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________________ ( ७ > निवासी श्रीयुत का० रामभरोसे की सुपुत्री श्रीमती सूर्य्यकला के साथ अक्तूबर सन् १८८४ में बाकूदान होकर फ़रवरी सन् १८८६ में लगभग २१ ॥ वर्ष की वय में शुभ मुहूर्त्त में श्रीमान् का विवाह संस्कार हुआ और ऍटून्स की परीक्षा दे चुकने पर सन् १८९९ ई० में द्विरागमन संस्कार हुआ जिससे लगभग २४ वर्षकी वय तक आपको अपना अखण्ड ब्रह्मचर्य - व्रत पालन करने में किसी प्रकार की बाधा न पड़ी । ६. सन्तान - ( १ ) प्रथम पुत्री श्रीमती बसन्ती देवी का जन्म पौष शुक्ला १३ वि० सं० १६५०, जनवरी सन् १८६४ में (२) द्वितीय पुत्री श्रीमती कपूरी देवी का जन्म आषाढ़ शुक्ला ११ वि० सं० १६५३ में ( ३ ) तृतीय पुत्री श्रीमती चन्द्रावती का जन्म पौष कृ० ५ सं० १६५५ में ( ४ ) प्रथम पुत्र दयाचंद्र का जन्म भाद्रपद कृष्ण ३ सं० १९५८ में (५) द्वितीय पुत्र शा न्तीशचंद्र का जन्म वैशाख कृ० १२ सं० १६६० में, और ( ६ ) तृतीय पुत्र नेमचन्द्र का जन्म भाद्रपद कृ० ६ सं० १६६३ में हुआ, जिनमें से द्वितीय पुत्री और द्वितीय ही पुत्र इस समय विद्यमान हैं। शेष का यथा समय स्वर्गारोहण हो चुका। ७. माता, पिता व धर्मपत्नी का स्वर्गारोहण- 1-पिता का स्वर्गारोहण उर्दू मिडिल पास करते ही विवाह संस्कार से भी कई वर्ष पूर्व मिती श्रावण शुक्ला ५ वि० सं० १९४१ ही में हो गया और मातृ-श्री का स्वर्गवास उनकी लगभग ८० वर्ष की बय में मिती बैशाख शुक्ल ५ सं० १९७६ ता० २ मई सन् १६२२ में हुआ । धर्मपत्नी का स्वर्गारोहण केवल ३२ वर्ष की वय में चैत्रमास वि० सं० १६६४ (मार्च सन् १६०७ ई० ) में हुआ जबकि श्रीमान् की वय ४० वर्ष से भी कुछ कम थी। इतनी थोड़ी वय में ही धर्मपत्नी का स्वर्गवास हो जाने पर भी श्रीमान् ने अपनी शेष आयु भर अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत पालन करने के विचार से अपना द्वितीय विवाद न किया । Jain Education International A ८. ग्रन्थ रचना - जिस समय तक आप ने उर्दू मिडिल पास भी नहीं किया था तभी से आप के पवित्र हृदय की रुचि ग्रन्थ रचना की ओर थी और इसलिये स्कूली शिक्षा प्राप्त करते समय जो कुछ आप सीखते थे उसे यथा रुचि, आवश्कीय नोटों द्वारा सुरक्षित रखते थे । आप की चित्रावृत्ति बाल्यावस्था ही से गणित की ओर अधिक आकर्षित रहने से इस विद्या में आप ने अधिक कुशलता प्राप्त कर ली थी। इस लिए हाईस्कूल में अंगरेज़ी भाषा सीखते हुए आप ने रेखा गणित और क्षेत्र गणित सम्बन्धी एक ग्रन्थ प्रकाशित कराने के विचार से पर्याप्त सामग्री संग्रहीत कर ली और ऐंट्स की परीक्षा देने से ढाई तीन मास के अन्दर ही आप ने प्रेस में देने योग्य अपना सब से पहिला 'क्षेत्र गणित' संबन्धी तशरीडुल 'मसाइत' नामक एक अपूर्व और महत्वपूर्ण प्रन्थ उर्दू में लिख कर तैयार कर लिया जिसे द्रव्याभाव के कारण स्वयं न छपा सकने से एक मित्र द्वारा सन १८६१ ई० में ही प्रेस को दे दिया जिसका प्रथम भाग बड़े साइज़ के १६६ पृष्ठ में छपकर सन् १६६२ ई० में तईयार हो गया और मित्र द्वारा प्रयत्न किये जाने पर नॉग्मल स्कूलों में शिक्षा के लिये तथा हाईस्कूल आदि के पुस्तकालयों के लिये "यू० पी० की टैक्स्ट बुक कमेटी ( Text Book Committee, U. P. Allahabad.) से स्वीकृत भी हो गया । इसके पश्चात् शिक्षा विभाग में गवन्मेंट सर्विस मिलते ही से आप ने पहिले उर्दू में For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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