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________________ 132 एकम् ल-प्रत्याहार सूत्र | -भगवान् पाणिनि द्वारा द्वितीय प्रत्याहार सूत्र में पठित द्वितीय वर्ण,जो अपने सम्पूर्ण बारह भेदों का ग्राहक होता है। -पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का पांचवां वर्ण। ....लदितः-III. iv. 55 देखें-पुषादिद्यता III. iv. 55 ए-प्रत्याहार सूत्र III एक -VI. iii. 61 - आचार्य पाणिनि द्वारा तृतीयः प्रत्याहार सूत्र में एक शब्द को (तद्धित तथा उत्तरपद परे रहते हस्व होता पठित प्रथम वर्ण, जो अपने सम्पूर्ण बारह भेदों का ग्राहक है)। होता है। एक... - VIII. 1. 65 -पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्ण देखें- एकान्याभ्याम् VIII. I. 65 ... माला का छठा वर्ण। एक: - IV. 1. 93 ए-III. iv.79 (गोत्र में) एक ही (प्रत्यय) होता है। (टित् अर्थात् लट्, लिट्, लुट, लट्, लेट्, लोट् लकारों के जो आत्मनेपद आदेश-त,आताम,झ आदि,उनके एक: -VI. 1.81 टि भाग को) एकार आदेश हो जाता है। (पूर्व और पर दोनों के स्थान में) एक आदेश होगा,(यह ए-III. iii. 56 अधिकृत होता है)। इवर्णान्त धातुओं से (कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव एकगोपूर्वात् - V. ii. 118 में अच् प्रत्यय होता है)। एक शब्द जिसके पूर्व में हो, तथा गोशब्द जिसके पूर्व में होऐसे प्रातिपदिक से (मत्वर्थ में नित्य ही ठत्र प्रत्यय ए-III. iv. 86 होता है)। (लोट् लकार के जो तिप आदि आदेश.उनके) इकार एकदिक् - IV. iii. 112 को (उकार आदेश होता है)। (तृतीयासमर्थ प्रातिपदिक से)समानदिशा अर्थ में (यथाए - VI. iv. 67 विहित प्रत्यय होता है)। (कित्, ङित् लिङ् आर्धधातुक परे रहते घु,मा,स्था, गा, ...एकदेश... -V.iv.87 पा,हा तथा सा- इन अङ्गों को) एकारादेश हो जाता है। देखें- सर्वैकदेश V. iv. 87 ए - VI. iv.82 एकदेशिना - II. ii.1 (धात्ववयव असंयोगपूर्व अनेकाच) इवर्णान्त अङ्गको (पूर्व,अपर,अधर,उत्तर-ये सुबन्त शब्द एकद्रव्यवाची) (अच् परे रहते यणादेश होता है)। एकदेशी = अवयवी (समर्थ सुबन्त) के साथ (विकल्प से ...एक... - II. I. 48 समास को प्राप्त होते हैं और वह तत्पुरुष समास होता है)। देखें- पूर्वकालैकसर्वजरत II. I. 48 एकधुरात् - IV.iv.79 एक... -V.ii. 118 (द्वितीयासमर्थ) एकधुर प्रातिपदिक से (ढोता है' अर्थ में देखें - एकगोपूर्वात् V. ii. 118 ख प्रत्यय तथा उसका लुक् होता है)। ...एक... -V. iii. 15 एकम् -VIII. 1.9 देखें-सर्वैकान्य. V. iii. 15 (द्वित्व किये हुये) एक शब्द को (बहुव्रीहि के समान कार्य हो जाता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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