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________________ ३९७६. माया विषवेली विषवेली... ६५७९. मारग जोवंता गुरुजी तुम्हें भलइ आए रे... ५१२६. मारग देशक मोक्षनो रे... ६७४०. मारग मई मुझनइ मिल्यउ... ५९७९. मांरा सम मति जायो रे बाला... ५०७५. मारा मनमा... ३०८८. मारी वीनतड़ी अवधारो साहिब... ५५०१. मालपुरे की... ६६६१. मास वसंत फाग खेलत प्रभु... ४३८२. मांहरै भलै रै ऊगो दिन... ६११४. माहरइ आज वधामणा रे लाल... ६१०४. माहरइ दादउ... ४७५५. माहरा मन नी वातड़ी जी... ४७५६. माहरी करणी सुगति हरणी... ४८३१. माहल्लां मालियां जोति मैं जालीयां... ६९८१. मिथ्यामति हिम राति गइ हो... ३१९२. मिंदर में खूब मची होरी... ४०७१. मिली आवौ हे सखि... ५८७९. मिश्री घृत और... ५५३८. मीत किसी के नांहि... ५७९९. मुखड़ा नइ मटकई... ४७५७. मुखडं दीठे हो ताहरु पास जी... ५०३५. मुख निरख्यो श्री जिन तेरो... ६८३०. मुख नीको शीतलनाथ को... ३१७४. मुख पेखी महाराज कौ रे... ६६१७. मुगध जन वचन सुणि राय चित... ६६५०. मुगति धूतारी म्हारउ..... ६५०६. मुगति समौ जाणी करी जी रे... ६८८१. मुझ दन्त जिसा मचकुन्द कली... ६५१६. मुझनइ चार शरणा हो जो... ४२२०. मुझनै परचौ ताहरौ रे लो... ३७९४. मुझ पूर मनोरथ आज... ६४६३. मुझ मन उलट अति घणउ मन... ६५८०. मुझ मन मोह्यो रे गुरुजी... ३४७८. मुझ मन वंछित... ६१०३. मुझ मनि अलजउ अति घणउ रे... ४९०३. मुझ सकल... ६८८२. मुनड़उ ते मोहयउ मुनिवर माहरुं रे... ६८५१. मुनिवर आव्या विहरता जी...' ४३५०. मुनिवर विहरण पांगुऱ्याजी... ३६८०. मुनिवर सुणि हो सीख सुहामणी... ५५२८. मुरख म कर... . ३४१८. मुरपन मण्डन... ७११६. मुल्क में मशहूर... ५५४२. मूरख क्या प्रतिबोध... ५७२५. मूरख जनम वृथा मगावइ रे... ६७७२. मूरख नर काहे कुं करत गुमान... ५६८६. मूरख प्राणिया... ५६९७. मूरति अजब बणी... ४७८६. मूरति तेरी मोहनगारी... ६९०१. मूरति पास जिनेसर तणी... ४७९७. मूरति प्रभुनी मोहई... ५१९०. मूरति मन नी मोहनी... ४९९२. मूरति माधुर ऋषभ जिणंद... ४७४०. मूरति मोहणगारी दिट्ठडां आवै दाय... ४१४०. मूरति मोहनगारी... ६४७२. मूरति मोहन बेलडी..... ३७५८. मूरति श्री जिनवीर की रे लाल... ४५०६. मूरति सूरति की... ५६२२. मूरति सूरति मोहनगारी... ४५००. मूरिख प्राणियों माया पद... ६३६८. मृगनयणी ससि सिवयणी... ५००७. मेंडा नेम न आये... . ४५१०. मेघ महानृप... ५७२७. मेघमहा नृप आयो... ७०५९. मेडतइ नगरि पधारीया... ७०१७. मेरइ आणंदा भेट्या सुगुरु मुणिंदा... ४३०२. मेरइ नेमिजी इक सयण... ५७४७. मेरइ इक श्री वीतराग... ५६५९. मेरइ हो... ४२८७. मेरउ जीव परभव थी न डरइ... ५३४४. मेरउ....टका आवयउ गुरु चरणे... ४२७६. मेरउ नाह निहेरउ... ५०७२. मेरा गुरु है... खरतरगच्छ साहित्य कोश ६०१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016106
Book TitleKhartargaccha Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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