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________________ २९७६. सुखमाला सती रास, जीवराज / राजकलश, रास चौपई, राजस्थानी, १६६३, 'आदि सरसति वर देयो सुमति..., अन्त-एह काया अवगुणकोथली...', अ., उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-३, पृ. ८९५ २९७७. सुगुरु गुण संथव सत्तरिया, जिनदत्तसूरि (सोमचन्द्र) / जिनवल्लभसूरि, प्रकरण, प्राकृत, १२वीं, आदि-गुणमणिरोहणगिरिणो..., अन्त–इय सुहगुरु गुण संथव... गा. ७५', मु., युगप्रधान जिनदत्तसूरि, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर २९७८. सुगुरु वंशावली, कुशलधीरगणि / कल्याणलाभ उ०, गुर्वावली, राजस्थानी, १७वीं, मु., भट्टारक जिनभद्र खरउ २९७९. सुदर्शन चौपई, कीर्त्तिवर्द्धन / दयारत्नगणि आद्य., रास चौपई, राजस्थानी, १७०७, 'अन्त श्रीजिनशासन सोभाकारी...', अ., ह. कांतिसागरजी संग्रह २९८०. सुदर्शन चौपई, विनयमेरुगणि / हेमधर्मगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १६७८ सीधपुर, ___ 'अन्त-केवल ज्ञानी अनुक्रमइ रे...', अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर २९८१. सुदर्शन चौपई, सहजकीर्तिगणि / हेमनन्दनगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १६६१ बगड़ीपुर, ___ 'आदि केवल कमलाकर सुर..., अन्त-श्री खरतरगच्छ कमलविकासण दिनमणीरे...', अ., उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-३, पृ. १०१६ २९८२. सुदर्शन रास, धर्मसमुद्रगणि / विवेकसिंह वा. पिप्पलक, रास चौपई, राजस्थानी, १६वीं, 'आदि–रिसह जिणेसर पय नमी..., अन्त-श्री खरतरगच्छ गणधार...', अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर २९८३. सुदर्शन सेठ चौपई, अमरविजयगणि / उदयतिलक उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १७९८ नापासर, 'अन्त–वीर सुधर्म जंबू हि स्वामी...', अ., ह. खरतरगच्छ ज्ञान भं., जयपुर २९८४. सुदर्शन सेठ चौपई, जिनहर्षगणि / शान्तिहर्षगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७४९ पाटण, 'आदि-प्रह उठी प्रणमुं सदा..., अन्त–योगशास्त्रनी टीकामांहि छइरे...', अ., उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-२, पृ. १००, भाग-३, पृ. ११६४ . २९८५. सुदर्शन चरित्र, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, कथा चरित्र, संस्कृत, १६८६, अ., ह. नेमिनाथ भं., अजीमगंज २९८६. सुधर्मगणधर स्तोत्र (विविधछन्दोमय), जिनप्रभसूरि / जिनसिंहसूरि, स्तोत्र, संस्कृत, १४वीं, 'आदि-आगमत्रिपथगाहिमवन्तं... गा. २१', अ., ह. विनय. प्रतिलिपि २९८७. सुपार्श्वनाथ स्तोत्र, जयधर्मोपाध्याय / जिनपद्मसूरि, स्तोत्र, प्राकृत, १४वीं, आदि-अइसयगुण मणिकोसं..., अन्त–जईया इत्थ महीयले बहुयरा... गा. २५', अ., ह. विजय धर्मलक्ष्मी ज्ञान मन्दिर, आगरा २९८८. सुपार्श्वनाथ स्तोत्र-मण्डपदुर्ग, मतिवर्द्धनगणि वाचनाचार्य, स्तोत्र, अपभ्रंश, १४वीं, आदि जय भुवियण जणमणकमलभाणु..., अन्त-एवं मण्डवोपरि परिलसिस कल्याणवल्लि घणो... गा. १५', अ., ह. हर्षचन्द्रसूरि-पार्श्वचन्द्रगच्छ भं., खम्भात, पृ. ४२७-४२८ 224 खरतरगच्छ साहित्य कोश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016106
Book TitleKhartargaccha Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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