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________________ १७५०. पूजा - समवसरण पूजा, चारित्रनन्दी / नवनिधि, पूजा, राजस्थानी, १९१...खम्भात, अ., ह. नाहर संग्रह, कलकत्ता १७५१. पूजा - सम्मेतशिखर पूजा, बालचन्द्रोपाध्याय (विजयविमल)/ अमृतसमुद्र उ०, पूजा, राजस्थानी, १९०८, आदि-चोवीसे जिनवरतणा..., अन्त–शिखर गिरि तिर्थकर...', मु., जिन पूजा महादधि १७५२. पूजा - सहस्रकूट पूजा, सुमतिमण्डन उ० (सुगनजी) / धर्मानन्द उ०, पूजा, हिन्दी, १९४० बीकानेर, 'आदि-श्रीजिनवर प्रणमी करी..., अन्त-तेज अधिक जग गाजै...', मु., जिन पूजा महादधि १७५३. पूजा - सिद्धाचल पूजा, सुमतिमण्डन उ० (सुगनजी) / धर्मानन्द उ०, पूजा, हिन्दी, १९३० बीकानेर, आदि-ऋषभादिक जिनवर नमी..., अन्त–प्रभुजी की पूजरचीसुखकाजै...', मु., जिन पूजा महादधि १७५४. पूजा - स्नात्र पूजा, देवचन्द्रोपाध्याय / दीपचन्द्र उ०, पूजा, राजस्थानी, १८वीं, 'आदि चउतीसे अतिसय जुओ..., अन्त-इम पूजो भगतें करो...', मु., जिन पूजा महोदधि १७५५. पूजा - पूजा स्नात्रविधि, कुमारगणि / जिनेश्वरसूरि, पूजा, संस्कृत, १४वीं, अ., ह. विनय. प्रतिलिपि, अभय ग्र., बीकानेर १७५६. पूजाष्टकवार्त्तिक, कमललाभोपाध्याय / अभयसुन्दर उ०, पूजा, राजस्थानी, १७वीं, अ., ह. चम्पालाल बैद संग्रह, भीनासर १७५७. पूर्वदेश चैत्यपरिपाटी, जिनवर्द्धनसूरि / जिनराजसूरि पिप्पलक, रास चौपई, राजस्थानी, १५वीं, 'आदि-हियय सरोवरे धरिय गुरुराजसूरि..., अन्त-इम्म जम्मठाणई सिरि निहाणइ... गा. ३२', अ., ह. विनय. प्रतिलिपि, अभय ग्र., बीकानेर १७५८. पूरवदेश वर्णनछंद, ज्ञानसारोपाध्याय / रत्नराज उ०, गीत स्तवन, राजस्थानी, १९वीं, 'आदि-केई में देख्या देश विशेषा..., अन्त-पिण रहि सहू इक बातनो...', मु., ज्ञानसार ग्रन्थावली, पृ. ४३५ १७५९. पृथ्वीचन्द्र चरित्र, जयसागरोपाध्याय / जिनराजसूरि, चरित्र, संस्कृत, १५०३ पालणपुर, अन्त ___ श्रीवीरशासनाम्भोधिः...', अ., ह. खरतरगच्छ ज्ञान भं., जयपुर, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा १७६०. पौषधविधिप्रकरण, जिनवल्लभसूरि / अभयदेवसूरि, विधि, प्राकृत, १२वीं, 'आदि जस्सुद्धट्ठियमुल्लसिर..., अन्त–इय सुत्ताणुसारमवधारिय...', मु., जिनवल्लभसूरि ग्रन्थावली, पृ. ३५, सम्पादक - म. विनयसागर १७६१. पौषधविधिप्रकरण टीका, जिनचन्द्रसूरि / जिनमाणिक्यसूरि, विधि, संस्कृत, १६१७ पाटण, अ., ह. बड़ा ज्ञान भं., बीकानेर, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा १७६२. पौषधषट्त्रिंशिका, जयसोमोपाध्याय / प्रमोदमाणिक्य उ०, चर्चा, प्राकृत, १६४३, आदि ___ पसरियनाणपया सं..., अन्त-जुगवरजिणचंदाणं...', मु., जिनदत्तसूरि ज्ञान भं., सूरत 134 खरतरगच्छ साहित्य कोश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016106
Book TitleKhartargaccha Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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