SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसुन्दरकृत अष्टलक्षी प्रशस्ति इनमें से जालौर, नागौर, खंभात, आशापल्ली, मांडवगढ़ और देवगिरि के भंडारों का तो अतापता ही नहीं है। वैसे तो पाटण भंडार का भी पता नहीं है, किन्तु जिनभद्रीय ज्ञान भंडार के कुछ ग्रन्थ आज भी बाड़ी पार्श्वनाथ ज्ञान भण्डार एवं खरतरगच्छ उपाश्रय में ज्ञान भण्डार, पाटण में विद्यमान हैं जो आज भी आचार्य जिनभद्र के नाम को सुरक्षित रखे हुए हैं। जिनभद्रसूरि ने खम्भात के श्रेष्ठिवर्य पारीक गोत्रीय श्रेष्ठि धरणाशाह और श्रीमाल वंशीय बलिराज उदयराज द्वारा विक्रम संवत् १४८५ से १४९१ के मध्य में अपने उपदेशों से ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ करवाकर भण्डार स्थापित किया था। इन उपासकों द्वारा लिखापित ४८ ताड़पत्रीय ग्रन्थ जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार, जेसलमेर में प्राप्त हैं। उनकी लेखन पुस्तिकाओं में 'अद्येह स्तम्भतीर्थे' या 'स्तम्भतीर्थे ' 'सिद्धान्तकोष' अथवा 'जिनभद्रसूरि भाण्डागारे' लिखा है, अतः खम्भात में जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार की स्थापना १४८५ या १४८६ के आस-पास ही हुई थी। इन्हीं भक्तद्वय - श्रेष्ठि धरणा शाह और बलिराज उदयराज ने अणहिलपुर पत्तन में जिनभद्रसूरि भाण्डागार की स्थापना सं० १४८७-८८ में की। जेसलमेर भण्डार में कागज पर लिखित दश से अधिक प्रतियाँ विद्यमान हैं जो १४८७ से १४८९ के मध्य लिखी हुई हैं, इनकी लेखन पुष्पिकाओं में 'श्री पत्तने' या 'पत्तनमध्ये 'श्रीजिनभद्रसूरीणां भाण्डागारे' अंकित है। वाडी पार्श्वनाथ मंदिर, पाटण के ज्ञान भण्डार में आज भी इन्ही के उपदेश से लिखापित पचासों ग्रन्थ विद्यमान हैं। जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार, जेसलमेर की स्थापना कब हुई, निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता, किन्तु अनुमान है कि इसकी स्थापना विक्रम संवत् १४९७ में या इसके आस-पास ही हुई होगी, क्योंकि आचार्य जिनभद्र ने ३०० प्रतिमाओं के साथ संभवनाथ मन्दिर की विक्रम सं० १४९७ में प्रतिष्ठा करवाई थी। ज्ञान भण्डार के उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही सम्भवनाथ मन्दिर निर्माण के समय पहले तलगृह का निर्माण करवाया गया होगा और प्रतिष्ठा के समय या उसी वर्ष शुभ मुहूर्त में भण्डार की स्थापना की गई होगी। इसी वर्ष १४९७ माघ सुदी ५ जिनभद्रसूरि के उपदेश से जेसलमेर में लिखापित कल्पसूत्र संदेहविषौषधि वृत्ति' की प्रति क्रमांक ४२६ पर प्राप्त है और दूसरी कागज की प्रति १४९९ की लिखित क्रमांक ७४ पर विद्यमान है। अत: इस भण्डार की स्थापना का समय १४९७ मान सकते हैं । भण्डार की स्थापना के पश्चात् उनके शिष्य परिवार और परवर्ती खरतरगच्छीय आचार्यादि इसे सर्वदा समृद्ध करते रहे। ___ माण्डवगढ़ के भण्डार का भी कोई पता नहीं चलता किन्तु पाटण के सागरगच्छ के उपाश्रय में सुरक्षित भगवती सूत्र की निम्न प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि विक्रम संवत् १५०३ में मन्त्रीमण्डन और संघपति धनराज ने जिनभद्रसूरि के उपदेश से समस्त सिद्धान्त ग्रन्थ लिखवाये थे : XXIV प्राक्कथन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016106
Book TitleKhartargaccha Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy