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________________ 130 ऋगुशनस्पुरुदंसोऽनेहसाम् . ऋतः -VII. ii. 100 ऋतो: - VII. iii. 11 (तिस तथा चतस अङ्गों के) ऋकार के स्थान में (अजादि (अवयववाची पूर्वपद से उत्तर) ऋतुवाची (उत्तरपद) विभक्ति परे रहते रेफ आदेश होता है)। शब्द के (अचों में आदि अच् को जित, णित् तथा कित् ऋत: - VII. iii. 110 तद्धित प्रत्यय परे रहते वृद्धि होती है)। ऋकारान्त अङ्गको (ङि तथा सर्वनामस्थान विभक्ति परे ऋत्विक्... -III. ii. 59 रहते गुण होता है)। देखें-ऋत्विम्दधृक् III. ii. 59 . ऋत: -VII. iv. 10 ...ऋत्विक्... - VI. ii. 133 (संयोग आदि में है जिसके, ऐसे) ऋकारान्त अङ्ग को देखें - आचार्यराज VI. ii. 133 (भी गुण होता है, लिट् परे रहते)। ऋत्विग्दधृक्स्रग्दिगृष्णिगञ्चयुजिक्रुञ्चाम् -III. ii. 59 ऋतः -VII. iv. 27 ऋत्विक, दधृक्, स्रक, दिक, उष्णिक - ये पाँच शब्द ऋकारान्त अङ्ग को (कृत-भिन्न एवं सार्वधातुक-भिन्न क्विन प्रत्ययान्त निपातन किये जाते हैं तथा अञ्चु, युजि, यकार तथा च्चि परे हो तो रीड़ आदेश होता है)।। क्रुश्च धातुओं से (भी क्विन् प्रत्यय होता है)। .. ऋत: -VII. iv.92 ...ऋत्विग्भ्याम् - V.i.70 ऋकारान्त अङ्ग के (अभ्यास को भी रुक,रिक तथा रीक् देखें- यज्ञविंग्भ्याम् V.i.70 आगम होता है, यङ्लुक होने पर)। ऋग्व्य ... - VI. iv. 175 ...ताभ्याम् - VIII. iii. 109 देखें - ऋग्व्यवास्त्व्य०VI. iv. 175 देखें - पृतनाभ्याम् VIII. iii. 109 ऋव्यवास्त्व्यवास्त्वमाध्वीहिरण्ययानि -VI. iv. 175 ...ऋति... - III. ii. 43 ऋत्व्य,वास्त्व्य,वास्त्व,माध्वी,हिरण्यय-ये शब्दरूप देखें - मेघर्तिः III. ii. 43 निपातन किये जाते हैं, (वेद विषय में)। ऋति-VI.i. 88 ऋदवग्रहात् - VIII. iv. 25 (अवर्णान्त उपसर्ग से उत्तर) ऋकारादि धातु के परे रहते । (वेद विषय में) ऋकारान्त अवगृह्यमाण.= अलग पढ़े (पूर्व पर दोनों के स्थान में वृद्धि एकादेश होता है,संहिता गये या पढ़े जाने योग्य पूर्वपद से उत्तर (नकार को णकाके विषय में)। रादेश होता है)। ऋति-VI.i. 124 ...ऋदिताम् -VII. iv.2 ऋकार परे रहते (अक् को शाकल्य आचार्य के मत में । देखें - अग्लोपिशास्वृदिताम् VII. iv. 2 प्रकृतिभाव तथा साथ ही उस अक् को ह्रस्व भी हो जाता ऋदुपधस्य - VI.i. 58 (उपदेश में अनुदात्त तथा) ऋकार उपधा वाली जो धातु, ...ऋतु... - IV. ii. 30 उसको (अम् आगम विकल्प से होता है, झलादि प्रत्यय देखे-वायवृतुपित्रुषस: IV. ii. 30 परे रहते)। ...ऋतु... - IV. iii. 16 ऋदुपधस्य - VII. iii. 90 देखें - सन्धिवेला० IV. iii. 16 ऋकार उपधा वाले अङ्ग के (अभ्यास को यङ् तथा ...ऋते -II. iii. 29 यङ्लुक में रीक् आगम होता है)। देखें - अन्यारादितरते. II. iii. 29 ऋते: - III. i. 29 ऋदुपधात् -III. I. 110 घृणार्थक सौत्र ऋत् धातु से (ईयङ् प्रत्यय होता है)। ऋकारोपध धातुओं से (भी क्यप् प्रत्यय होता है,क्लपि तो: - V.i. 104 और चूति धातुओं को छोड़कर)। (प्रथमासमर्थ) ऋतु-प्रातिपदिक से (षष्ठयर्थ में अण ऋदुशनस्पुरुदंसोऽनेहसाम् - VII. 1. 94 प्रत्यय होता है,यदि वह प्रथमासमर्थ ऋतप्रातिपदिक प्राप्त ऋकारान्त तथा उशनस्, पुरुदंसस्, अनेहस् अङ्गों को समानाधिकरण वाला हो तो)। (भी सम्बुद्धिभिन्न सु परे रहते अनङ् आदेश होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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