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________________ आत् आत्मन् 146 आत् - VIII. 1. 107 आत: -VII.1.34 (दूर से बुलाने के विषय से भिन्न विषय में, अप्रगृह्य- आकारान्त अङ्ग से उत्तर (णल् के स्थान में औकारादेश संज्ञक एच के पूर्वाई भाग को प्लुत करने के प्रसङ्ग में) होता है)। आकारादेश होता है.(तथा उत्तर वाले भाग को इकार, आत -VII. iii.46 उकार आदेश होते है)। (यकार तथा ककार पूर्व वाले) आकार के (स्थान में जो आत -III. I. 136 प्रत्ययस्थित ककार से पूर्व अकार,उसके स्थान में इकाराआकारान्त धातुओं से (भी उपसर्ग उपपद रहते 'क' देश नहीं होता,उदीच्य आचार्यों के मत में)। प्रत्यय होता है)। आतः -VII. ii. 81 आत-III. ii.3 आकारान्त अङ्ग से उत्तर (डित् सार्वधातुक के अवयव आकारान्त (उपसर्गरहित) धातु से (कर्म उपपद रहते 'क' । या के स्थान में इय् आदेश होता है)। प्रत्यय होता है)। आतः -VII. iii. 33 आत-III. 1. 74 ___आकारान्त अङ्ग को (चिण तथा जित्,णित् कृत् प्रत्यय आकारान्त धातुओं से (सुबन्त उपपद रहते वेदविषय में - परे रहते युक आगम होता है)। मनिन,क्वनिप.वनिप् तथा विच प्रत्यय होते है)। आतः -VIII. 1.43 आतः-III. iii. 106 (संयोग आदि वाले) आकारान्त (एवं यण्वान् धातु) से (उपसर्ग उपपद रहते) आकारान्त धातुओं से (भी कर्त उत्तर (निष्ठा के तकार को नकारादेश होता है)। भिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में अङ प्रत्यय होता है)। आत:-VIII. iii.3 आतः-III. II. 128 . (अट् परे रहते रु से पूर्व) आकार को (नित्य अनुनासिक आकारान्त धातुओं से (कृच्छ्, अकृच्छ्र अर्थ में ईषद्, आदेश होता है)। दुस तथा सु उपपद हो तो युच प्रत्यय होता है)। आततन्य-VII. 1.64 आत: -III. iv.95 'आततन्थ'- यह शब्द (थल् परे रहते वेद विषय में) (लेट् सम्बन्धी) जो आकार,उसके स्थान में (ऐकारादेश इडभावयुक्त निपातन किया जाता है। ' होता है)। ...आतपयो: - IV. iii. 13 आत-III. iv. 110 देखें- रोगातपयो: IV. i. 13 (सिच से उत्तर यदि झिको जुस हो तो) आकारान्त धातु ...आताम् ... -III. iv.78 . से ही हो। देखें-तिप्तस्झि० III. iv.78 आत-V.ii.96 ...आताम् - VII. ii. 73 (प्राणिस्थवाची) आकारान्त प्रातिपदिकों से (मत्वर्थ में देखें- यमरम0 VII. ii. 73 विकल्प से लच् प्रत्यय होता है)। ...आताम् - VII. iii. 36 आत-VI. iv.64 देखें - अर्तिही0 VII. iii. 36 (इजादि आर्धधातुक तथा कित, डित् आर्धधातुक ...आति ... - VI. iii. 51 प्रत्ययों के परे रहते) आकारान्त अङ्गका (लोप होता है)। देखें- आज्यातिगो० VI. iii. 51 आतः-VI. iv. 112 आतिः -V. iii.34 (श्ना तथा अभ्यस्तसज्जक के) आकार का (लोप हो (दिशा, देश तथा काल अर्थों में वर्तमान सप्तम्यन्त, जाता है; कित,डित् सार्वधातुक परे रहते)। पञ्चम्यन्त तथा प्रथमान्त दिशावाची उत्तर, अधर और आत: - VI. iv. 140 दक्षिण प्रातिपदिकों से) आति प्रत्यय होता है। आकारान्त जो धातु, तदन्त (भसज्ज्ञक) अङ्ग के (अकार आत्मन् ... -V.1.8 का लोप होता है)। देखें-आत्मन्विश्वजन V.i.8
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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