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________________ द्वितीय (१३०७) तक युगप्रधानाचार्य गुर्वावली के नाम से दैनिक डायरी के समान ऐतिहासिक आलेखन कर एक अपूर्व कृति समाज को दी। इस प्रकार की गुर्वावली जैन-परम्परा में आज तक उपलब्ध नहीं है। इन्होंने अनेक टीका ग्रन्थों की रचना की। चन्द्रतिलकोपाध्याय ने संवत् १३१२ में अभयकुमार चरित की रचना की। अभयतिलकोपाध्याय ने न्यायालङ्कार टिप्पण लिखा और हेमचन्द्राचार्य कृत संस्कृत व्याश्रय महाकाव्य पर संवत् १३१२ विवेचन लिखा । पूर्णकलशगणि ने हेमचन्द्राचार्य कृत प्राकृत व्याश्रय महाकाव्य पर संवत् १३०७ में टीका का निर्माण किया। पूर्णभद्रगणि ने दशश्रावक चरित और धन्नाशालिभद्र चरित के अतिरिक्त पञ्चाख्यान की रचना की। भांडागारिक श्री नेमिचन्द्र ने षष्टिशतक की रचना की। सुमतिगणि ने १२९५ में गणधर-सार्द्धशतक पर बृहवृत्ति की रचना की। श्री जिनेश्वरसूरि ने जिस निर्वाण-लीलावती कथा की रचना की थी वह दुर्भाग्य से विलुप्त हो गयी। उसी के अनुकरण पर जिनरत्नसूरि ने निर्वाण लीलावती सार की रचना की। इसकी प्राचीन प्रति जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार, जेसलमेर में है और अप्रकाशित है। ___ श्री लक्ष्मीतिलकोपाध्याय ने जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) रचित श्रावक-धर्म प्रकरण पर संवत् १३१७ में विशद टीका का निर्माण किया और संवत् १३११ में प्रत्येकबुद्ध-चरितमहाकाव्य का निर्माण किया। श्रावकधर्म प्रकरण बृहद्वृत्ति की प्राचीन सचित्र प्रति श्री नेमिसूरि ज्ञान भण्डार, खंभात में हैं और प्रत्येकबुद्ध चरित की जेसलमेर ज्ञान भण्डार में है। दोनों ही ग्रन्थ अप्रकाशित हैं किन्तु प्रकाशन योग्य हैं। प्रबोधमूर्ति (जिनप्रबोधसूरि) ने कातन्त्र व्याकरण पर दुर्गप्रबोध नामक टीका की रचना की और वृत्तप्रबोध, पञ्जिकाप्रबोध और बौद्धाधिकार विवरण भी लिखा किन्तु दुर्भाग्य से इन तीनों का उल्लेख मात्र प्राप्त होता है, प्रति प्राप्त नहीं होती। अधिकांशतः इन आचार्यों और ग्रन्थों के नाम श्री लक्ष्मीतिलकोपाध्याय द्वारा संवत् १३११ में रचित प्रत्येकबुद्ध चरित की प्रशस्ति में प्राप्त होते हैं। ऐतिहासिक और महत्त्वपूर्ण होने से इस प्रशस्ति का कुछ अंश उद्धृत किया जा रहा है: चातुर्वैद्यविदग्रणीरपमलब्राह्मण्यभृद्ग्रामणीर्यः श्रीगौतमवद्विलोक्य विलसद्धाम्नां निधि तं प्रभुम् । सद्यः सोदरबुद्धिसागरपरीवारान्वितः प्राव्रजत्, स श्रीसूरिजिनेश्वरः खरतरत्वं साध्वथासेदिवान् ॥ १२ ॥ मिथ्याज्ञानदुरन्तशक्तितरसा श्रीपत्तने पत्तने, गाढाधिष्ठितकारिणश्चतुरशीत्याचार्यदुश्चेटकान्। यः श्रीदुर्लभराट्सभे श्रुतमहामन्त्रैर्निगृह्य क्षणा प्राक्कथन XI Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016106
Book TitleKhartargaccha Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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