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________________ आपः-आपद्धर्मपर्वाध्याय [आन्वीक्षिकी सदा सभी विद्याओं का प्रदीप, सभी वर्णन है, जिन के नाम हैं-(१) पितृयज्ञ, (२) पार्वणयज्ञ, कर्मों का उपाय और सभी धर्मों का आश्रय मानी गयी (३) अष्टकायज्ञ, (४) श्रावणीयज्ञ, (५) आश्वयुजीयज्ञ, है। इस प्रकार आन्वीक्षिको विद्या त्रयी, वार्ता, दण्डनीति (६) आग्रहायणीयज्ञ और (७) चैत्रीयज्ञ । इनके अतिरिक्त आदि विद्याओं के बलाबल को युक्तियों से निर्धारित करती पञ्चमहायज्ञों का भी वर्णन पाया जाता है-(१) ब्रह्मयज्ञ, हुई संसार का उपकार करती है, विपत्ति और समृद्धि में (२) देवयज्ञ, (३) पितृयज्ञ, (४) अतिथियज्ञ और (५) बुद्धि को दृढ रखती है और प्रज्ञा, वाक्य एवं क्रिया में भूतयज्ञ । इसमें सोलह गृह्य संकारों का भी विधान है। कुशलता उत्पन्न करती है। निम्नांकित मुख्य हैं : आपः-ऋग्वेद के ( ७.४७.४९;१०.९,३०) जैसे मन्त्रों १. गर्भाधान, २. पुंसवन, ३. सीमन्तोन्नयन, ४. जातमें आपः (जलों) के विविध गुणों की अभिव्यक्ति हुई कर्म, ५. नामकरण, ६. निष्क्रमण, ७. अन्नप्राशन, ८. है। यहाँ आकाशीय जलों की स्तुति की गयी है, उनका चौल, ९. उपनयन, १०. समावर्तन, ११. विवाह, १२. स्थान सूर्य के पास है। अन्त्येष्टि आदि । 'इन दिव्य जलों को स्त्रीरूप माना गया है । वे माता __ आठ प्रकार के विवाहों-१. ब्राह्म, २. दैव, ३. आर्ष, हैं, नवयुवती हैं, अथवा देवियाँ हैं । उनका सोमरस के ४. प्राजापत्य, ५. आसुर, ६. गान्धर्व, ७. राक्षस और साथ संयोग होने से इन्द्र का पेय प्रस्तुत होता है । वे धन पैशाच-का वर्णन भी इसमें पाया जाता है। वान् है, धन देनेवाली हैं, वरदानों की स्वामिनी है तथा आपस्तम्ब धर्मसूत्र-वैदिक संप्रदाय के धर्मसूत्र केवल पाँच घी, दूध एवं मधु लाती हैं।' उपलब्ध हैं: (१) आपस्तम्ब, (२) हिरण्यकेशी, (३) बौधा यन, (४) गौतम और (५) वसिष्ठ । चरणव्यूह के अनुइन गुणों को हम इस प्रकार मानते हैं कि जल पृथ्वी • सार आपस्तम्ब कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा के को उपजाऊ बनाता है, जिससे वह प्रभूत अन्न उत्पन्न खाण्डिकीय वर्गीय पाँच उपविभागों में से एक है। यह करती है। सबसे प्राचीन धर्मसूत्र है। यह दो प्रश्नों, आठ पटलों जल पालन करनेवाला, शक्ति देनेवाला एवं जीवन और तेईस खण्डों में विभक्त है ।। देनेवाला है। वह मनुष्यों को पेय देता है एवं इन्द्र को आपद्धर्म-सभी वर्गों तथा आश्रमों के धर्म वृत्ति तथा अवभी। वह ओषधियों का भी भाग है एवं इसी कारण स्था भेद से स्मृतियों में वर्णित हैं । किन्हीं विशेष परिरोगों से मुक्ति देनेवाला है। स्थितियों में जब अपने वर्ण और आश्रम के कर्तव्यों का आपदेव-सुप्रसिद्ध मीमांसक । उनका 'मीमांसान्यायप्रकाश' पालन संभव नहीं होता तो धर्मशास्त्र में उनके विकल्प पूर्वमीमांसा का एक प्रामाणिक परिचायक ग्रन्थ है। बताये गये हैं । शास्त्रों से विहित होने के कारण इनका मीमांसक होते हुए भी उन्होंने सदानन्दकृत वेदान्तसार पालन भी धर्म ही है। उदाहरण के लिए, यदि ब्राह्मण पर 'बालबोधिनी' नाम की टीका लिखी है, जो नृसिंह अपने वर्ण के विशिष्ट कर्तव्यों (पाठन, याजन और प्रतिग्रह) सरस्वतीकृत 'सुबोधिनी' और रामतीर्थ कृत 'विद्वन्मनो से निर्वाह नहीं कर सकता तो वह क्षत्रिय अथवा वैश्य के रञ्जिनी' की अपेक्षा अधिक उत्कृष्ट समझी जाती है। विशिष्ट कर्तव्यों (शस्त्र, कृषि, गोरक्षा और वाणिज्य) को आपदेवी-आपदेव रचित 'मीमांसान्यायप्रकाश' को अपना सकता है। किन्तु इन कर्तव्यों में भी ब्राह्मण के अधिकांश लोग 'आपदेवी' कहते हैं । इसकी रचना १६- लिए सीमा बाँध दी गयी है कि संकटकालीन स्थिति ३० ई० के लगभग हुई थी। यह अति सरल संस्कृत बीत जाने पर आपद्धर्म का त्याग कर उसे अपने वर्णधर्म भाषा में है और इसका अध्ययन बहुत प्रचलित है। का पालन करना चाहिए। आपस्तम्ब गृह्यसूत्र-ह्यसूत्र कुल १४ हैं। ऋग्वेद के तीन, आपद्धर्मपर्वाध्याय-महाभारत के १८ पर्व हैं और इन साम के तीन, शुक्ल यजुः का एक, कृष्ण यजुर्वेद के छः एवं पर्यों के अवान्तर भी १०० छोटे पर्व हैं, जिन्हें पर्वाध्याय आथर्वण का एक । गृह्यसूत्रों में आपस्तम्ब का स्थान महत्त्व ___कहते हैं । ऐसे ही छोटे पर्यों में से आपद्धर्म भी एक है। पूर्ण है । इसमें तथा अन्य गृह्यसूत्रों में मुख्यतः गृह्ययज्ञों का इसकी विषयसूची इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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