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________________ 115 उदात्तः उद-I.ii. 53 ...उदन्य.. -VII. iv.34 उत् उपसर्ग से उत्तर (सकर्मक चर् धातु से आत्मनेपद देखें- अशनायोदन्यः VII. iv. 34 होता है)। उदन्वान् - VIII. ii. 13 उदन्वान शब्द (उदधि तथा संज्ञा विषय में निपातन है)। ...उदः-V. 1.29 देखें-सम्प्रोद: V... 29 ...उदर... -IV..55 उदः-VI. iii. 56 देखें-नासिकोदरौष्ठ 1.1.55 (उदक शब्द को) उद आदेश होता है; (सज्ञा विषय में, उदर... - VI. ii. 107 उत्तरपद परे रहते)। देखें - उदराश्वेषुषु VI. ii. 107 उदः-VI. iv. 139 ...उदरयोः -III. iv.31 उत् उपसर्ग से उत्तर(भसजक अञ्जको ईकारादेश होता देखें - चर्मोदरयोः III. iv. 31 उदरात् -V.ii.67 (सप्तमीसमर्थ) उदर प्रातिपदिक से (पेटू' वाच्य हो तो ...उद -VIII. 1.6 'तत्पर' अर्थ में ठक् प्रत्यय होता है)। देखें -प्रसमुपोदः VIII. 1.6 उदराश्वेषुषु-VI. ii. 107 उदः -VIII. iv.60 . __उदर,अश्व,इषु - इनके उत्तरपद रहते (बहुव्रीहि समास उत् उपसर्ग से उत्तर (स्था तथा स्तम्भ को पूर्वसवर्ण में सज्ञाविषय में पूर्वपद को अन्तोदात्त होता है)। • आदेश होता है)। उदरे - VI. iii. 87 उदक-IV. 1.73 उदर शब्द उत्तरपद रहते (य प्रत्यय परे हो तो समान शब्द . (विपाट् नदी के) उत्तरदेश में (जो कुएँ है,उनके अभिधेय भिधय को विकल्प करके स आदेश हो जाता है)। होने पर भी अञ् प्रत्यय होता है)। ....उदर्केषु -VI. iii. 83 उदकस्य -VI. iii. 56 देखें - अमूर्धप्रभृत्यु० VI. iii. 83 उदक शब्द को (उद आदेश होता है; सज्ञाविषय में. . ॥ है; सज्ञाविषय म, उदश्वितः -IV. 1. 18 उत्तरपद परे रहते)। (सप्तमीसमर्थ) उदश्वित् प्रातिपदिक से (संस्कृतं भक्षा' उदके - VI. ii. 96 अर्थ में विकल्प से ठक् प्रत्यय होता है)। 'मिश्रित अर्थ के बोधक समास में) उदक शब्द उपपद उदात्त... -I. ii. 40 रहते (पूर्वपद को अन्तोदात्त होता है)। देखें-उदात्तस्वरितपरस्य I. ii. 40 उनुः -III. iii. 123 उदात्त... - VIII. ii. 4 (उदक विषय न हो तो पुंल्लिग में) उत् पूर्वक अञ्च धातु देखें- उदात्तस्वरितयो: VIII. 1.4 से घञ् प्रत्ययान्त उद्ङ्क शब्द निपातन किया जाता है, उदात्त... - VIII. iv.66 (अधिकरण कारक में,संज्ञा विषय होने पर)। देखें - उदात्तस्वरितोदय VIII. iv. 66 ...उदच्.. - IV. ii. 100 उदात्तः -I. ii. 29 देखें-धुप्रागपागु० IV. ii. 100 (ऊर्ध्व भाग से उच्चरित अच की) उदात्त संज्ञा होती है। उदधौ-VIII. ii. 13 उदात्त -I. ii. 37 (सुब्रह्मण्य नाम वाले निगद में एकश्रुति नहीं हो, किन्तु (उदन्वान् शब्द) उदधि (तथा सञ्जा) के विषय में उस निगद में जो स्वरित,उसको) उदात्त (तो) हो जाता है। (निपातन है)। उदात्त: -III. iii.96 उदन् -VI.i. 61 (मन्त्रविषय में वृष, इष,पच,मन, विद,भू, वी तथा रा (वेद-विषय में उदक शब्द के स्थान में) उदन् आदेश हो धातुओं से स्त्रीलिङ्गभाव में क्तिन् प्रत्यय होता है,और) वह जाता है,(शस् प्रकार वाले प्रत्ययों के परे रहते)। उदात्त होता है।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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