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________________ आड्यस . आट ...आड्य स... -I.iii. 89 आचार्योपसर्जन: -VI. ii. 104 देखें-पादम्यायमाझ्यस० 1. iii. 89.. आचार्य है अप्रधान जिसका, ऐसा (जो अन्तेवासी, ...आङ्यस... -III. . 142 . उसको कहने वाले शब्द के परे रहते भी दिशा अर्थ में देखें -सम्पृचानुरुधा० III. 1. 142 प्रयुक्त होने वाले पूर्वपद शब्दों को अन्तोदात्त होता है)। ....आड्वसः -I. iv. 48 ...आचिख्यासायाम् - II. iv. 21 देखें-उपान्वध्याइवस: I. iv. 48 देखें- तदाद्याचिख्यासायाम् II. iv. 21 ...आचित... - IV.i. 22 ...आच्... -II. iii. 29 देखें - अन्यारादितरते. II. iii. 29 देखें- अपरिमाणबिस्ताचित IV.i. 22 आच् - V. iii. 36 ...आचित ... - V.i. 52 देखें - आढकाचितपात्रात् V.i. 52 (दिशा,देश तथा काल अर्थों में वर्तमान पञ्चम्यन्तवर्जित आच्छादने-III. iii. 54 सप्तमीप्रथमान्त दिशावाची दक्षिण प्रातिपदिक से) आच प्रत्यय होता है। आच्छादन अर्थ में (प्र पूर्वक वृञ् धातु से कर्तृभिन्न । कारक तथा भाव में विकल्प से घञ् प्रत्यय होता है,पक्ष .. आचारे-III. I. 10 में अप् होता है)। आचार अर्थ में (उपमानवाची सुबन्त कर्म से विकल्प । आच्छादने -V.iv.6 से 'क्यच' प्रत्यय होता है)। 'ढकने अर्थ में वर्तमान (प्रातिपदिक से स्वार्थ में कन .. आचार्य ... - VI. ii. 133 प्रत्यय होता है)। देखें-आचार्यराज. VI. ii. 133. .. ...आच्छादनयोः - IV. iii. 140 ... आचार्यकरण ... -I. iii. 36 देखें- अभक्ष्याच्छादनयोः IV.ili. 140 देखें- सम्माननोत्सञ्जनाचा० I. iii. 36 आजि ... - VI. iii. 51 आचार्यराजर्विक्संयुक्तज्ञात्याख्येभ्यः - VI. ii. 133 देखें - आज्यातिगोप० VI. iii. 51 . आचार्य, राजन. ऋत्विक, संयुक्त तथा ज्ञाति की आज्यातिगोपहतेषु-VI. iii. 51 आख्यावाले शब्दों से उत्तर (पुत्र शब्द को तत्पुरुष समास (पाद शब्द को पद् आदेश होता है); आजि, आति, ग, में आधुदात्त नहीं होता)। उपहत के उत्तरपद रहते। ...आचार्याणाम् - IV.i. 48 आज्ञायिनि - VI. iii. 5 देखें-इन्द्रवरुणभव० IV. 1. 48 आज्ञायी शब्द के उत्तरपद रहते (भी मनस् शब्द से उत्तर आचार्याणाम् - VII. iii. 49 तृतीया का अलुक् होता है)। (अभाषितपुंस्क से विहित प्रत्ययस्थित ककार से पूर्व आकार के स्थान में जो अकार.उसको नगर्व और अनब आट् - III. iv. 92 पूर्व रहते हुए भी उदीच्य से भिन्न) आचार्यों के मत में (लोट् सम्बन्धी उत्तम पुरुष को) आट् का आगम हो (आकारादेश होता है)। .. जाता है, (और वह उत्तम पुरुष पित् भी माना जाता है)। आट् -VI. iv. 72 आचार्याणाम् - VIII. iv. 51 (अच् आदि वाले अङ्गों को लुङ, लङ् तथा लुङ् के (दीर्घ से उत्तर) सभी आचार्यों के मत में (द्वित्व नहीं परे रहते) आट का आगम होता है,(और वह आट उदात्त होता)। भी होता है)। आचार्योपसर्जन: - VI. ii. 37 आट् - VII. iii. 112 आचार्य है अप्रधान जिसमें,ऐसे (शिष्यवाची शब्दों का (नदीसज्ञक अङ्ग से उत्तर डित् प्रत्यय को) आट् आगम जो द्वन्दू, उनके पूर्वपद को भी प्रकृतिस्वर होता है)। होता है।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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