेश होता है)। एहस्वात् - VI.i. 68 एडन्त तथा ह्रस्वान्त प्रातिपदिक से उत्तर (हल् का लोप होता है, यदि वह हल सम्बुद्धि का हो तो)। एच: -I. I. 46. एच् = ए,ओ,ऐ,ओं के स्थान में (ह्रस्वादेश करने में इक ही हस्व हो)। एच: --VI.i. 44 (उपदेश अवस्था में )जो एजन्त धातु,उसको (आकारादेश हो जाता है, इत्सञ्ज्ञक शकारादि प्रत्यय परे हो तो नहीं होता)। एच: -VI..75 एच = ए, ओ, ऐ, औ के स्थान में (यथासङ्ख्य करके अय, अव, आय, आव् आदेश होते है। अच् परे रहते, संहिता-विषय में)। एच:-VIII. 1. 107 (दूर से बुलाने के विषय से भिन्न विषय में अप्रगृह्यसञ्जक) एच के (पूर्वार्द्ध भाग को प्लत करने के प्रसङ्ग में आकारादेश होता है,तथा उत्तरवाले भाग को इकार उकार आदेश होते है)। एच-VI. 1.85 (अवर्ण से उत्तर जो एच् तथा) एच के परे रहते (जो अवर्ण- इन दोनों पूर्व पर के स्थान में वृद्धि एकादेश होता है)। ...एजन्तः -I.i.38 देखें-मेजन्तः I. I. 38 एजे: -III. ii. 28 "एज़ कम्पने', इस णिजन्त धातु से (कर्म उपपद रहते 'खश्' प्रत्यय होता है)। ...एणीपद... - V. iv. 120 देखें-सुप्रातसुश्व० V. iv. 120 एण्यः - IV. iii. 17 (प्रावृष प्रातिपदिक से) एण्य प्रत्यय होता है। एण्या: - IV. iii. 156 (षष्ठीसमर्थ एणी प्रातिपदिक से विकार और अवयव अर्थों में ठञ् प्रत्यय होता है)। ...एत्-I.i. 11 देखें - ईदूदेत् I. I. 11 गुरुसमकवा तथा अन्त्य पायों के मत एछ... -VI.1.67 देखें - एहस्वात् VI. I. 67 एड-VI. 1. 105 (पदान्त) एङ् से उत्तर (अकार परे रहते पूर्व पर के स्थान पर रहत पूर्व पर के स्थान में पूर्वरूप एकादेश होता है, संहिता के विषय में)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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